Tuesday 26 December 2017

 देश इस समय एक साथ मंदी और महंगाई की विकट स्थिति को झेल रहा है. उधर किसान १० पैसे किलो आलू और ४ रूपये किलो मूंगफली बेचने को बाध्य हैं तो ईधर उपभोक्ताओं को वही आलू १२० गुना महंगा १२ रूपये किलो और मूंगफली २५ गुना महंगा १०० रूपये किलो मिल रहा है. दोनों छोर पर बैठे लोग मर रहे हैं और बीचवाला माल छाप रहा है. सरकार कहती है कि जीएसटी कम कर दिया लेकिन एक तरफ उपभोक्ताओं को सामान पुराने दरों पर ही मिल रहा है वहीँ दूसरी ओर सरकार को जीएसटी का भुगतान नए दर से किया जा रहा है. सेल टैक्स, इनकम टैक्स आदि सारे विभागों के बाबुओं का हफ्ता फिक्स है इसलिए सब आँखवाले अंधे बने हुए हैं. पाकिस्तान की गोलीबारी में आज भी रोजाना हमारे जवान बेमौत मारे जा रहे हैं. धंधा मंदा है और बेरोजगारी बढती ही जा रही है.
मित्रों, न्यायपालिका निरंकुश है, न्याय दुर्लभ है, कदम-२ पर घूसखोरी और कमीशनखोरी है, सार्वजानिक शिक्षा की मौत हो चुकी है और निजी विद्यालय लूट मचाए हुए हैं, परीक्षा दिखावा बनकर रह गई है, असली से ज्यादा नकली दावा बाजार में है, सरकारी अस्पतालों में कुत्ते टहल रहे हैं और निजी अस्पतालों से तो लुटेरे कहीं ज्यादा भले, पुलिस खुद ही अपराध कर और करवा रही है, सारे धंधे मंदे हैं लेकिन अवैध शराब और गरम गोश्त का व्यापार दिन दूनी रात चौगुनी उन्नति कर रहा है. पुलिस छापा मारती भी है तो सरगने को भगा देती है और बांकी लोग भी एक-दो महीने में ही न जाने कैसे बाहर आ जाते हैं. कुल मिलकर स्थिति इतनी बुरी है कि पीड़ित may I help you का बोर्ड लेकर घूमनेवाली पुलिस के पास जाने से भी डरते हैं. बैंकों की तो पूछिए ही नहीं पहले १० %  कमीशन काट लेते हैं बाद में लोन की रकम देते हैं. बिहार में तो यही रेट है इंदिरा आवास तक में और प्रधान सेवक समझते हैं कि १००% पैसा गरीबों तक पहुँच गया. इतना ही नहीं क्या अमीर और क्या गरीब बैंक न्यूनतम राशि खाते में न होने के बहाने बिना हथियार दिखाए सबको लूट रहे हैं.

Monday 18 December 2017

कंडोम पर कुतर्क !
भारत में दूसरी कई गंभीर समस्याओं के बीच ढोंग और पाखंड भी एक बहुत बड़ी समस्या है। हम अंदर से कुछ हैं, जबकि दुनिया को दिखाते कुछ और हैं। जो देश पॉर्न देखने वालों की संख्या के मामले में पूरी दुनिया में तीसरे नंबर पर हो, उसी देश में सेक्स पर बात करना वर्जित है। जिस देश की जनसंख्या डेढ़ सौ करोड़ के आंकड़े की ओर तेजी से बढ़ रही है, वहीं अगर आप कॉन्डम खरीदते पाए जाते हैं, तो आपको घूर कर देखा जाता है। एक ओर यहां न जाने कितनी देवियों की पूजा होती है और दूसरी ओर लड़कियों को भ्रूण से बाहर नहीं निकलने दिया जाता। इसलिए कोई हैरानी नहीं कि ऐसे देश के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को दिन में कॉन्डम के विज्ञापन दिखाया जाना रास न आ रहा हो। ऐसे मंत्रालय को कोई जाकर बताए कि लैंसेट ग्लोबल हेल्थ के लिए जो सर्वे किया गया था, उसमें यह पाया गया कि आधे लोगों को कॉन्डम के इस्तेमाल का तरीका ही नहीं पता था। इस लिहाज से तो उन्हें और बेहतर ढंग से सिखाने की जरूरत है। हाल यह है कि भारत में साल भर में जितने गर्भ ठहरते हैं, उनमें से आधे मामलों में ऐसा पति-पत्नी की योजना के खिलाफ होता है। यानी अनचाहे हो जाता है क्योंकि वे यह मानकर चलते हैं कि अब अगर हो ही गया है तो गर्भपात क्या करवाना। ईश्वर की मर्जी ऐसी ही रही होगी। अब कैसे भी पाल लेंगे बच्चे को। इस तरह बिना मानसिक और दूसरी तैयारियों के बीच जो बच्चे पैदा होते हैं, उन्हें भी बाद में तकलीफों से गुजरना पड़ता है।
जरूरत इस बात की है कि हम कॉन्डम के इस्तेमाल और सेक्स संबंधी दूसरी अहम बातों को थोड़े संभ्रांत तरीके से सही, पर बच्चों तक जरूर पहुंचाएं। कॉन्डम के ऐड दिखाना बंद करके सिर्फ हम युद्ध के मैदान में मच्छरदानी के भीतर घुसने का काम कर रहे हैं, यह सोचते हुए कि जब इसमें मच्छर नहीं घुस सकता, तो गोली कैसे घुसेगी।

Saturday 16 December 2017

भाजपाई प्रवचन !
पिछले दिनों कर्नाटक के पूर्व उपमुुख्यमंत्री भाजपा के के.एस. ईश्वरप्पा ने पार्टी कार्यकत्र्ताओं को संबोधित करते हुए यह कह कर सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी को भाजपा की आलोचना का मौका दे दिया कि ‘‘राजनीतिक समर्थन पाने के लिए कभी भी मतदाताओं को झांसा देने से संकोच न करें।’’ सोशल मीडिया पर उक्त बयान की चल रही फुटेज 4 दिसम्बर की है जब वह कोपल में पार्टी वर्करों की एक बैठक को संबोधित करने गए। इसमें उन्होंने पार्टी वर्करों से कहा कि ‘‘यदि जरूरत पड़े तो झूठ भी बोल दें।’’ 

अपने भाषण के दौरान उन्होंने कहा, ‘‘हमें लोगों को भाजपा की सब उपलब्धियां बताने की जरूरत है। हमें लोगों को बताना है कि हमने पिछड़ी जातियों, अनुसूचित जनजातियों और किसानों तथा महिलाओं आदि के लिए क्या कुछ किया है। यदि आपको यह सब मालूम नहीं है तो कुछ भी झूठ अथवा जो मुंह में आए बोल दें।’’ ईश्वरप्पा इतने पर ही नहीं रुके और आगे कहने लगे, ‘‘हम राजनीतिज्ञ लोग हैं। जब हमसे कुछ पूछा जाए तो हमें यह नहीं कहना चाहिए कि हमें मालूम नहीं है। ऐसा करने की बजाय कोई भी कहानी बना दें बाद में जो भी होगा हम देख लेंगे।’’ ‘‘यदि आप लोगों द्वारा मनमोहन सिंह या मुख्यमंत्री सिद्धरमैया की तारीफ सुन कर चुप बैठे रहेंगे तब तो हमें अपनी दुकान बढ़ाकर चले जाना पड़ेगा।’’ 

Monday 11 December 2017

कूपमंडूकों की जमात
विडंबना यह है कि देश के नीति-निर्माता खुद ही तर्क और विज्ञान विरोधी मानसिकता से ग्रस्त हैं। ज्यादातर नौकरशाह ज्योतिष और वास्तु में यकीन करते हैं। जैसे ही किसी अधिकारी की प्रोन्नति होती है, अपने काम को जानने से पहले वह अपने चेंबर का मुआयना करता है। सूर्य, चंद्र की दिशा किधर है और सबसे नजदीकी मंदिर, मस्जिद, चर्च किधर हैं, वह इसका पता लगाता है। खिड़की की दिशा क्या है और मेज में कोने कितने, यह भी मालूम करता है। उसके कमरे की फर्श, अलमारी और पंखों का रंग क्या होगा, यह भी उसका पुरोहित आकर तय करता है। कई बार तो वह यह भी बताता है कि संसद के सबसे नजदीक इस भवन के नीचे श्मशान होने की आशंका है इसीलिए इतनी दुर्घटनाएं हो रही हैं। रातोंरात लाखों खर्च करके कमरे की सूरत बदल दी जाती है। कभी-कभी तो वर्ष में दो-चार बार। पूरा तंत्र इसमें साथ देता है अपने-अपने कमीशन के हिसाब से। कभी कोई इस बात का ऑडिट नहीं करता कि जो मेजें 400 साल तक चल सकती हैं उन्हें कबाड़ में क्यों डाला गया? क्यों इसका खर्च अफसर से नहीं लिया गया? केवल अधिकारी ही नहीं मंत्री भी वास्तुकारों और ज्योतिषियों के शिकंजे में हैं। एक बार एक मंत्री के ड्राइवर ने बताया था कि उसे आदेश है कि आवास से दफ्तर तक पहुंचते वक्त कार कभी बायें नहीं मुड़नी चाहिए। बांये हाथ से डर था या वाम दलों से! सर्वे कराया जाए तो हर दल की सरकार में ऐसे कूपमंडूकों की अच्छी-खासी संख्या रही है। इसीलिए ये जनता को ऐसे विषय पढ़ाना चाहते हैं। ज्योतिष, वास्तु आदि का अध्ययन कराकर हम नई पीढ़ी को पीछे ले जा रहे हैं।

Thursday 19 October 2017

The biggest deal actually is how and why such highly successful start up was closed abruptly in Oct 2016. A goddess of wealth must have descended in dream of promoters and gave them prior information that the wealth in form of currency notes of value of Rs 500 and 1,000 are going to be scrapped in months time. Put all money in bank and pay the taxes forthwith.

