Sunday 31 May 2015

श्रीमद्भागवतपुराण ;
अपना पौराणिक ज्ञानवर्धन करें !
क्या आप जानते हैं ???
*सातों समद्रों में विभिन्न पेय पदार्थ [ईख मदिरा घी दूध खारा/मीठा जल आदि] [स्कन्द ५,अध्याय 1,शलोक ३३].
* भगवन शिव के वीर्य से सोना चांदी की उत्पति [स्कन्द ८,अध्याय १२,शलोक ३२-३३].
* ब्रह्मा के मुख से वेदों की उत्पति [स्कन्द ३,अध्याय १२,शलोक ३४].
* ब्रह्मा के जांघ से आसरों की उत्पति [स्कन्द ३,अध्याय २०,शलोक २३].
* ब्रह्मा के नाक से सूअर की उत्पति [स्कन्द ३,अध्याय १३,शलोक १८-१९].
* ब्रह्मा के बाल से सर्प की उत्पति [स्कन्द ३,अध्याय २०,शलोक ४७-४८].
* मृत पुरुष के शरीर से बच्चे की उत्पति [स्कन्द ४,अध्याय १४,शलोक ४३-४५].
* बुढ़ापा और जवानी की अदलाबदली [स्कन्द ९,अध्याय १८].
* ११०० योजन ऊँचा पेड [एक योजन =१३ किलोमीटर][स्कन्द ५,अध्याय १६,शलोक १२].
* पृथ्वी से सूर्य निकट और चन्द्रमा दूर [स्कन्द ५,अध्याय २२].
* गर्भाशय से बच्चे का बोलना [स्कन्द ९,अध्याय २०,शलोक ३६].
* दिति का १०० वर्ष तक गर्भ धारण किये रहना [स्कन्द ३,अध्याय १५,शलोक 1].
* स्त्री के गर्भ से जड्जंगम स्रष्टि [स्कन्द ६,अघ्याय ६,शलोक २६-२९].
* हिरनी के गर्भ से श्रिंग ऋषि का जन्म [स्कन्द ११,अध्याय ८,शलोक १८].
* घडे से अगस्त्य और वशिष्ट का जन्म [स्कन्द ६,अध्याय १८,शलोक ५-६].
* हल की नोक से हस्तिनापुर समाप्त [स्कन्द १०,अध्याय ६८,शलोक ४१].
* रथ के लीक से समुद्र की उत्पति [स्कन्द ५,अध्याय 1,शलोक ३१].
* महराजा उग्र सेन की सेना एक नील =१००००००००००००० [स्कन्द १०,अध्याय ९०,शलोक ४२].
यहाँ केवल कुछ प्रसंग दिए गये हैं.अधिक ज्ञान वर्धन हेतु मूल ग्रन्थ का अध्यन कर के पुण्य प्राप्त करें.ऐसा दिव्य ज्ञान आप को और कहीं प्राप्त नहीं होगा .ज्ञानवान भव .जय हिन्दू राष्ट्र !

Thursday 28 May 2015

एक नेता की आत्मव्यथा !
कभी सोचा न था कि ऐसे दिन भी आ जाएँगे जब किसी न किसी संदर्भ में मेरा फोटो प्रधानमन्त्री /मुख्यमंत्री या पार्टी प्रधान के साथ सोशल मीडिया की शोभा नहीं बढायेगा.यह सुप्रीम कोर्ट की कार्यप्रणाली भी अजीब है.हजारों केस पेंडिंग हैं उन पर ध्यान देने के बजाय हम समाजसेवकों के पीछे हाथ धो कर पड़ें हैं.
पहले निर्देश दिया कि केवल अमुक अमुक नेता ही लालबती का अधिकारी होगा. कौन उनको समझाए कि लालबती के बिना नेता ऐसे होता है जैसे आत्मा बिना शरीर .आप काहे के नेता हैं यदि आप की गाड़ी पर लालबती न चमकती हो.
अब सुप्रीम कोर्ट ने नया फरमान दिया है कि केवल राष्ट्रपति ,प्रधानमंत्री तथा सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस का ही फोटो सरकारी प्रचार प्रणाली का हिस्सा हो सकता है अन्य कोई भी नहीं .अब यह क्या बात हुई-जब सरकारी प्रचार प्रणाली में हमारा फोटो ही नहीं होगा तो जनता हमें नेता के रूप में कैसे जानेगी ?सुप्रीम कोर्ट का यह फरमान घोर अन्याय है.काश हमारे देश में सुप्रीम कोर्ट से ऊपर और कोई कोर्ट होती ,कम से कम अपील तो करते .हमें अपनी कोई चिंता नहीं हम समाज सेवकों के बिना देश और समाज का क्या होगा ???

