Tuesday 26 January 2016

आज का पढ़ा-लिखा युवा वर्ग धीरे-धीरे और भी धर्म-भीरु होता जा रहा है। जीवन में तनाव, खींचा-तानी, ग्लानि, क्रोध, आक्रोश, विषाद, सपनों और साधनों के बीच का बिगड़ता तालमेल जैसे-जैसे बढ़ रहा है, वैसे-वैसे धर्म सब-मर्जों-का-एक-इलाज़ की तरह उभरता जा रहा है। जिसे देखें वह अंगूठियां लादे हुए है, नाम के हिज्जे बदलवा रखे हैं। तरह तरह की पूजायें/मंत्र-वंत्र कर रहे हैं। वास्तुशास्त्र/फेंगशुई के बिनाह पर ही ऑफिस-घर बनवाये जा रहे हैं। हाँ, यह अलग बात है कि शांति कम है, शादियाँ उतनी नहीं चल पा रहीं, लोग, यहाँ तक कि बच्चे भी अवसाद और तनाव के शिकार हो रहे हैं। और धर्मभीरुता के शिकार सिर्फ गाँव वाले या कम पढ़े-लिखे लोग हों ऐसा कतई नहीं है।
आज आप किसी बड़े ऑफिस में भी चले जाएं, तो पाएंगे बिल्कुल अंग्रेजों की तरह दिखने और बात करने की कोशिश में लगे लोग भी अपनी किस्मत चमकाने के लिए ढेर सारी अंगूठियां पहने होते हैं। 

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