Wednesday 18 October 2017

बहुचर्चित दीवाली उत्सव:कुछ तथ्य !
आज कार्तिक मास की अमावस्या के दिन नवान्नेष्टि के स्थान पर दीवाली का त्योहार मानने की परम्परा बन गई है। पहले आज के दिन यदि यज्ञ में चावल को पका कर अग्नि में स्वाहा किया जाता था अब बेशुमार पटाखे, बिजली के बल्ब,दीपक, मोमबत्तियाँ आदि जलाई जाती हैं।न दोनों में कोई समानता है और न ही किसी को नवान्नेष्टि का नाम याद है। 
आज दीवाली की शुरुआत के बारे यही कहा जाता है कि जिस दिन मिथात्मक काव्य रामायण के पात्र राम लक्ष्मण हनुमान आदि रावण का वध करके अयोध्या लौटे, उस दिन अयोध्यावासियों ने उनके स्वागत में दीपमालाऐं जलाई लेकिन यह बात शत प्रतिशत अतिशयोक्तिपूर्ण कपोल कल्पित और अविश्वसनीय है। वाल्मीकि रामायण के युद्धकांड के सर्ग 127 में राम के स्वागत के लिए किए गए आयोजन का वर्णन मिलता है उस में दीपक शब्द का एक बार भी उल्लेख नहीं हुआ है।राम आदि दिन के समय अयोध्या पहुंचे थे अतः दिन को दीपक जलाए जाने का कोई औचित्य न था।दूसरे रामायण में राम के स्वागत के संदर्भ में रात्रि को आयोजित किए गए किसी आयोजन का उल्लेख नहीं मिलता है।तीसरे रामायण में रावण वध के तत्काल बाद राम के अयोध्या वापस आने का उल्लेख है। ज्योतिष गणना के अनुसार रावण वध फाल्गुन या वैशाख में हुआ था।हिन्दू धर्म के विद्वानों ने रावण वध की तिथि वैशाख कृष्ण चतुर्दशी निश्चित की है। अतः कार्तिक के महीने में राम के अयोध्या पहुचने की बात और इस को दीवाली के साथ जोड़ने का रामायण के कथानक से कोई सम्बन्ध नहीं बनता।
परजीवी ब्राह्मणों ने अपने वंशजों के लिए लक्ष्मी देवी की कल्पना कर डाली जिस के वाहन को उल्लू बताया गया।पुराणों से पहले के मिथात्मक साहित्य में इस देवी का कोई उल्लेख नहीं मिलता है। स्वार्थपूर्ति के लिए यह प्रचार किया गया कि लक्ष्मी देवी की कृपा प्राप्त करने के लिए उस की पूजा अत्यावश्यक है तथा इस की कृपा से ही धन की प्राप्ति होती है और यह पूजा ब्राह्मणों के सौजन्य से ही सम्पन्न हो सकती है अन्यथा तबाही सुनिश्चित है।सामाजिक त्रासदी देखिए धन की देवी का पूजन यहाँ इस देश में होता है परन्तु आर्थिक वैभव और आर्थिक सम्पन्नता म्लेच्छों के देशों में विराजमान है।
व्यंग्य यथार्थ के आस पास !
राष्ट्रवादी संस्कारी सरकार  राष्ट्रमाता गायजी की विशालतम मूर्ति स्थापित करेगी !
नारदमुनि न्यूज़ सर्विस ने अति विश्वसनीय सूत्रों के हवाले से यह समाचार प्रसारित किया है कि सरकार पावन भूमि  इन्द्रप्रस्थ राज्य  के पवनपुत्र नगर में गायमाता की विशालतम मूर्ति स्थापित करेगी . वास्तुशास्त्रियों की एक टीम इस प्रोजेक्ट पर दिन रात काम कर रही है. टीम के प्रधान वास्तुशिल्पी महर्षि विश्वकर्मा ने आकाशवाणी के माध्यम से प्रोजेक्ट का महिमामंडन करते हुए स्पष्ट किया है कि यह मूर्ति ४०००  मीटर ऊँची तथा १६,००० मीटर चौड़ी होगी .इस दिव्य मूर्ति के निर्माण में प्रयोग होनेवाले fiberglass का शुद्धिकरण गौमूत्र तथा पवित्र गंगाजल से किया जायेगा .हिमालय पर्वत को मात देने वाली यह मूर्ति न केवल चंद्रलोक से नज़र आयेगी बल्कि अमेरिका जर्मनी फ्रांस रूस तथा इंग्लैंड से भी नज़र आयेगी .जहाँ इस मूर्ति के सींग में इटली के मार्बल का प्रयोग होगा वहीं इस की पूँछ को ५६ डिग्री के माप से निर्माण होगा जिस के सौजन्य से चारोंओर गौमूत्र विसर्जन का प्रबंध होगा .यह विसर्जन प्रति सेकंड ८०० लीटर ५०० मीटर की ऊँचाई तक होगा जिस की सहायता से ५ किलोमीटर तक भक्तजन दिव्य प्रसाद का ग्रहण करेंगे .रात्रिकालीन अन्तराल में यह मूर्ति तीन प्रकार के भगवा रंगों में चमकती नज़र आयेगी .जानकार वास्तुशास्त्रियों का मानना है विश्वस्तर पर इस मूर्ति का गौरव तथा महिमामंडन ताजमहल की तुलना में १०० प्रतिशत अधिक होगा .
फुटपाथ का दर्द !
अपने लिए तो दुनिया जीती है
वाइन के साथ रम भी पीती है
गरीबों के लिए कोई कुछ करता नहीं
देश में आज भी फटेहाल और बदहाल जिंदगी रोती है
जिनकी सुबह नहीं होती
जिनकी शाम नहीं होती
जिनकी होली नहीं होती
जिनकी दीवाली नहीं होती
कैसे जीती है ये जिंदगी
जो हर रात रोती है
और आज भी फुटपाथ पे सोती है ![संजय शर्मा].

Saturday 14 October 2017

दिव्य असाधारण लाभदायक संजीवनी :धर्म प्रेरित बाबागिरी !
दो बेरोजगार नवजवान बबलू तथा बंटू का गंभीर वार्तालाप भविष्य के संदर्भ में :-
बबलू =कोई हमें जॉब देने को तयार नहीं है .सब हमें ठोकर मार रहे हैं !
बंटू=मैं जानता हूँ अब हमें क्या करना है . हम ड्रग्स का धंधा करेंगे !
बबलू =ड्रग्स का धंधा पर यह तो गैरकानूनी काम है !
बंटू =चिंता मत करो , मैं जिस ड्रग की बात कर रहा हूँ वह गैरकानूनी नहीं है बल्कि क़ानूनी भी है और असाधारण रूप से अत्यंत लाभकारी !
बबलू =क़ानूनी -असाधारण लाभदायक ? हेरोइन का धंधा कब से इस श्रेणी में आगया ?
बंटू =अरे दोस्त ,मैं हेरोइन जैसी ड्रग की बात नहीं कर रहा हूँ !
बबलू =तो क्या कोकीन या अफीम का धंधा करने का इरादा है और फिर यह बेचना कब से क़ानूनी हो गया है ?
बंटू =मैं गदा या मुर्ख नहीं हूँ . मैं जिस ड्रग की बात कर रहा हूँ ,वह विश्व की सर्व शक्तिशाली औषध है -इन सभी ड्रग्स के मुकाबले तेज़ और लाभकारी तथा खर्चा भी नाममात्र !
बबलू =पर क्या सरकार हमें ड्रग्स बिज़नस का दोषी नहीं मानेगी ?
बंटू =दोषी ?अपराधी ?उल्टा सरकार हमारा मानसम्मान करेगी और सहायता भी !
बबलू =सरकार हमें मुफ्त में ज़मीन देगी ,सामाजिक प्रोत्साहन और प्रशंसा के साथ .हमारी कमाई पर इनकम टैक्स भी माफ़ होगा ,बडे से बड़ा नेता हमारे साथ सेल्फी लेता नजर आयेगा .हम बाबा रामरहीम तथा अम्भिताब बचन से भी अधिक लोकप्रिय और हमारे लाखों अनुयायी हमारे एक इशारे पर वोटिंग करेंगे.
बंटू =दोस्त ,ऐसी कौन सी ड्रग का तुम सुझाव दे रहे हो ?
बबलू =यह समस्त विश्व में और विशेष रूप से हमारे पावन देश में एक ऐसी औषध है जो लोगों को एक ऐसी अवस्था में ले जाती है जहाँ सोचने समझने की भावना समाप्त हो जाती है -इस दिव्य औषध का नाम है धर्म प्रेरित बाबागिरी जो धर्मगुरु के नाम से लोकप्रिय है !
[टाइम्स ऑफ़ इंडिया में प्रकाशित जग सुरिया के अंग्रेजी ब्लॉग का हिंदी रूपांतरण].🤤🤤🤤🤤🤤