Wednesday 27 May 2015

वेदों में विज्ञान -कुछ मूलभूत प्रशन ?
 जब से केंद्र में संघ संचालित सरकार की स्थापना हुई है ,बहुत सुनने को मिल रहा है :-
*"पश्चिम का विज्ञान वेदों से निकला है. जर्मनी वाले हमारे वेद ले गए थे और उन्ही ग्रंथों  से उन लोगों ने विज्ञान सीखकर अविष्कार किये"
* " यह तो हमारे पूर्वजों को पहले से ही ज्ञात थ."
यदि वेदों में वास्तव का विज्ञानं था तो हज़ारों सालों से उन्हें पढ़ने कंठस्थ करने और उनपर  भाष्य लिखने वाले हिन्दुओं ने कोई भी अविष्कार विदेशी वैज्ञनिकों से पहले क्यों नहीं किया ?
यदि वेदों में विज्ञान था तो प्राचीनकाल  में बड़े बड़े वेदज्ञ विद्धानों ने भी इस का उल्लेख क्योँ नही किया ?
वेदोँ के जो प्राचीन भाष्य मिलते हैं जिन में एक एक शब्द की व्याख्या की गई है ,उनमें जो वेद मन्त्रों के अर्थ किये गए हैं ,उनसे किसी वैज्ञनिक सत्य का परिचय क्यों नही मिलता ?
क्या १९वी शताब्दी तक सभी वेदज्ञ स्कॉलर मूर्ख थे जो उन्हें वेदों के मंत्रों के ठीक अर्थ न सूझ सके और वह उनसे विज्ञान न निकाल सके ?तो यहां से वेद ले जा कर पढ़ने वाले जर्मनों को विज्ञान कैसे मिल गया ???
२०-२१वी शताब्दी के अविष्कार में से किसी एक का भी वर्णन वेदों में क्यों नहीं मिलता ???

Monday 25 May 2015

भजन मण्ड़ली पार्टी (भाजपा) तथा खाप पंचायत संज्ञान ले;
# शराब के लिए तो हमारे यहां संस्कृत में ढेर सारे पर्यायवाची शब्द हैं परन्तु चाय के लिए तो संस्कृत तो क्या भारतीय संस्कृति में एक भी शब्द नहीं है.'चाय' शब्द तो फारसी भाषा का है.जो लोग चाय पीते हैं वह शुद्ध भारतीय संस्कृति का कैसे और क्योंकर पालन कर सकते हैं?
# अब यही समस्या सलवारकमीज़ के संदर्भ में है.संस्कृत तथा भारतीय संस्कृति में सलवारकमीज़ के लिए कोई पर्यायवाची शब्द नहीं है.होगा भी कैसे -दोनों शब्द म्लेच्छोंं से अपनाए गये हैं. क्या उन की नकल करने से सलवारकमीज़ का भारतीयकरन हो गया है ?
जीन्स और पैंट के तो आप विरोधी हैं ही ! आप लोग साड़ी को शुद्ध हिंदूत्व व भारतीय संस्कृति का प्रतीक मानते हैं परन्तु बेचारी साड़ी को भी "भारतीय संस्कृति वालों" ने कितना पवित्र रहने दिया है?यह देखना है तो महाभारत के पृष्ट खोलें,द्रोपदी की पूरी साड़ी को उतारा गया था और उतारने वाले और कोई नहीं ,भारतीय संस्कृति के पूजनीय पात्र थे.वह तो भला हो कृष्ण का जिस की "माया" ने उसे पूर्ण नग्न होने से बचा लिया था.यह घटना (दुर्घटना) भारतीय संस्कृति के तत्कालीन एकमात्र दरबार हस्तिनापुर में युधिष्टर ,अर्जुन,भीष्म पितामहा,द्रोणाचार्य आदि के सामने घटी थी.अब क्या उसे पहनने के लिए लड़कियों को इस लिए विवश किया जा रहा है कि उसे उतारना जीन्स या पेंट उतारने की अपेक्षा ज़्यादा आसान है?
# शुद्ध भारतीय आचरण स्थापित करने के लिए आप लोगों को विदेशी कुरतापायजामा तथा पेंटकमीज़ पहनना बंद करना चाहिए.पैन बालपैन,मोबाईल,चमड़े से बनी बेल्ट और पर्स का भी त्याग करना चाहिए -क्योंकि यह सब भारतीय संस्कृति नहीं है.
"रथ्याचर्पटविरचितकन्यः अजिनं वासः" महान शंकराचार्य के इस निर्देश अनुसार तो गली में पड़े चिथड़ों की गुदड़ी और मृग की खाल ही श्रेष्टतम वस्त्र है.आप को रेल,बस,कार,स्कूटर/मोटर साईकिल,हवाई जहाज़,कम्पयोटर आदि आदि सब प्रकार की म्लेच्छों द्वारा अविष्कार की गई वस्तुओं को एकदम त्यागना चाहिए.रथ हाथी बैलगाड़ी पर सवारी करते हुए टेलाविजन का उपयोग भी त्याग दें.सभी अंग्रेज़ी औषधियों का बहिष्कार करें- विशेष रूप से डाइबिटीज़ के रोगी तो Insulin का प्रयोग कदापि न करें क्योंकि गायमाता के pancreas से बनाई जाती है.