Tuesday 10 October 2017

व्यंग्य यथार्थ के आस पास ;
आम आदमी बलि का बकरा ?
* हरियाणा के डिप्टी advocate general गुरदास सिंह को परम पूज्यनीय प्रातः स्मरणीय नागपुर संस्कारी बाबा राम रहीम का रोहतक जेल में निजी बैग उठाने के संगीन अपराध में हरियाणा सरकार ने सस्पेंड कर दिया !
* विवेक विहार थाने के प्रभारी [SHO] संजय शर्मा को परम रमणीय एवं परम पूज्यनीय देवी तुल्यं राधे माँ को अपनी सरकारी कुर्सी पर बैठाने तथा थाने में देवी का आदर सत्कार समारोह आयोजित करने के अपराध में अन्य स्टाफ के साथ सस्पेंड कर दिया गया .
पुरानी कहावत है जैसे राजा वैसी प्रजा . वैसे भी आम जनता जनार्धन देश के कर्णधारों तथा देश के उच्च पदों पर आसीन नेतागण के सामाजिक आचरणों से प्रेरित होती रहती है और फिर आज जो कर्णधार देश में रामराज्य स्थापित करने की दिशा में दिन रात २५ घंटे कार्यरत हैं .जिन्हें वेंकाया नायडू ने ईश्वर का उपहार परिभाषित किया है .भला ऐसे आदर्श एवं आलौकिक नेतागण के सामाजिक व्यवहार और चिंतन की क्योंकर अवहेलना की जा सकती है ? क्या जनता जनार्धन का नैतिक कर्तव्य अपने नेताओं के आदर्शों को फॉलो करना नहीं है ? अभी कुछ समय पहले हरियाणा का समस्त मंत्रीमंडल बाबा गुरमीत के चरणों में नतमस्तक नज़र आता था तो भला वरिष्ट सरकारी वकील गुरदास सिंह का बाबाजी का  बैग उठाने का जुर्म कितना बड़ा संगीन जुर्म था ? जब देश के उच्चतम संविधानिक पदों पर आसीन संविधानिक परम्पराओं की धजियाँ उड़ाते एक धर्म विशेष की धार्मिक नौटंकी में खुले आम भाग लेते नज़र आते हैं तो पुलिस अधिकारी संजय शर्मा का बिलकुल वैसा ही आचरण अपराध कैसे हो गया ?दोनों ,गुरदास सिंह तथा संजय शर्मा सरकारी नीति का पूरी ईमानदारी के साथ अनुसरण ही तो कर रहे थे .

Sunday 8 October 2017

Watching the news channels always depresses me. Recent events moved me to verse (or worse), and I jotted down the following lines for Mr Trump and Mr Kim, who have been threatening each other with instant obliteration:
Rash men make bombs,
We like to curse ’em,
But time will come
When they must burst ’em.
You’ve made your cake, sirs –
Now you must eat it,
The grave is dug –
And you’re standing in it![Ruskin Bond].


Thursday 5 October 2017

दलितों एवं अन्य कमज़ोर वर्गों के विरुद्ध बड़ता अन्याय ,शोषण तथा आंतक  !
पिछले दिनों राष्ट्रीय स्वयं संघ की कर्म भूमि एवं कार्य शाला गुजरात राज्य के आनंद डिस्ट्रिक्ट में उच्च जाति के पटेल महारथियों ने जयेश सोलंकी नामक दलित युवक की दीवार से पटक पटक कर क्रूरतापूर्वक हत्या कर डाली . उसका "जघन्य अपराध": दूर बैठकर गरबा नृत्य देखना . गुजरात राज्य में न यह पहली वीभत्स घटना है और न आखरी . अन्य राज्यों में भी दलितों तथा अन्य कमज़ोर वर्गों को किसी न किसी बहाने चुन चुन कर निशाना बनाया जा रहा है. वैसे भी भाजपा की गाय प्रेरित राजनीति ने पहले ही दलित ,मुस्लिम तथा अन्य को उनकी रोजीरोटी से वंचित करके आर्थिक बदहाली के किनारे खड़ा कर दिया है. यह भी एक कडवी सच्चाई है कि पिछले तीन वर्षों में येन केन प्रकारेण धर्म निरपेक्षता से कहीं अधिक मनुवाद को महिमामंडित किया जा रहा है. जहां वर्ष २००५ में दलितों के खिलाफ २६१२७ मामले सामने आये वहीं वर्ष २०१५ में ४५००३ मामले सामने आये .यह आंकडे पंजीकृत मामलों के हैं . पूरे देश में हज़ारों मामले दर्ज ही नहीं होते हैं .जहाँ तक बहुचर्चित मॉडल राज्य गुजरात का सम्बन्ध है -वर्ष २०१५ में दलितों के खिलाफ अपराध के ९४९ केस पंजीकृत किएगए और चार्ज शीट दर्ज की गयी लेकिन केवल ११ मामलों में क़ानूनी प्रक्रिया पुरी की गयी .
यह एक सामाजिक त्रासदी ही है कि आज ७० साल की आज़ादी , क़ानूनी प्रावधानों तथा बहु प्रचारित जुमले 'सब का साथ सब का विकास' की प्रष्टभूमि में भी दलितों तथा अन्य कमज़ोर वर्गों के खिलाफ सामाजिक अन्याय ,शोषण तथा आंतक का सिलसला जारी है.

Thursday 28 September 2017

भाजपा सर्जीकल सर्जीकल स्ट्राइक पर सेना की बहादुरी का श्रेय ढोल बजा बजाकर खुद और आर एस एस को दे रही थी और पूरे देश में सर्जीकल स्ट्राइक का खुद श्रेय लेते हुए अपने हॉर्डिंग तक लगवा रही थी इस नोटबन्दी के बाद देश में मचे हाहाकार और नोटबन्दी के दौरान बैंकों की लाइन में लगकर मौत के आगोश में समाने वाले बेगुनाह लोगों का पाप भी अपने सर लेने का साहस दिखाए इसके आलावा जिस प्रकार बिना तैयारी के ये तुगलकी फरमान थोपा गया था उसकी तमाम कमियां निकल कर बाहर आई थीं जिसमे बैंकों की संलिप्तता के साथ अन्य लोग भी इसमें लिप्त पाये गए ये भी किसी से छिपा नहीं हाँ ये बात अलग है सरकार ये कहकर खुद ही अपनी पीठ ठोक ले कि जिन लोगों ने बैंकों की मदद से अपने काले धन को सफेद किया है वो पकड़े गए या फिर पकड़े जायेंगे क्या सरकार ये बताएगी देश की जनता को कि  कितना काला धन अब तक पकड़ा गया
जब लगभग (कुछ परसेंट को छोड़कर) सारा रुपया बैंकों में पहुंच गया तो काला धन कहाँ गया । अब ये भी शायद सरकार को पता नहीं तो फिर क्या पता है सरकार को।नोटबन्दी के दौरान जहाँ एक आम आदमी अपने एक एक रूपये के लिए बैंकों की लाइन में मारा मारा फिर रहा था  धक्के खा रहा था अपनी जान गंवा रहा था  नए नोटों की लाखों करोड़ों की बरामदगी सरकार की कार्यशैली और विश्वसनीयता पर एक बहुत बड़ा प्रश्नचिन्ह भी  लगा रही थी

Saturday 23 September 2017

व्यंग्य यथार्थ के आसपास !
श्री वेंकेया नायडू कमाल के संस्कारी तथा शुद्ध नागपुरी हिन्दुत्व व्यवहार एवं चिंतन के असाधारण प्रतीक हैं .भगवा परिवार के हाई कमांड ने उन्हें यूं ही उप राष्ट्रपति के पद पर शोभित नहीं किया . उनका समर्पण भाव तथा उनकी आस्था देखते ही बनती है .कुछ समय पहले जहाँ उन्होंने मोदीजी को देशवासियों के लिए ईश्वर का वरदान परिभाषित किया वहीं उन्होंने असाधारण राजनीतिक अनुसन्धान देशवासियों के सामने प्रस्तुत किया कि देवतुल्य मोदीजी अपने नाम के अनुरूप "प्रगतिशील भारत के निर्माता हैं [ Modi = maker of developed India] . अपनी परंपरागत सोच के अनुरूप ही उनका नवीनतम प्रवचन भक्तों की दिव्य संतुष्टि और आत्मीय प्रसन्ता का कारण बना है . वाह क्या बात है. जो प्रवचन राष्ट्र गुरु परम आदरणीय मोहन भाग्वत जी न दे सके वह प्रवचन नायडू जी ने दे डाला :-
* देवी दुर्गा प्राचीन भारत के  डिफेन्स मंत्री के पद पर शोभित थी !
* देवी लक्ष्मी प्राचीन भारत के फाइनेंस मंत्री के पद पर शोभित थी !
* देवी सरस्वती प्राचीन भारत के एजुकेशन मंत्री के पद पर शोभित थी !
इस प्रवचन के माध्यम से अब देशवासियों को पहली बार समझने को मिला कि किस आधार पर वर्ष २०१४ में श्रीमती स्मृति ईरानी को एजुकेशन मंत्री का दायित्व दिया गया था और अब किस आधार पर श्रीमती निर्मला सीथारमण को डिफेन्स मंत्री का दायित्व दिया गया .इस अनुसन्धान के आधार पर यह भी स्पष्ट हो जाता है कि वास्तव में माननीय अरुण जेटलीजी तथा प्रकाश जावेडकर जी क्रमशः देवी लक्ष्मी तथा देवी सरस्वती के प्रतीक हैं .इसके साथ साथ नए भारत का नया इतिहास निर्माण करने की दिशा में कपोलकल्पित मिथ को ठोस इतिहास के रूप में प्रस्तुतीकरण करने का नया आयाम बना !
#निर्माणाधीन_हिन्दू_राष्ट्र  !

Friday 15 September 2017

कुछ वैज्ञानिकों का व्यवहार अवैज्ञानिक क्यों?

 
 

आधुनिक काल को हम वैज्ञानिक युग की संज्ञा देते हैं। विज्ञान ने मानव के सामर्थ्य एवं सीमाओं का विस्तार किया है। विज्ञान और वैज्ञानिक दृष्टिकोण के बीच गहरा संबंध होता है। आज अनगिनत उपकरण व डिवाइस हमारे दैनिक जीवन के अंग बन चुके हैं। लेकिन हमारे देश और समाज में एक अजीब सा विरोधाभास दिखाई देता है। एक तरफ तो हम विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में होने वाली खोजों का भरपूर लाभ उठा रहे हैं। मगर दूसरी तरफ कुरीतियों, मिथकों, रूढ़ियों, अंधविश्वासों एवं पाखंडों ने भी हमारे जीवन और समाज में जगह बनाए हुए हैं। हमारे समाज की शिक्षित व अशिक्षित दोनों ही वर्गों की बहुसंख्य आबादी निर्मूल एवं रूढ़िगत मान्यताओं की कट्टर समर्थक है। आज का प्रत्येक शिक्षित मनुष्य वैज्ञानिक खोजों को जानना, समझना चाहता है। वह प्रतिदिन टीवी, समाचार पत्रों एवं जनसंचार के अन्य माध्यमों से नई खबरों को जानने का प्रयास करता है। तो दूसरी तरफ यही शिक्षित लोग कुरीतियों, मिथकों, रूढ़ियों, अंधविश्वासों एवं पाखंडों के भी शिकार बन जाते हैं।
वैश्वीकरण के प्रबल समर्थक और उससे सर्वाधिक लाभ अर्जित करने वाले लोग ही भारतीय संस्कृति की रक्षा के नाम पर आज आक्रमक तरीके से यह विचार सामने लाने की खूब कोशिश कर रहे हैं कि प्राचीन भारत आधुनिक काल से अधिक वैज्ञानिक और प्रौद्योगिकी सम्पन्न था। आज वैज्ञानिक दृष्टिकोण, तर्कशीलता, धर्मनिरपेक्षता, मानवता और समाजवाद की बजाय अवैज्ञानिकता, अंधश्रद्धा, अंधविश्वास और असहिष्णुता को बढ़ावा दिया जा रहा है। शिक्षित लोगों से लेकर अशिक्षित लोगों तक अंधविश्वासों और पाखंडों के समर्थक हैं, यहाँ तक हमारे देश के कई वैज्ञानिक और बुद्धिजीवी भी इसके अपवाद नहीं हैं ; जो चकित करता है।

Thursday 14 September 2017

चरमपंथी साम्प्रदायिकवाद की घोर आलोचक के रूप में विख्यात बेंगलुरू की रहने वाली पत्रकार गौरी लंकेश की जघन्य हत्या ने एक बार फिर इस बात पर फोकस बना दिया है कि विभाजन और असहिष्णुता की राजनीति के विरुद्ध आवाज उठाने वालों को लक्ष्य बनाकर हमले किए जाते हैं। 

नरेन्द्र दाभोलकर, गोबिन्द पनसारे तथा एम.एम. कालबुर्गी और अब गौरी लंकेश सहित पत्रकारों, विचारिकों तथा एक्टिविस्टों की हत्याओं का जैसे हाल ही में सिलसिला चल निकला है वह एक निश्चित ढर्रे का हिस्सा है। उक्त सभी लोग तर्कवादी होने के साथ-साथ कट्टरवादी हिन्दुत्व के आलोचक थे और इन सभी की हत्याओं का तरीका एक जैसा है। महत्वपूर्ण बात है कि इनमें से किसी ने भी ऐसी बातें नहीं लिखी थीं जो संविधान द्वारा प्रदत्त अभिव्यक्ति के अधिकार के किसी भी प्रावधान का उल्लंघन करती हों। सितम की बात यह है कि बेशक सभी हत्याओं में हमले का तरीका एक जैसा है तो भी पुलिस किसी अपराधी को न तो काबू कर सकी है और न ही किसी संदिग्ध की पहचान कर सकी है। 

Tuesday 5 September 2017

Blue whale: Craze for sadistic suicidal game among children !
ब्ल्यू वेल : घिनौना आत्म घाती खेल !
गूगल ट्रैंड्स की हालिया रिपोर्ट के अनुसार ग्लोबल रैंकिंग में जानलेवा गेम ‘ब्ल्यू व्हेल चैलेंज’ के बारे में सबसे ज्यादा सर्च करने वाली सूची में भारत तीसरे स्थान पर है। देश में इस चैलेंज को सर्च करने वाले टॉप 30 शहरों की सूची में गत 12 महीनों के दौरान कोलकाता दुनिया भर में टॉप पर था यानी कोलकाता में इस जानलेवा गेम को सबसे ज्यादा सर्च किया गया।
यह खतरनाक तरह के चैलेंज देने वाली गेम है। इस खेल में अलग-अलग काम करने को कहा जाता है। जैसे कोई डरावनी फिल्म देखना, कोई जोखिम भरा काम करना। हर चैलेंज को पूरा करने पर हाथ पर एक कट करने के लिए कहा जाता है। चैलेंज पूरा होते-होते आखिर तक हाथ पर व्हेल की आकृति बनती है। इस खेल का आखिरी टास्क आत्महत्या है। ‘द ब्ल्यू व्हेल गेम’ को रूस के 25 वर्षीय युवक फिलिप बुडेकिन ने 2013 में बनाया था। रूस में इस गेम में सुसाइड का पहला केस 2015 में सामने आया था। इसके बाद फिलिप को जेल की सजा हो गई।
हालांकि, फिलिप दावा करता है कि यह गेम समाज की सफाई के लिए है क्योंकि खुदकुशी करने वाले ‘बायोलॉजिकल वेस्ट’ होते हैं। इसके अलावा हाल ही में रूस में ही एक 17 वर्षीय किशोरी को भी गिरफ्तार किया गया है जो इस गेम की एडमिनिस्ट्रेटर बताई जाती है। परंतु चिंता की बात यह है कि कुंठा, तनाव, अवसाद से ग्रस्त बच्चे इस गेम की ओर आकर्षित होते चले जा रहे हैं।

Saturday 2 September 2017

पिछले महीने दिल्ली में जब तीन सीवर सफाई कर्मचारियों की मौत सीवर में काम करते हुए दम घुटने से हुई तो सारे देश का ध्यान इन लोगों की तरफ गया लेकिन सिर्फ एक-दो दिन के लिये ही और बाद में ये लोग भुला दिये गये । ये लोग एक दिन के लिये ही अखबारों की सुर्खियों में जगह बना सके लेकिन दूसरे दिन ही गायव हो गये । वैसे तो टीवी मीडिया बेमतलब की बातों को लेकर सारा दिन चिल्लपौं करता रहता है और ये चिल्लाहट यहाँ तक बढ़ जाती है कि लोग तंग आकर चैनल बदलने के लिये मजबूर हो जाते हैं या फिर टीवी ही बन्द कर देते हैं लेकिन इस खबर को टीवी मीडिया ने तीन लोगों की अकस्मात मौत की खबर की तरह दिखा कर जाने दिया । मीडिया ने ये दिखाने की कोशिश नहीं की कि ये लोग प्रशासनिक और सामाजिक लापरवाही के कारण असमय मौत के मुंह में चले गये हैं । सिर्फ एनडीटीवी के रविश कुमार ने अपने प्राईम टाईम कार्यक्रम में दो दिनों तक इन लोगों की समस्या को विस्तार से देश के सामने रखा । ये भी एक विडम्बना ही है कि सिर्फ एक महीने में दिल्ली के अन्दर सीवर कर्मियों की मौत की चार घटनायें हुई और हम तक केवल एक ही घटना की रिपोर्टिंग पहुँच पाई क्योंकि अन्य तीन घटनाओं पर किसी ने ज्यादा ध्यान ही नहीं दिया । ये घटनायें कब हुई किसी को पता भी नहीं चला, वैसे इसमें कोई हैरानी वाली बात है भी नहीं क्योंकि देश में सीवर कर्मियों के सीवर में दम घुटने से होने वाले मौतों की खबर आती ही रहती है और ये रोज कहीं न कहीं होती रहती है, इन पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत कोई नहीं समझता है । मेरा स्पष्ट रूप से मानना है कि किसी लेख या कार्यक्रम द्वारा इन लोगों की समस्या को सम्पूर्ण रूप में समझा नहीं जा सकता है । लेकिन सच यह भी है कि अगर मीडिया इन लोगों की समस्याओं को सरकार तक पहुँचाये तो इन लोगों के साथ हो रही दुर्घटनाओं से सरकार की नींद खुल सके और सरकार इन दुर्घटनाओं को रोकने के लिये कोई कार्यक्रम लेकर आये ।
The government has not had a successful 10 days. Last week, its legal strategy to deny fundamental rights to Indian citizens fell apart after a nine-judge Supreme Court Constitution bench unanimously upheld a right to privacy. The next day a Bharatiya Janata Party government in Haryana was unable to maintain law and order after the conviction of a religious leader for rape, leading to widespread violence despite knowing it was likely in advance. On Wednesday, a report from the Reserve Bank of Indiaconfirmed what had long been suspected: That demonetisation has been an economic failure, with very few benefits at a steep cost. And on Thursday, it emerged that the economy is also on shaky territory, with Gross Domestic Product growth down to 5.7% in the first quarter of 2017