Saturday 23 May 2015



मोदी जी भगवान कृष्ण का अवतार हैं !
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् !(गीता ४/७).
अर्थात हे भरतवंशी! जब भी और जहां भी धर्म का पतन होता है और अधर्म की प्रधानता होने लगती है,तब तब मैं अवतार लेता हूँ !
कांग्रिस शासन में अधर्म चरम सीमा पर पहुंच गया था अतः मोदी जी अवतरित हुए.
गीता में कृष्ण जी ने ६२० श्लोकों में ७७ बार अहम,७६ बार माम्,४३ बार मे,१९ बार मम,१२ बार मया और १८ बार मयि शब्दों का प्रयोग किया है.४७ ऐसे समास वाले पद हैं जिन में मैं का वाचक शब्द मिलता है.मोदी जी भी आत्म प्रशंसास्वरूप मैं,मेरा,मैं ने,मुझ में शब्दों का खुले दिल से प्रयोग करते हैं.
कृष्ण जी ने नौवें अध्याय में संसार की हर वस्तु जैसे मौसम,यज्ञ,ओषधि,अग्नि,मातापिता पितामह,त्रिवेद,गति,स्वामी मित्र,उत्पति प्रलय,सुर्य,अमृत से अपने को जोड़ते नज़र आते हैं.वहीं दसवें अध्याय में अपने आप को हृदय वासी,मरीच,चंदा,पीपल,मेरू पर्वत,वासुकि,शेर और गरूड़,मगरमच्छ,गंगा,गायत्री आदि आदि कहा है (लिस्ट लम्बी है).
ठीक उसी प्रकार पिछले एक वर्ष में जिन १८-१९ देशों का मोदी जी ने भ्रमण किया है,उन सभी देशों के धर्म,सभ्यता एवं संस्कृति के साथ मोदी जी ने अपना पुराना रिशता बताया है.वह हर स्थान से जुड़े हैं.अपने देश की हर विविधता में तो वह पहले से ही हैं.
विधार्थी जीवन में मार्क्सवादी चिंतन से जुड़ने के कारण पिछले लगभग ५० वर्षों से नास्तिक हूँ परन्तु २१वीं शताब्दी में साक्षात अवतारवाद को देख कर नास्तिक होकर भी कृष्ण जी की प्रणाम करता हूँ.

Friday 22 May 2015



सफाई कर्मचारी के अच्छे दिन कब और कैसे ???
देश में हर साल लगभग 10 हजार सफाई सेवकों की मृत्यु सिर पर मैला ढोने से होने वाली बीमारियों से होती है जबकि 22,000 से अधिक सीवरमैन सीवरेज की विषैली गैस की बलि चढ़ जाते हैं।
90 प्रतिशत सीवरमैन रिटायर होने से पूर्व ही सीवर की विषैली गैस या इससे होने वाली जानलेवा बीमारियों से मारे जाते हैं और लगभग 98 प्रतिशत सफाई सेवक जीवन भर किसी न किसी बीमारी से जूझते रहते हैं।
पाश्चात्य देशों में जो काम जितना जोखिम भरा और गंदा होता है उसके लिए उतनी ही अधिक उजरत दी जाती है परंतु भारत में स्थिति इसके बिल्कुल विपरीत है। स्वतंत्रता के 68 वर्ष बाद भी ये घरों-मोहल्लों को साफ रखने के लिए 150-200 रुपए दैनिक की बहुत कम उजरत पर काम कर रहे हैं।
जान हथेली पर रख कर गंदगी और खतरनाक बैक्टीरिया से भरे गटरों और मैनहोलों में सुरक्षा उपकरणों के बगैर ही उतर कर सफाई करने से वे अनगिनत किस्म के गंभीर त्वचा रोगों के अलावा दस्त, टायफाइड, हैपेटाइटिस-बी, सांस और पेट की बीमारियों का शिकार हो जाते हैं। ‘टैटनी’ नामक बैक्टीरिया इनके खुले घावों को टैटनस में बदल देता है।
उन्हें ऑक्सीजन सिलैंडर, फेसमास्क, गम बूट, सेफ्टी बैल्ट, नाइलोन के रस्से की सीढ़ी, दस्ताने, सुरक्षात्मक हैलमेट और टार्चें तथा इन्सुलेटिड बॉडी सूट आदि भी उपलब्ध नहीं कराए जाते। उन्हें काम के दौरान चोट लगने की स्थिति में चिकित्सा अवकाश भी नहीं मिलता। पंजाब में सीवरों की सफाई करने वाले अधिकांश कर्मचारियों को इसी स्थिति से जूझना पड़ रहा है।

जिस प्रकार सीमाओं पर तैनात जवान अपनी जान खतरे में डाल कर रात-दिन पहरा देते हैं ताकि हम सुख की नींद सो सकें उसी प्रकार ये सफाई मजदूर भी देशवासियों की सेहत और सफाई की खातिर दिन-रात अपनी जान को खतरे में डाल कर जूझते रहते हैं।
अब जबकि केंद्र में स्वयं को ‘गरीबों की हमदर्द’ कहने वाली सरकार को सत्तारूढ़ हुए एक वर्ष हो चुका है, अन्य देशवासियों की तरह सफाई सेवकों और सीवरमैनों को अभी भी अच्छे दिनों का इंतजार है।
दुर्घटना बीमा ,जीवन बीमा तथा पेंशन स्कीम  की ज़मीनी सचाई  !
सरकार ने अभी हाल ही में बड़े धूम-धड़ाके के साथ तीन सामाजिक योजनाओं की घोषणा की है। ये तीन योजनाएं, जिनमें दुर्घटना बीमा, जीवन बीमा और पैंशन योजना शामिल हैं, का विश्लेषण करने पर पता चलता है कि इनसे आम आदमी को कोई लाभ नहीं हुआ है।  ये योजनाएं तो केवल उन लोगों के लिए है जिन के पास बैंक खाते हैं और उन खातों में पैसे हैं। सवा अरब की आबादी वाले देश में केवल 15करोड़ लोगों के पास ही खाते हैं। इन 15 करोड़ में से भी एक-तिहाई ऐसे खाते हैं जिनकी जमा राशि शून्य है।
 
 इन योजनाओं में सरकार की ओर से कोई अंशदान नहीं डाला जा रहा है और न ही इसके लिए किसी प्रकार से बजटीय  समर्थन का प्रावधान रखा गया है। प्रधानमंत्री सुरक्षा योजना में  12 रुपए के प्रीमियम पर बीमा कम्पनी 2 लाख रुपए का कवर उपलब्ध करवाएगी, इसमें सरकार कहां है?  
 
यह पैसा कमाने का कारोबार है। सरकार को बड़े बीमा कारोबार से लाभ होता है क्योंकि बीमा कोष सरकार की ढांचागत योजनाओं के लिए बेहद उपयोगी रहते हैं।  इसमें सरकार अपनी तरफ से क्या लगा रही है बल्कि योजनाओं के लिए लोगों से पैसा ले रही है। वे सभी योजनाएं नई बोतल में पुरानी शराब जैसी हैं। परन्तु मोदी दावा कर रहे हैं कि यह उनके दिमाग की उपज है। इस सरकार ने अभी तक बुलेट ट्रेन, हाई स्पीड ट्रेन, सब का साथ-सब का विकास जैसे जुमले हवा में उछालने के अलावा कुछ ठोस नहीं किया है। विकास पुरुष के सत्ता में आते ही विकास ठहर-सा गया है।

Wednesday 20 May 2015

POLITICAL TRAGEDY;
SHAMELESS POLITICIAN ASHAMED !
So Nirmala Seetharaman wants us to know that Narendra Modi was ashamed when he was denied US visa. She also questions Congress’ silence and why they were not pestering US to grant one. So one fine day, our man said, "Enough of this shame, let me show these Amrikans." He got all the industrialists to pump in mammoth amounts into his election campaign. Together with leading advertising legends they coined a slogan "Achhe din aane waale hai". Shamelessly they went around selling dreams. Again shamelessly telling the masses that nothing has happened in India. That our dear India looks nothing different from Darfur of Sudan or Mogadishu of Somalia. It shamed everybody no end.
That was not the end of it. These people were not ashamed to form pre-election partnerships with parties that were ideologically different. They were not ashamed to ally with parties that openly supported terrorist organisations like LTTE. Because purna bahumat had to be attained at all costs.
They made fancy promises in election manifestos. Like bringing black money stashed outside in tax havens and credit 15 lakhs to every Indian. That too within 100 days of swearing in (I feel like swearing right now). To do away with article 370 in kashmir. To abolish rampant corruption. To make life secure for our women folk.
Starry eyed people believed and voted, thinking change will come. Inflation went up. Salaries evaporated. Our pockets had less of currency notes and more of change. We were not expecting this change, of course.
Within 12 months our PM has toured 18 countries. As if mocking US; “Joyu? Mane visa nathi aapti na.? (see, you were denying me visa?) He took his binoculars and the best suits, and went to exotic places. Everywhere shamelessly ridiculing his detractors back home. Now this is the limits, he wants us to believe that we were all hanging our heads in shame before he took over the reigns. Kalpana Chawla took the last seat on that space shuttle, just because we had a ‘scam India’ back home. Sabeer Bhatia had to sell off Hotmail, why? Because he was so ashamed of his roots. Amartya Sen, Madhur Jaffrey, Gurinder Chaddha, Lord Swaraj Paul, Laxmi Mittal all made India very proud... but deep inside they were very ashamed.
Suddenly dawned the morning of May 2014 and the same people who were ashamed now puffed up with pride. First time we had a government with illiterate sadhus, yogis, sadhvis and babas. Who technically meant to relinquish their worldly desires and head to the jungles of Himalayas in search of nirvana, but the lust for power, money, fame and maya brought them to right wing politics. These bachelors taught us the virtues of family planning and how to breed like mosquitoes, simply because they were scared that their virat population might get outnumbered with other low lives. What a shame that would be.
Farmers are dying, gang rapes are taking place, corrupt politicians are being bailed, terrorists are at large, our borders are being breached, naxals are killing our policemen, dowry deaths have not subsided, female infanticide is still widespread, unemployment exists, inflation never went away, rupee is falling. But you feel proud. You got US visa which was denied for so many years. Jalsa karo bhai jalsa.