Wednesday 30 August 2017

दरबारी पूंजीपतियों के आर्थिक भ्रष्टाचार लूट खसोट एवं money laundering [काले धन को सफेद बनाना ] पर चयनात्मक ख़ामोशी क्यों ???
पिछले वर्ष अंग्रेजी दैनिक हिन्दू के केंद्रीय सम्पादक तथा जाने माने प्रतिष्ठित खोजी पत्रकार जोसी जोसफ की नवीनतम पुस्तक  " A Feast of Vultures-The Hidden Business of Democracy in India [गिदों की दावत - प्रजातंत्र का गोपनीय धंधा ]प्रकाशित हुईं है जिस में प्रजातंत्र की आड़ में आर्थिक एवं राजनीतिक भ्रष्टाचार का विस्तृत व्योरा दिया गया है. [पृष्ट २१५-२१६].
वर्ष २०१४ के आम चुनाव के आसपास भारत सरकार की आर्थिक अपराध शाखा को अदानी ग्रुप के एक बडे आर्थिक घोटाले का पता चला  . Directorate of Revenue Intelligence [DRI] के अनुसार अदानी ग्रुप ने बिजली उपकरणों के आयात के लिए चीन तथा साउथ कोरिया को ९,०४८.८ करोड़ को  भुगतान घोषित किया जबकि वास्तव में केवल ३,५८०.८ का भुगतान किया गया . शेष ५,४६८ करोड़ दुबई के रास्ते Electrogen Infra Holdings के खाते में ट्रान्सफर किया गया जिस का संचालन अदानी भाईओं में वरिष्ट शांति लाल अदानी करते हैं . नियम अनुसार इस काले धन पर तिगुनी पेनालिटी का प्रावधान है जिस के अनुसार अदानी ग्रुप पर १५००० करोड़ की पेनालिटी बनतीं है .अदानी की प्रधानमंत्री के साथ मित्रता और अपनापन एक खुली किताब है . न तो मोदी सरकार की नज़र में यह आर्थिक घोटाला आर्थिक भ्रष्टाचार की परिभाषा में आता है और न ही ग़ुलाम मीडिया ने इस लूट खसोट का संज्ञान लिया है या किसी प्रकार की चर्चा की है .
#भ्रष्टाचार_मुक्त_भारत !


Tuesday 22 August 2017


देश भक्ति के नवीनतम आयाम !
@ सिनेमाघर में राष्ट्रगान के समय खड़ा होना राष्ट्र प्रेम की पहचान !
@ भारत माता की जय बोलना आप की निजी सुरक्षा का आश्वासन !
@ वन्देमातरम् बोलना न्यायिक आदेशों का पालन !
याद रखें एक नागरिक के रूप में आप के केवल कर्तव्य हैं अधिकार नहीं !अधिकारों के अधिकार विभिन्न सेनाओं के नाम पंजीकृत हैं  !

Friday 18 August 2017

हिंदी व्यंग्य [satire] !🤭🤭🤭
मुंबई। मुंबई में एक संस्था ने नेतागीरी पर कोर्स शुरू कर दिया है*। पार्टी लाइन से ऊपर उठकर इसमें सच्ची राजनीति सिखाई जाएगी। कल तक इसके सिलेबस को लेकर सस्पेंस बरकरार था, लेकिन hindisatire ने इसका सिलेबस ढूंढ निकाला है। इस कोर्स में ये 9 चीजें सिखाई जाएंगी…
पाठ 1 : जुमलेबाजी
इसमें बड़े-बड़े जुमले बनाया सिखाया जाएगा। इसके लिए एक दिन के लिए मोदीजी को स्पेशल गेस्ट फेकल्टी के तौर पर बुलाया जा सकता है। वैसे बीच-बीच में प्रैक्टिकल नॉलेज के लिए सिद्धू पाजी उपलब्ध रहेंगे।
पाठ 2 : सोशल इंजीनियरिंग
जातियों को कैसे साधा जाएं, यह सिखाया जाएगा। इस पाठ के लिए गेस्ट फेकल्टी के तौर पर लालू, मुलायम और मायावती की स्पेशल क्लासेस लगवाई जाएंगी।
पाठ 3 : पैसों की उगाही
राजनीति के लिए ये सबसे जरूरी चीज है। इसमें यह बताया जाएगा कि कैसे छोटे-छोटे कार्यक्रमों के लिए बड़े-बड़े मुर्गे तलाशकर पैसे उगाहे जा सकते हैं।
पाठ 4 : धर्म का तड़का
राजनीति इसके बगैर अधूरी है। इसमें यह सिखाया जाएगा कि लोगों को धर्म के नाम पर कैसे पोलेराइज करना है। इसके लिए किन्हें बुलाया जाएगा, कोर्स संचालकों ने इसका उल्लेख करना जरूरी नहीं समझा।
पाठ 5 : बेचारापन
राजनीति में कई बार लोगों की सहानुभूति हासिल करने के लिए बेचारा दिखना भी जरूरी हो जाता है। इस पाठ को केजरीवाल के सहयोग से तैयार किया गया है। उन्होंने तीन-चार क्लासेस लेने पर भी सहमति जताई है।
पाठ 6 : ब्लैकमनी का इस्तेमाल
इसमें यह सिखाया जाएगा कि ब्लैकमनी चाहे आपकी हो या आपके किसी रिश्तेदार की, उसका राजनीति में कैसे समुचित इस्तेमाल किया जा सकता है।
पाठ 7 : मुंहतोड़ गालियां
यह भी सच्ची राजनीति के लिए जरूरी गुण है। इस पर 30 कक्षाओं का पूरा-पूरा एक पाठ रखा गया है। ममता बैनर्जी और गिरिराज सिंह को बतौर गेस्ट फेकल्टी बुलवाया जाएगा।
पाठ 8 : धौंसपट्‌टी और प्रलोभन
चुनाव जीतने के लिए कैसे धौंसपट्‌टी और प्रलोभन दिए जा सकते हैं, यह सिखाया जाएगा। इस पाठ के लिए दलीय राजनीति से ऊपर उठकर सभी दलों के एक-एक नेता को गेस्ट फेकल्टी के तौर पर इनवाइट किया जाएगा।
पाठ 9 : राहुल बनने से कैसे बचें
यह सिलेबस का सबसे रोचक और जरूरी पाठ है जिसे अंत में पढ़ाया जाएगा। इसमें राहुल गांधी बनने से बचने की टिप्स दी जाएगी।🤓🤓🤓
* संदर्भ : नवभारत टाइम्स [१८ अगस्त] में प्रकाशित समाचार !

Wednesday 16 August 2017

आज हमें और हमारे देश को आजाद हुए 70 साल हो गए हैं। सभी आजादी की खुशियां मनाते हैं, सिवाय हम सबकी गंदगी साफ करने वाले हमारे भाई-बहन कर्मचारियों के। इनकी हालत तो आजादी से पहले भी ऐसी ही थी और आजादी के बाद भी वैसी ही है। इनके पास किसानों की तरह न तो जमीनें हैं और न ही अपने घर। 

कर्ज तले दबे इन सफाई कर्मचारियों का तो कर्ज माफ करने का भी कोई प्रावधान तय नहीं किया गया। क्या सरकारों की बेरुखी ऐसे समाज के साथ ही रहेगी जो हमारी गंदगी साफ करते हैं? कब सरकारों की इस समुदाय के लिए इच्छाशक्ति जागेगी? कब इन पर हो रहे अत्याचार बंद होंगे?  कब ये लोग आजाद देश में आजादी की जिंदगी जी सकेंगे? मैं रोज सुबह आंख खुलते ही जब समाचार पत्र पढ़ता हूं तो कहीं न कहीं शर्मसार करने वाली छपी खबर सामने आ जाती है। कभी पंजाब में, कभी दिल्ली में, कभी इधर तो कभी उधर। खबर एक जैसी ही होती है ‘सीवरेज में गंदगी साफ करने उतरे सफाई कर्मियों की जहरीली गैसों से दम घुटकर मौत।’ सिर्फ मरने वालों की संख्या ही अलग-अलग होती है। 

केन्द्र सरकार का सबसे बड़ा अभियान स्वच्छता का है। लेकिन हैरानी की बात तो यह है कि सीवरेज की सफाई करते वक्त देश भर से आने वाली सफाई कर्मियों की मौतों को लेकर कोई हलचल नहीं है। आजकल हम सैनीटेशन का मतलब सिर्फ शौचालय ही समझते हैं। मगर,इसका बड़ा हिस्सा है शहरों की सफाई और सीवरेज का ट्रीटमैंट करना। स्वच्छता के ज्यादातर विज्ञापन शौचालय को लेकर ही बने हैं, कचरा फैंकने को लेकर बने हैं, मगर सफाई कर्मियों की सुरक्षा, उनके लिए जरूरी उपकरणों का जिक्र कहीं नजर नहीं आता। ऐसा क्यों कर रही हैं सरकारें? क्यों नजरअंदाज हो रहे हैं गरीब दलित लोग जो एक समय की रोटी के लिए उस गंदगी में उतर जाते हैं जहां बीमारी तो तय ही है लेकिन मौत कब दस्तक दे दे, किसी को पता नहीं। 