Tuesday 19 May 2015

भक्तजन के लिये शुभ समाचार ;
बीमार होने पर किसी डॉक्टर से परामर्श लेने की बिल्कुल अवश्यकता नहीं !केवल रत्न धारण करें !
कौन-सी बीमारी के लिए कौन-सा रत्न धारण करें : 
1. जिगर की बीमारी, पीलिया-पुखराज, 
2. उल्टी, बुखार- लहसुनिया, 
3. दमा, क्षय रोग, खांसी- सफेद मोती, 
4. दिल की बीमारी- माणिक, पन्ना या हीरा,
5. गुर्दे की बीमारी- पन्ना- रॉक क्रिस्टल, 
6. पैर की बीमारी- पन्ना, 
7. त्वचा पर कोढ़ -गोमेद, 
8. माइग्रेन, सिरदर्द-स्टार सफायर या जैड, 
9. दांत की बीमारी-मूंगा, लीपिज, लाजुली, 
10. कान, नाक, गला-पुखराज, सफेद मूंगा, 
11. मूत्र संबंधित रोग- मोती, हीरा, पन्ना, पुखराज, मूंगा, 
12. खून संबंधित बीमारी- नीलम, पन्ना, माणिक, 
13. नींद न आना- मोती, चंद्रमणि, पुखराज, 
14. अपचन : गारनेट, स्टार रूबी, माणिक,
15. तनाव, खिंचाव- मोती, मूनस्टोन, 
16. फेफड़े स्नायु रोग- पन्ना जेडे, 
17 जख्म नासूर- नीलम, कटैला, 
18. गर्भपात रोकने के लिए- मूंगा, 
19. कब्ज- मूंगा,
20 आंख पन्ना।

Friday 15 May 2015

द्रोणाचार्य के जन्म की "गौरवशाली" गाथा !
# "गंगाद्वारं प्रति महान् बभूव भगवानृषिः भरद्वाज इति ख्यातः.........ततः समभवद् द्रोणः कलशे तस्य धीमतः.".
(महाभारत,आदिपर्व,श्लोक ३३-३८,अध्याय १२९).
अर्थात गंगाद्वार में भगवान भरद्वाज नाम से प्रसिद्ध एक महार्षि रहते थे. एक दिन भरद्वाज मुनि गंगा में स्नान करने के लिए गए. वहां पुहंच कर महार्षि ने देखा कि घृताची नामक अप्सरा स्नान करके नदि के तट पर खड़ी वस्त्र बदल रही है. उस का वस्त्र खिसक गया और उस अवस्था में देख कर मुनि के मन में कामवासना जाग उठी.भरद्वाज का मन उस अप्सरा में आसक्त हुआ. इस से उन का वीर्य स्खलित होगया.परम बुद्धिमान मुनि ने उस वीर्य को द्रोण (यज्ञ कलश,घड़े) में रख दिया.उस बुद्धिमान महार्षि के बीज से उस द्रोण से जो पुत्र उत्पन्न हुआ वह द्रोण से जन्म लेने के कारण द्रोण (द्रोणाचार्य) नाम से विख्यात हुआ.
टिप्पणी :- किसी स्त्री का वस्त्र खिसकना देख कर तो आम आदमी का वीर्य स्खलित नहीं होता,भरद्वाज तो "भगवान- परम बुद्धिमान-महार्षि " आदि न जाने क्या क्या था.इतना शारीरिक नियन्त्रण और कच्चा ब्रह्मचर्य कि नारी को देखा और महार्षि का ब्रह्मचर्य उड़नछू हो गया.
द्रोणाचार्य अवार्ड का कड़वा यथार्थ !
# दोगले लोगों से भरा पड़ा है हमारा इतिहास,जिन में द्रोणाचार्य का नाम सब से ऊपर है.न उस का जन्म गौरवशाली था,न ही उस का कोई आदर्श था,न नैतिकता.वह शिष्यों में भी घृणित भेदभाव करता था जिस का दुष्परिणाम भुगता एकलव्य ने.
आज के युग में द्रोणाचार्य का नाम तब सुनने को मिलता है जब राष्ट्रीय स्तर पर किसी को बेहतरीन कोच का अवार्ड़ दिया जाता है जो द्रोणाचार्य अवार्ड़ कहलाता है. यह क्रम आज भी जारी है.
भारत के इतिहास में पहली बार ,५ जनवरी २०११ को सर्वोच्च न्यायालय ने द्रोणाचार्य के बारे में अपने फैसले में टिप्पणी करते हुए लिखा है कि गुरू द्रोणाचार्य द्वारा एकलव्य का अंगूठा कटवाना एक शर्मनाक ,दारूण और कुत्सित करतूत है. द्रोणाचार्य ने कभी भी एकलव्य को शिक्षा नहीं दी थी - फिर उसे फीस (गुरू दक्षिणा) मांगने का क्या अधिकार था? न्यायमूर्ति काटजू और न्यायमूर्ति ज्ञानसुधा मिश्र ने अपने निर्णय में यह प्रशन उठाया था.
यह देश के इतिहास में पहली बार हुआ है कि सर्वोउच्च न्यायालय ने पिछड़े आदिवासी एकलव्य के प्रति हुए घोर अन्याय को स्वीकार करते हुए गुरू द्रोणाचार्य और उस की नैतिकता को कठघरे में ला खड़ा किया है.
ऐसी पृष्टभूमि में द्रोणाचार्य अवार्ड की सार्थकता तथा औचत्य क्या है ?

Wednesday 13 May 2015

एक आत्मा की आत्मकथा एवं त्रासदी !
# मुझे उपनिषदकारों ने गहरी दुविधा में ड़ाल रखा है.अजीब विरोधाभास है- मुझे अंगूठे,बाल के अगले भाग के सौवें भाग का सौवां हिस्सा,चावल जौ सरसों के दाने से छोटा और अणु के बराबर परिभाषित किया गया है. मैं ऐसे अंतरविरोध में अपने को क्या समझूं ?
मैं घोर नरक में जाना चाहता हूं तो यह ज़रूरी है कि शास्त्रों के अनुसार मुझे कोई जघन्य पाप करना होगा.किसी की हत्या या बलात्कार की उपेक्षा मंदिर में जाकर किसी देवी देवता का अपमान चूंकि पंड़ितों के अनुसार घोर पाप है अतः मेरा नरक में जाना तय है.
मेरा दाह संस्कार होगा. मेरे शरीर के समस्त भाग जलकर राख हो जायेंगे और उस राख को भी किसी नदी में प्रवाहित किया जायेगा.
रह गया मैं (आत्मा) .यमदूत मुझे नरक ले चलेंगे.नरक में आग जल रही है और कड़ाहे चढे हुए हैं जिन में तेल खौल रहा है. उसी तैल में मेरी आत्मा को तल कर पकौड़ा बनाया जायेगा और माननीय यमराज उससे नाशता करेंगे परन्तु मुझे क्या फर्क पड़ेगा ?कृष्ण जी कहते हैं कि आत्मा को न दुख होता है न सुख,न काटा जा सकता है और न ही जलाया जा सकता है. मैं तो निर्लिप्त अजरअमर हूं. हां जो शरीर दुख सुख के लिए संवेदनशील था वह तो पहले ही राख बन चुका है ,आत्मा का क्या है कड़ाही में तलिए या आग में जलाइए -उसे क्या फर्क पड़ता है?
मैं तो सोचता हूं कि बेचारे यमदूत और उन की टीम नाहक ही अपना समय बरबाद कर रहे हैं.मेरी आत्मा तो जघन्य अपराध करके भी चैन से बैठी है.मेरी त्रासदी देखें मैं हंस भी नहीं सकता क्योंकि हंसने के लिए शरीर चाहिए जो पहले ही मिट गया है.
स्वर्ग की बात करते हैं जहां आनंद ही आनंद है. यदि मैं पुहंच भी पाओं तो वह आनंद भी कौन महसूस करेगा.आनंद महसूस करने वाला शरीर तो धरती पर ही छूट गया.उर्वशी और मेनका ने पूरे कपड़े पहने हैं या फिल्म अभिनेत्री की तरह आधे कपड़े पहने हैं -वह क्या और उन का नृत्य क्या ?हां धरती पर यह नृत्य देखने को मिलता तो आनंद कुछ और ही होता.कितना विवश हूं मैं और मेरी विवशता पर दो आंसू बहाने वाला भी कोई नहीं. आह इतनी बड़ी सृष्टि पर कितना अकेला हूं मैं ?

Tuesday 12 May 2015

मीडिया और केजरीवाल दोनों को आत्ममंथन तथा आत्मचिंतन की अवश्यकता !
अरविंद केजरीवाल को खुद आईने में अपना चेहरा देखना चाहिए, खुद की कमजोरियों को देखना चाहिए, अपने वायदों को देखना चाहिए और अपने आप को एक दक्ष व कत्र्तव्यनिष्ठ शासक बनाने के लिए अहंकार व उत्तेजना को छोडऩा होगा, उन्हें संयमित होकर सकारात्मक सक्रियता पर ध्यान देना चाहिए। अहंकारी शासक कभी भी अपने लिए जनसमर्थन हासिल नहीं कर सकता है। एमरजैंसी में इन्दिरा गांधी ने भी मीडिया की आवाज को जमींदोज करने की कोशिश की थी। दाव उल्टा पड़ा था। एमरजैंसी के बाद हुए लोकसभा चुनाव में इन्दिरा गांधी की हुई पराजय व हश्र से अरविन्द केजरीवाल को सबक लेना चाहिए।

मीडिया को भी आत्ममंथन करना चाहिए। अरविंद केजरीवाल जैसे अहंकारी व खुशफहमी से लबालब व्यक्ति को अपना आईकॉन नहीं बनाना चाहिए। बिना सोचे-समझे, बिना दुष्परिणाम की चिंता किए किसी को भी मसीहा घोषित नहीं कर देना चाहिए। मीडिया को सनसनी से बचना चाहिए। मीडिया को अरविन्द केजरीवाल प्रकरण से सबक भी लेना चाहिए। पर क्या मीडियाकर्मी सबक लेने के लिए तैयार हैं। मीडिया को स्वतंत्र रिपोॄटग पर ही ध्यान केन्द्रित करना चाहिए।
बेमौत मरने पर विवश फूटपाथ पर जीते ग़रीब लोग !
क्या कभी इन के भी अच्छे दिन आ सकते हैं  ???
देश को स्वतंत्र हुए 68 वर्ष हो चुके हैं, पर अभी भी बहुसंख्या बुनियादी सुविधाओं से वंचित है। दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता और चेन्नई जैसे मैट्रोपोलिटन शहरों में ही नहीं, अन्य छोटे व दरम्याने शहरों में भी बड़ी संख्या में लोग फुटपाथों पर सोने के लिए विवश हैं। 
ये लोग वर्षा, आंधी जैसे मौसमी प्रकोपों के निशाने पर लगातार बने रहते हैं। उनकी बहू-बेटियों की इज्जत भी सदा खतरे में रहती है और यही नहीं अब तो फुटपाथ वासियों के लिए तेज रफ्तार वाहनों से भी भारी खतरा पैदा हो गया है और कोई नहीं कह सकता कि कब कोई तेज रफ्तार वाहन आकर किसी ‘फुटपाथ वासी’ को कुचल जाएगा। 
 