Tuesday 15 August 2017

यह कैसा प्रजातंत्र-यह कैसी विडम्बना ???
प्रधानमंत्री अपनी पसन्द के ट्टवीट करते हैं,योजनाओं का उदघाटन करते हैं,चुनावी सभाओं में भाषण देते हैं , विश्व स्तर पर सुनते सुनाते हैं और नियमित रूप से अपने मन की बात परोसते हैं परन्तु प्रत्यक्ष प्रश्न उत्तर सेशन एवं प्रेस कांफ्रेंस ( जहां असुविधाजनक प्रश्न भी पूछे जा सकते हैं) के अभाव में सम्भवतः वह जनता की बात सुनना ही नहीं चाहते ।वह देश के पहले प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने प्रेस कांफ्रेंस में बोलने की परम्परा को लगभग समाप्त ही कर दिया है ।इस के साथ साथ प्रजातंत्र का चौथा खम्मा (मीडिया) जिस का अधिकांश भाग अपने निहित स्वार्थों के खातिर सरकारी तुष्टीकरण में लगा हुआ है अपनी आधारभूत विश्वसनीयता खो चुका है। एक तरफा विचार परोसने का क्रम किसी भी दृष्टिकोण से जन हिताय या प्रजातांत्रिक नहीं हो सकता है ।चिंता और चिंतन का विषय यह भी है कि अधिनायकवादी सोच के प्रतीक के रूप में संघ का शीर्षस्थ नेतृत्व केवल समर्पित विरोध और विरोधियों को बर्दाश्त करने को तैय्यार है न कि किसी सकारात्मक विरोध या विरोधियों को। स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर त्रिपुरा के मुख्यमंत्री की संविधानिक अभिव्यक्ति का गला घोंटना इसी अधिनायकवादी सोच का एक नमूना है ।राज्य सभा में वर्चस्व स्थापित होने के बाद क्या-क्या गुल खिलेंगे- इस की कल्पना स्वतः की जा सकती है ।

Monday 14 August 2017

यह कैसी स्वतंत्रता ?
"आज़ादी " के 70 वर्ष गुज़र जाने के बाद भी आज भी राज्य पर नियंत्रण और सत्ता एक वर्ग विशेष के हाथों में केंद्रित है जो आज्ञाकारी नौकरशाही की सहायता से पूंजीपति वर्ग के हितों के संविधानिक रक्षक (constitutional custodian) का दायित्व निभाने का कार्य कर रहा है. चेहरे बदल जाते हैं परन्तु मूल शोषणकारी व्यवस्था में कोई परिवर्तन नहीं होता. ऐसी जनविरोधी व्यवस्था के वर्चस्व के लिए आर्थिक परिवर्तन का नारा दिया जाता है न कि मानसिक विकास का.यदि कोई समाज में समुचित मूलभूत व्यवस्था परिवर्तन की बात करता है तो उसे "देशद्रोही आतंकवादी "परिभाषित किया जाता है.
आज क्रांतिकारी कवि फैज़ अहमद फैज़ की अभिव्यक्ति मन मस्तिष्क में गूंज रही है :-
"यह दाग दाग उजाला, यह शब गुज़ीदा सहर,
वह जिस का इन्तज़ार था हम को,
यह वह सहर तो नहीं,
यह वह सहर तो नहीं, जिस की आरज़ू लेकर,
चले थे यार कि मिल जाएगी कहीं न कहीं,
फलक के दशत में,
तारों की आखिरी मंज़िल.[This dawn dappled with shadows of twilight,
this is not the dawn for which we waited all night,
this is not the dawn that we had hoped for,
when we comrades set out on our march to the hope,
that somewhere in the vast wilderness,we will find our destination beyond the stars]".

Sunday 6 August 2017

चोटी काटना: एक भीड़ उन्माद ;
अन्धविश्वास बढानें तथा तांत्रिकों की रोजीरोटी अर्जित करवाने की सुनिश्चित तर्कहीन योजना !
भारतीय समाज में इस तरह का मास हिस्टीरिया बहुत दिनों के बाद देखा गया है। इससे पहले 2006 में हजारों लोग यह अफवाह सुनकर मुंबई के एक समुद्र तट पर पहुंचने लगे कि वहां समुद्र का पानी अचानक मीठा हो गया है। इसी तरह 2001 में मुंहनोचवा या मंकीमैन की अफवाह फैली थी। दिल्ली में सैकड़ों लोगों ने दावा किया कि मुंहनोचवा ने उन पर हमला किया, लेकिन जब ऐसी खबरों पर टीवी की टीआरपी आनी कम हो गई तो धीरे-धीरे करके ऐसे किस्से भी आने बंद हो गए। और पीछे जाएं तो 21 सितंबर 1995 की सुबह गणेश मूर्तियों के चम्मच से दूध पीने की अफवाह समूचे देश में फैल गई, जबकि चम्मच में दूध भरकर उसे किसी भी पत्थर से सटा दिया जाए तो वह पत्थर की तरफ जाने लगता है।
कहीं यह जनता को उनकी दैनिक आर्थिक एवं सामाजिक समस्याओं से ध्यान हटाने का भारतीय भजन मंडली पार्टी का हथकंडा या नवीनतम टोटका तो नहीं है ???
इस संदर्भ में टीवी चैनलों का रोल शर्मनाक तथा निंदनीय है जो अपने निज स्वार्थ एवं टी आर पी के लिए इस भीड़ उन्माद का खूब प्रचार प्रसार कर रहे हैं !😡😡😡😡😡

Wednesday 2 August 2017

बेरोजगारों को रोजगार का सपना दिखाकर भारी बहुमत से सत्ता में आये प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अच्छे दिन के वादे शिक्षित बेरोजगारों के लिये शेखचिल्ली के ख्वाब साबित हुए हैं। चपरासी की 5 पास नौकरी के लिये जहां एमबीए, बीटेक, एमटेक, ग्रेजुएट युवा लाइनों में लगे हुए हैं वहीं दूसरी तरफ संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी रिपोर्ट में मोदी सरकार को तो कटघरे में खड़ा ही किया गया है बल्कि भारत में बढ़ती बेरोजगारों की संख्या ने भी भयावह कहानी बयां की है। जो आने वाले दिनों में बड़े विवादों का कारण बन सकती है।
पिछले दिनों मोदी की बीजेपी सरकार को आए तीन साल पूरे हो गए हैं, लेकिन मोदी के वादे अभी भी अधूरे पड़े हैं। मोदी ने सरकार बनने से पहले युवाओं से वादा किया था कि जैसे ही उनकी सरकार आती है, वे सबसे पहले देश के 1 करोड़ युवाओं को नौकरी देने का काम करेंगे, लेकिन तीन साल बीत जाने के बाद अभी भी देश में करोड़ों की संख्या में युवा बेरोजगार बैठे है। बेरोजगारों का सपना था कि अगर मोदी जी की सरकार बनी तो उनके अच्छे दिन आ जायेंगे और उन्होंने मोदी जी की रैलियांे में तो जय-जयकार की ही बल्कि गांव की गलियों से लेकर महानगरों तक घूम-घूमकर मोदी के पक्ष में जमकर वोटिंग भी कराई। उस समय युवाओं में मोदी के प्रति जो जोश और जुनून था वह सरकार बनने के बाद ठण्डा होता नजर आ रहा है। बल्कि सरकार के प्रति आक्रोश की झलक भी दिखाई दे रही है, जो कभी भी लावा के रूप में उभर सकती है। आखिर हो भी क्यों ना, जब आज तीन साल बाद भी ना तो बेरोजगारों के चेहरों पर चमक दिखाई दे रही है और न ही उनके सपने साकार होते नजर आ रहे हैं। 
FOURTEEN IDIOSYNCRATIC HINDU RITUALS  !
If a person of lower caste adopts the occupation of a higher caste, the king ought to deprive him of all his property and expel him from his kingdom. (Manusmriti, X: 96)
If a Shudra (lowest caste member) dares to give moral lessons to a Brahmin, the king is to get him punished by pouring hot oil in his ear and mouth. (Manusmriti, VII: 272)
Similarly, if a Shudra occupies the same seat as a Brahmin, he is to be punished by branding his waist (with hot rod) or getting his buttocks cut! (Manusmriti, VIII: 281)
Even if the husband is morally degraded, engaged in an affair with another woman and is devoid of knowledge and other qualities, the wife must treat him like a god. (Manusmriti, V: 154)
Women should never be allowed by their guardians to act independently. (Manusmriti, IX: 2)
If a person of lower varna (caste) has sexual intercourse with a woman of higher varna, with or without her consent, he is to be killed. (Manusmriti, VIII: 366)
If a Brahmin (highest caste) abuses a Shudra (lowest caste), he is to be fined mildly, but if a Shudra abuses a Brahmin, he is to be killed. (Manusmriti, VIII: 267/268)
If a Brahmin (highest caste) kills a Shudra (lowest caste), he is to perform penance by killing a cat, frog, owl or crow, etc. (Manusmriti, XI: 131)
Non-believers, including freethinkers, rationalists and Buddhists, are not to be entertained respectfully as guests; though, mercifully, they may be given food. (Manusmriti, MS IV: 30)
The families of non-believers are destroyed sooner than later. (Manusmriti, MS III: 65)
If a woman should not grant her man his desire, he should bribe her. If she still does not grant him his desire, he should hit her with a stick or with his hand, and overcome her, saying: 'With power, with glory I take away your glory!' Thus she becomes inglorious. (Brihadaranyaka Upanishad 6.4.7)
It is the highest duty of the woman to burn herself after her husband. (Brahma Purana 80.75)
When a woman, proud of her relations [or abilities] deceives her husband (with another man), then the king should [ensure that] she be torn apart by dogs in place much frequented by people. And the evil man should be burnt in a bed of red-hot iron. (Manusmriti, MS VIII: 371/372)
Offering presents (to a woman), romping (with her), touching her ornaments and dress, sitting with her on a bed, all these acts are considered adulterous acts. (Manusmriti, MS VIII: 357)
Tomorrow I will make a similar list for Muslims and the Quran.

Tuesday 1 August 2017

नेहरू संघ परिवार की नज़र में अवांछित क्योंकर ???
यह जग ज़ाहिर है कि संघ परिवार की भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के प्रति विचारात्मक विद्वेष के कारण महामहिम राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द के प्रथम भाषण में नेहरू का नाम तक नहीं आया।यह महत्वपूर्ण नहीं है कि भाषण छद्म लेखक ने लिखा था या राष्ट्रपति की अपनी रचना थी ।प्रासंगिक यह है कि ऐसा जानबूझ कर किया गया इतिहास को भगवाकरन करने के उद्देश्य से।मैं मानता हूँ कि नेहरू कई विरोधाभासों तथा अंतर्विरोधों के कारण प्रगतिशीलता की कसौटी पर खरे नहीं उतरते हैं परन्तु संघ परिवार की संकीर्ण सम्प्रदायिक ब्राह्मणवादी सोच की तुलना में वह अवश्य प्रगतिशील की श्रेणी में आते हैं ।संघ परिवार हिन्दू राष्ट्र का पक्षधर रहा है परन्तु नेहरू धर्म निरपेक्ष प्रजातंत्र के पक्षधर थे। संघ परिवार प्राचीन कपोल कल्पित संस्कारी विज्ञान तथा हिन्दू धार्मिक ग्रंथों की प्रासंगिकता एवं प्रामाणिकता (कर्मकांडी पाखंड) के पक्षधर रहे हैं जबकि नेहरू मानवतावादी तर्कपूर्ण वैज्ञानिक व्यवहार और चिंतन के पक्षधर थे।नेहरू की पहल पर ही संविधान में 56A (h) का समावेश किया गया जिस के अंतर्गत मानवतावादी तर्कपूर्ण वैज्ञानिक सोच को नागरिकों के मूल कर्तव्य में परिभाषित किया गया। इतिहास गवाह है जब हिन्दू पर्सनल कानून में सार्थक सुधार की दिशा में तथा नारी के सामाजिक उत्थान के उद्देश्य से जब अम्बेडकर ने हिन्दू कोड बिल प्रस्तुत किया तो संघ परिवार ने उस बिल को हिन्दू कोढ (leprosy) बिल की संज्ञा देकर डट कर विरोध किया क्योंकि यह कानून मनुवादी व्यवहार और चिंतन को काफी हद तक निरस्त करता है ।त्रासदी देखिए आज 21वीं शताब्दी में भी संघ परिवार भारतीय संविधान की तुलना में ब्राह्मण वर्चस्ववादी शोषणकारी मनुवादी व्यवहार और चिंतन को प्राथमिकता देता है ।

Monday 31 July 2017

The main reason the President (or his speechwriter) did not mention India’s first Prime Minister was that the Sangh Parivar which sent him to this high office is ideologically opposed to Nehru. They wanted (and still want) a Hindu Rashtra; Nehru insisted that if India was anything at all, it was not a Hindu Pakistan. They glorify our past and ancient scriptures; Nehru instead sought to build a modern society by means of reason and science. The Sangh Parivar even opposed democracy, the RSS journal Organiser writing in 1952 that Nehru would ‘live to regret the failure of universal adult franchise in India’. They think that men are women’s guardians; whereas Nehru believed that women were in all respects fully equal to men.

Sunday 30 July 2017

वंदेमातरम् पर ज़ोर ज़बरदस्ती क्यों  ?
एक  असाधारण घटनाक्रम के परिवेश में मद्रास हाई कोर्ट का आश्चर्यजनक निर्देश सामने आया है कि पूरे राज्य के शिक्षा संस्थानों तथा निजी एवं सरकारी कार्यालयों में वंदेमातरम् का गायन अनिवार्य होना चाहिए .एक भारतीय के नाते में कई बार वंदेमातरम् गुनगुनाता हूँ और कई समारोहों में सामूहिक रूप से भी गाया है लेकिन मैं  नहीं समझता हूँ कि अपने आप को देशभक्त प्रमाणित करने के लिए मुझे या किसी अन्य नागरिक को कोर्ट का निर्देश ज़रूरी है. वंदेमातरम् गाना या न गाना हर नागरिक की भीतरी संवेदना है जो समय समय पर भिन्न भिन्न कारणों पर निर्भर है . देशभक्त होने का एकमात्र मापदंड वंदेमातरम् क्यों ?न्यायिक सक्रियता [Judicial activism] के विरोधाभास के प्रतीक के रूप में पहले भी एक हास्यप्रद निर्णय /निर्देश है कि सिनेमा हॉल में फिल्म देखने पर राष्ट्र गान के समय खड़ा होना अनिवार्य है .क्या मूलभूत संविधानिक अधिकारों में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अंतर्गत  गाना या न गाना शामिल नहीं है ?क्या यह निर्देश बीमार अथवा शारीरिक /मानसिक विकलांग नागरिकों पर भी ज़बरदस्ती लागू किया जाएगा ? मैं मानता हूँ कि सुप्रीमकोर्ट को इस निर्देश को संज्ञान में लेकर निरस्त करना चाहिये.
वंदेमातरम् गाना बंकिमचन्द्र चटर्जी के उपन्यास "आनंदमठ " से लिया गया है जो कथानक के अनुसार हिन्दू विद्रोही मुस्लिम शासकों के विरुद्ध गाते हैं . आज़ादी के पश्चात् वंदेमातरम् को राष्ट्रिय गान के रूप में मान्यता देने का प्रस्ताव ज़रूर आया था लेकिन संविधानिक सभा ने इस गान की सम्प्रदायिक पृष्टभूमि के कारण इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया . क्या संविधानिक सभा के माननीय सदस्य जिन में नेहरु ,पटेल तथा आंबेडकर जैसे स्वतंत्रता सेनानी शामिल हैं  देशभक्त न थे जिन्होंने वंदेमातरम् के स्थान पर जनगणमन गान को राष्टगान के रूप में  प्राथमिकता दी ?

Friday 28 July 2017

सेक्युलर से कम्युनल बनने का सफ़र वह भी चन्द घंटों में !

रात को ही क्यों हुई सारी कवायद?

बात बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की ही हो रही है। नीतीश कुमार ने बुधवार की शाम को अपनी अंतरात्मा की आवाज पर इस्तीफा दे दिया था। इस्तीफा देते ही नीतीश का रंग बदलने लगा। 12 मिनट बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष करने के लिए बधाई दे दी। इधर, नीतीश का रंग और भी तेजी से बदल रहा था। केवल दो घंटे में ही वे अपना मूल रंग छोड़कर केसरिया बन गए थे।केवल चन्द घंटो में सेक्युलर से कम्युनल बनने का कायाकल्प असाधारण चमत्कार से किसी भी द्रष्टिकोण से कम नहीं आँका जा सकता है ! यह सारी कवायद रात को इसलिए की गई ताकि सोते हुए गिरगिटों को पता नहीं चल सके। दिन में करते तो गिरगिट यह कहकर फच्चर फंसा सकते थे कि रंग बदलने का अधिकार केवल उन्हें हैं। इंसान कैसे बदल सकता है!

हत्या के आरोपी को समर्थन देने की मजबूरी से लालू भी बचे …

राजनीति में ज्ञानचक्षु वैसे तो खुलते नहीं हैं। खुलते भी हैं तो देर से। जैसे ही नीतीश ने रंग बदला, उधर लालू के ज्ञान चक्षु एक्टिव हो गए। उन्होंने कहा, “ ओह हो, नीतीश तो हत्या के आरोपी हैं।” उधर नितीश की सुप्त  अंतरात्मा भी एक वर्ष और कुछ महीनों के बाद जागी और उसके मन मस्तिष्क में ज्ञानमय चेतना जागी " यह में क्या कर रहा था !जूनियर लालू तो केवल आरोपी मुलजिम है सीनियर लालूजी तो सजायाफ्ता मुलजिम हैं ! एक गुप्त सूचना के अनुसार केसरिया और कम्युनल चोला पहनने के बाद भी नीतीशजी परेशानी के आलम में हैं क्योंकि उनके नए उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी भी कई धाराओं के अंतर्गत आरोपी मुलजिम हैं !