सर्दियों के मौसम के मुकाबले गर्मियों के मौसम में फुटपाथ पर सोने वालों की भीड़ अधिक बढ़ जाती है और उसी अनुपात में उनके जीवन को खतरा भी बढ़ जाता है। सरकार के एक मोटे अनुमान के अनुसार कश्मीरी गेट सहित पुरानी दिल्ली में ही 7 से 8 हजार के बीच बेघर लोग फुटपाथों पर रात बिताते हैं और गत वर्ष दिल्ली अर्बन शैल्टर इम्प्रूवमैंट बोर्ड ने 269 स्थानों पर फुटपाथों पर रहने वालों की संख्या 16,760 बताई गई थी जबकि एक एन.जी.ओ. के अनुसार अकेले समूची दिल्ली में इनकी संख्या एक लाख से अधिक है। 
 
ज्यादातर ये नौकरी व रोजगार की तलाश में महानगरों में आने वाले सर्वहारा लोग हैं। मेहनत-मजदूरी करके पेट पालने वाले ये वह लोग हैं जो फुटपाथों पर ही गृहस्थी बनाते और फुटपाथों पर ही बच्चे पैदा करते हैं और वहीं मर जाते हैं। कुछ ऐसे भी होते हैं जिन्हें प्राकृतिक मौत भी नसीब नहीं होती और उन्हें तेज रफ्तार से गुजरते वाहन कुचल जाते हैं।

Sunday 10 May 2015

REPUGNANT RACIAL PREJUDICE EVEN TODAY !
Close to seven decades after Independence, in many villages of India the nature of certain social equations has not changed from what they have been for centuries. Such villages continue to remain what Dr. B.R. Ambedkar called “sinks of localism, dens of ignorance and narrow-mindedness”. How else could one see certain recent incidents reported from Tumakuru in Karnataka about village barber shops denying haircuts for Dalits, temple festivities remaining out-of-bounds for Dalit families, and other forms of prevalent discrimination? By all accounts these are not isolated incidents. Discrimination against Dalits is widespread and ingrained in the psyche across India, in rural settings in particular.
मनु स्मृति के अनुसार ब्राह्मण का वर्चस्व;
दस वर्ष का ब्राह्मण पुत्र अन्य सभी का पिताश्री !
# ब्राह्मणं दशवर्षं तु शतवर्षं तु भूमिपम्
पितापुत्रौ विजानीयाद् ब्राह्मणस्तु तयोः पिता. (२/१३८).
अर्थात क्षत्रिय सौ वर्ष का वृद्ध हो और ब्राह्मण दस वर्ष का बालक हो तो भी उन दोनों में ब्राह्मण को पिता के समान और क्षत्रिय को पुत्र के समान समझना चाहिए. वास्तव में किसी भी आयु का ब्राह्मण पिता तुल्य होता है.
# ब्राह्मण सर्व श्रेष्ट !
भूतानां प्राणिनः श्रेष्ठाः प्राणिनां बुद्धिजीविनः
बुद्धिमत्सु नराः श्रेष्ठा नरेषु ब्राह्मणाः स्मृताः (१/९७).
अर्थात पृथ्वी आदि पांच महाभूतों में प्राणधारी जीव श्रेष्ठ हैं.प्राणियों में वह जीव श्रेष्ठ हैं जो बुद्धि से काम करते हैं. इन बुद्धिमान प्राणियों में मनुष्य श्रेष्ठ है. अन्य सभी मनुष्यों की तुलना में ब्राह्मण श्रेष्ठ है !

Thursday 7 May 2015

FARMERS SUICIDE -MARXIST PERSPECTIVE !
Farmer cum creative artist Gajendra Singh ,even as he hanged on to a tree before hanging himself down to die,was persistently trying to maintain a continuing dialogue for 74 minutes with over 5000 people standing and watching him on the ground. Did any body pay attention to what he said ?There is no record. Why ?Growing sense of human alienation in society where suicides and deaths are no more than numbers. A man is just a mathematical number. So was Gajendra Singh and over a million of farmers  whose death is recorded by the National Crimes Records Bureau.
The main culprit is the system of capitalism,its avaricious tendency for money accumulation and fetishism for commodities based on over- exploitation of land and other natural resources which pits human beings [farmers] against soil/land/water. This antagonism also forms the basis of alienation of human beings [farmers] from each other,which is most dangerous for survival ,subsistence and existence. Premature,untimely and contingent death of farmers is but a corollary of socially alienated existence of farmers striving and struggling daily as Robinson Crusoe on secluded islands amidst turbulent capitalist conditions. Farmers as "natural beings"subsist as free owners of land but are ruthlessly dependent on exogenous non natural forces imposed from outside  like institutional credit,financing,markets, technologies,resources etc which they find most difficult to cope with.
Framers are now on a look-out for genuine freedom. Having lost natural           values ,natural being status and natural meaning of existence ,they seek success  which comes by suicide. So having lost values,meaning and oneness with natural conditions of existence,they desperately strive to succeed  in achieving their "purpose"of existence which they ultimately find in suicide.
The million dollar question arises- what prompted Gajendra Singh to hang himself in day light and in full public view ?The clue lies in human alienation and social estrangement.Who is culprit ? Capitalism, of course,which promoted concrete individualism .

Sunday 3 May 2015

हम राममनोहर लोहिया की प्रगतिशील विचारधारा के "समाजवादी क्रन्तिकारी " हैं !
 मुलायम और अखिलेश ने हिंदू पुजारियों व धर्म गुरुओं के लिए अपने घर और दिल के दरवाजे खोल दिए हैं और आए दिन कोई न कोई पूजा-पर्व या अनुष्ठान चलता ही रहता है। इस परम्परा की शुरूआत तब हो गई थी जब अखिलेश 2012 में यू.पी. के सी.एम. बने तो उस समय पंचक था, इसकी शुद्धि के लिए 47 पंडितों से इसकी पूजा करवाई गई। 
 
इसके बाद मुलायम परिवार के एक उद्योगपति मित्र के उनके गोमती नगर स्थित आवास पर एक बड़ा अनुष्ठान संपन्न हुआ, सूत्र बताते हैं कि इसकी पूर्णाहुति पर अखिलेश और डिम्पल भी शामिल हुए। अनुष्ठान में सहभागी बने तमाम पंडितों को उन उद्योगपति की ओर से और अखिलेश-डिम्पल की ओर से 51-51 हजार रुपयों की दक्षिणा दी गई, अनुष्ठान में शामिल होने वाले पंडितों के मोबाइल फोन बाहर ही रखवा लिए जाते थे। 
 
इस बार जब सपा सुप्रीमो मुलायम अचानक से बीमार पड़ गए तो इस परिप्रेक्ष्य में बड़ी धूमधाम से श्रवण यात्रा का आयोजन हुआ। श्रद्धालुओं को लखनऊ से ऋषिकेश-हरिद्वार की मुफ्त यात्रा करवाई गई, उनके लिए ठहरने से लेकर खाने-पीने तक के पुख्ता इंतजाम किए गए। 
 
ट्रेन के पांच कोच इनके लिए खास तौर पर आरक्षित किए गए, श्रद्धालुओं को खाने-पीने के सामान से भरा एक बैग भी खास तौर से भेंट किया गया। स्वयं मुख्यमंत्री इन्हें लखनऊ स्टेशन विदा करने पहुंचे, तमाम अखबारों में यात्रा से संबंधित बड़े-बड़े विज्ञापन दिए गए। ज्यों-ज्यों 2017 की चुनाव की घड़ी करीब आ रही है मुलायम-अखिलेश दरबार में हिंदू पंडितों व धर्म गुरुओं का महत्व निरंतर बढ़ता जा रहा है।
राजनीतिक स्वार्थ और मुकाबले के सन्दर्भ में धर्म और राजनीति  का मिश्रण तथा संकीर्ण धार्मिक कट्टरवाद एजेंडा के किये सरकारी मशीनरी का दुरूपयोग भारत    जैसे देश के लिए घातक और प्रतिकूल प्रमाणित हो सकता है.
कवाहत है "बोये पेड बबूल के धर्म  और राजनीति  का कॉकटेल [मिश्रण] देश के लिए घातक !
आम कहाँ से होए ?". आज यह कहावत  राष्ट्रीय सेवक संघ संचालित सरकार की ओर से शिक्षा के सम्पूर्ण भगवाकरण पालिसी पर लागू होती है. हरियाणा प्रदेश की मनोहर लाल खटर सरकार ने सर्वप्रथम घोषणा की है कि आगामी स्तर से प्रदेश के सभी स्कूलों में गीता अध्यन अनिवार्य होगा. अब  29 अप्रैल को हुरियत कांफ्रेंस के अध्यक्ष उमर फारूक ने  मांग की है कि                         जम्मू कश्मीर राज्य के सभी स्कूलों में इस्लाम अध्यन को अनिवार्य घोषित किया जाए। इसी प्रकार की मांग        अन्य मुस्लिम बहुल प्रदेश भी शीघ्र करेंगे -इस की पूरी सम्भावना है. पंजाब में अगले वर्ष चुनाव होने जा रहे हैं. गुरुदवारा राजनीति के महारथी अकाली भला पीछे कैसे रह सकते हैं?कुछ समय की बात है जब अकाली दल गुरु ग्रन्थ साहिब के अध्यन को पंजाब के सभी स्कूलों में अनिवार्य घोषित करने की मांग करेगा. नागपुर रिमोट कंट्रोल सेंटर के एक इशारे पर राजस्थान ,मध्यप्रदेश,छत्तीसगढ़ ,गोवा ,गुजरात ,महाराष्ट्र आने वाले समय में अपने अपने राज्य में यही घातक मिश्रण प्रस्तुत कर सकते हें. केंद्र सरकार का आशीर्वाद तो है ही.
कौन कहता है भारतीय जनता पार्टी के पास राष्ट्रीय अखंडता का विज़न नहीं है?