Thursday 27 July 2017

WHEN KARGIL DAY WAS NOTCHED UP AS #BIHAR_VIJAY_DIWAS  !
Within a space of 24 hours, a chief minister resigns, divests himself of his designated alliance partners, teams up with his declared political rivals and becomes chief minister again after getting sworn in at an unseemly superfast speed by a very obliging Governor. Reads like the script of a second-rate Hindi film from the 1980s. 
असाधारण चमत्कारिक विकास  !
हमारी पावन भूमि पर चमत्कारों का इतिहास अनन्त काल से चला आ रहा है लेकिन जब से ईश्वरीय प्रतीक विकास पुरुष का अवतरण हुवा है अब विदेशी धरती पर भी चमत्कार नज़र आ रहे हैं .
१. विकास पुरुष के रूस  की धरती पर कदम रखने के पावन अवसर पर रिलायंस वाणिज्य साम्राज्य ने ६ बिलियन बिज़नस डील पर अंतिम मुहर लगाई !
२. विकास पुरुष के ऑस्ट्रेलियाई धरती पर कदम रखने के पावन अवसर पर अदानी ग्रुप ने १६.५ बिलियन कोयला डील पर अंतिम मुहर लगाई !
३. विकास पुरुष के फ्रांस की धरती पर कदम रखने के पावन अवसर पर रिलायंस तथा दस्सौल्ट के बीच कई बिलियन के टाई अप पर समझौता डील हुईं !
४. विकास पुरुष के बंगला देश की धरती पर कदम रखने के पावन अवसर पर बांग्लादेश और रिलायंस पॉवर के बीच टाई अप की डील पर अंतिम मुहर लगी !
५. विकास पुरुष के अमेरिकन धरती पर कदम रखने के पावन अवसर पर रिलायंस डिफेन्स ने INR ३००० करोड़ वार्षिक डील पर अंतिम मुहर लगाई !
६. विकास पुरुष के इज्रिएल की धरती पर कदम रखने के पावन अवसर पर अदानी वाणिज्य साम्राज्य ने unmanned aerial vehicle [ड्रोन हवाई जहाज़ ] निर्माण के फील्ड में डील पर अंतिम मुहर लगाई !
सावधान :

Tuesday 25 July 2017

व्यंग्य यथार्थ के आस पास ;
#हुंकार_बम !
आजकल चीन और पाकिस्तान दोनों कुछ ज्यादा ही गुस्ताखी भरी आंखें दिखा रहे हैं ।निसन्देह विश्व हिन्दू वर्चस्व के दिव्य प्रतीक के रूप में पावन देश असाधारण रूप से शक्तिशाली है और युद्ध में किसी भी विरोधी को धूल चटा सकता है परन्तु कांग्रेसी षड्यंत्र के परिणामस्वरूप गोला बारूद केवल 10-15 दिनों के लिए पर्याप्त बताया जा रहा है-अतः अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त हिन्दू शिरोमणि वैज्ञानिक प्रातः स्मरणीय दीनानाथ बत्रा की अध्यक्षता में एक विशेषज्ञ कमेटी का गठन हुआ है जो 11 दिनों के अन्दर महाज्ञानी वैज्ञानिक ग्रंथों वाल्मिकी रामायण तथा महाभारत में वर्णित #हुंकार_बम की शास्त्रोक्त विधि का क्रियात्मक ज्ञान का पता लगायेंगे जिस के सौजन्य से महात्मा कपिल देव ने केवल अपनी हुंकार मात्र से महाराजा सगर के 60,000 शक्तिशाली पुत्रों को भस्म कर दिया था (वाल्मिकी रामायण,बाल कांड सर्ग 40, श्लोक 30) तथा युधिष्ठिर के ब्राह्मण दरबारियों ने महाभारत में हुंकार मात्र से चार्वाक को भस्म कर दिया था (महाभारत,शांति पर्व,अध्याय 38, श्लोक 35-36-37)।
स्पष्ट है हिन्दू राष्ट्र के एक और महाज्ञानी इन्द्रेश कुमार ने पूजा और निमाज़ से पहले इन्ही मन्त्रों के 5-5 बार उच्चारण का आवाहन किया है ।यदि चीन और पाकिस्तान बाज़ न आये तो ठीक 11 दिनों के पश्चात उन का विनाश सुनिश्चित है।
हरि ॐ हरि ॐ हरि ॐ !
व्यंग्य यथार्थ के आसपास ;
वर्ष २०१५ की पोस्ट जो आज भी प्रासंगिक है !

Monday, 26 October 2015

व्यंग्य :
21वीं शताब्दी में प्राचीन अदभुत विज्ञान की प्रासंगिकता !
जब से दीनानाथ बत्रा और बाबा रामदेव की प्रेरणा से मोदी जी, विश्व स्तर पर, प्राचीन भारतीय विज्ञान के ब्रेंड़ एम्बेस्ड़र बने हैं -पूरे विश्व में भारतीय विज्ञान की गौरवशाली परम्पराओं और ठोस असाधारण उपलब्धियों की चर्चा चारों दिशाओं में गूंज रही है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (world health organisation )ने इस चर्चा का संज्ञान लेते हुए ,डा. रिचर्ड़सन के नेतृत्व में पांच शीर्षस्थ वैज्ञानिकों का प्रतिनिधि मंडल भारत भेजा है जो 111 दिनों में निम्न विषयों का गहन अध्ययन करेगा :-
# कलश (घड़े) से महाॠषि अगस्त्य और वसिष्ठ का जन्म. (संदर्भ ऋग्वेद 7/33/11-13).
# कार्तिकेय का गंगा नदी से जन्म, (संदर्भ वाल्मीकि रामायण 1/37/12,14-15,17-18,21-23).
# राजा सगर की पत्नी सुमति द्वारा 60,000 पुत्रों का जन्म. (संदर्भ वाल्मीकि रामायण 1/38/17-18).
# मनु की नाक से बच्चे का जन्म.(संदर्भ विष्णु पुराण 4/2/11).
# गोद में गिरे वीर्य से असंख्य ब्रह्मचारियों का जन्म. (संदर्भ, शिवपुराण, ज्ञानसंहिता 18).
# गिरे वीर्य से हज़ार वर्ष बाद बच्चे का जन्म. (संदर्भ, ब्रह्मावैवर्तपुराण, ब्रह्मखण्ड, 4/23-24).
# लकड़ी से पुत्र का जन्म. (संदर्भ, देवीभागवतपुराण, 1/14/4-8).
# दोने से द्रोणाचार्य का जन्म. (संदर्भ, महाभारत, आदिपर्व, 129/33-38).
# सरकंड़े से कृपाचार्य का जन्म. (संदर्भ, महाभारत, आदिपर्व 129/6-20).
# पुरुष की कोख से पुत्र का जन्म. (संदर्भ, भागवतपुराण, 9/6/26-31).
# जंघाओं और भुजाओं से बच्चों का जन्म. (संदर्भ, भागवतपुराण, 4/14/43-45,4/15/1-5).
# गौमाता से मानव शिशु का जन्म. (संदर्भ, पद्मपुराण, उत्तराखंड, 4/62-65).
# मांस के लोथड़े से 101बच्चों का जन्म. (महाभारत, आदिपर्व, 114/9-13,18-22,40-41).
# अग्नि से दो बच्चों का जन्म. (संदर्भ, महाभारत, आदिपर्व, 166/39,44).
# मछली के पेट से मानव का जन्म. (संदर्भ, महाभारत, 63/64,49-50,59-61,67-68).
# खीर से गर्भवती होकर दशरथ की पत्नियों द्वारा चार पुत्रों का जन्म. (संदर्भ, वाल्मीकि रामायण, बालकांड़, 16/11/15-20,30).
* विश्वस्त सूत्रों से ज्ञात हुआ है कि गहन अध्ययन के बाद पांच में से चार वैज्ञानिक मानसिक सन्तुलन खो बैठे हैं और वह आगरा के मेंटल हास्पिटल में चिकित्सा लाभ प्राप्त कर रहे हैं.
अन्धविश्वास गुलामी की आधारभुत संजीवनी !
जब बाबर ने 1526 ई. में भारत पर हमला किया तब यहां के शासकों ने उसे रोकने के लिए बहुत से पीर, योगी, जंत्रमंत्र करने वाले इकट्ठे कर लिए थे कि वे अपने धागे, तावीज, भस्म आदि से हमलावर को नष्ट कर देंगे, परंतु किसी का जंत्रमंत्र कोई काम नहीं आया. गुरु नानकदेव, जो इस घटनाक्रम के चश्मदीद गवाह थे, ने लिखा है कि जब शासकों ने सुना कि मीर (बाबर) आ रहा है तो उन्होंने करोड़ों पीरों आदि को इकट्ठा कर लिया, परंतु जब वह आया तो उस की फौजों ने बड़ेबड़े पक्के मकान, मजबूत मंदिर आदि सब आग में जला दिए और राजकुमारों को काट कर मिट्टी में मिला दिया. किसी का कोई जंत्रमंत्र किसी काम न आया, उन से एक भी मुगल अंधा नहीं हुआ : कोटी हू पीर वरजि रहाए जो मीरु सुणिया धाइया. थान मुकाम जले बिज मंदर मुछि मुछि कुइर रुलाइया.. कोई मुगल न होआ अंधा किनै न परचा लाइया.. (आदिग्रंथ, 417-18) इन करोड़ों भभूत, धागे, ताबीज वालों की कृपा से हमलावर इस देश का हाकिम बन गया और सदियों तक के लिए मुगलों का साम्राज्य यहां स्थापित हो गया तथा देश गुलाम हो गया. यदि इन के चक्कर में लोग न पड़ते और शस्त्र उठा कर शत्रु का सामना करते तो वे उसे मिट्टी में मिला सकते थे. परंतु जो शस्त्र के स्थान पर राख, तावीज और धागों में उलझे थे, उन्हें राख में मिलने से कौन रोक सकता था?