Monday 31 December 2018

सरकार इन्फौर्मेशन टैक्नोलौजी एक्ट में कई संशोधन कर के आम चुनाव से पहले शिकंजा कस देना चाहती है ताकि मोदी के पुराने वीडियों, जिन में उन्होंने खुद घृणा फैलाने वाले भाषण दिए हैं, को कोई फौरवर्ड या रीट्वीट न कर सके. यह काम कठिन है पर सरकार के लिए असंभव नहीं है. हमारा कानून चमत्कारों की झूठी कहानियों के प्रचार को संस्कृति प्रसार के प्रमाणपत्र देता रहता है जबकि चमत्कारों के तार्किक विश्लेषणों को धर्मविरोधी कह कर पुराने कानूनों के  तहत रोकता रहता है.
आज देश में फैले अंधविश्वासों का कारण झूठे संदेशों का खुलेआम प्रसार भी है पर सरकार की, अब भाजपा की, पहले की कांग्रेस की, उन्हें रोकने की मंशा नहीं रही. डिजिटल तकनीक से झूठी खबरों पर नियंत्रण के बहाने भाजपा सरकार केवल अपनी पोल खोलने वाली तार्किक और सत्य बातों को झूठी करार दे कर रोकेगी, यह तय है. आईटी एक्ट में संशोधन असल में तर्क और सच को दबाने के लिए है यानी सच की हार होगी, जीत नहीं.

Friday 28 December 2018

जीतने के बाद नरेंद्र मोदी की पार्टी एकदम पलटी मार गई और उस ने ‘विकास’ की स्पैलिंग बदल कर ‘विनाश’ कर दी. नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भजपा की सरकार ने नोटबंदी कर के करैंसी का विनाश कर दिया, उस ने जीएसटी लागू कर के व्यापार का विनाश कर दिया, उस के गुर्गों ने गौरक्षक बन कर कानून व्यवस्था का विनाश कर दिया, उसने लोगों की बातें सुनना बंद कर के लोकतंत्र में जरूरी संवाद का विनाश कर दिया, उस ने मीडिया पर दबाव डाल कर स्वतंत्र व निर्भीक पत्रकारिता का विनाश कर दिया. और सब से बड़ी बात, पिछले दरवाजे से आरक्षण विरोधी बातों को हवा दे कर उस विश्वास का विनाश कर दिया जो देश के शूद्रों व अछूतों (ओबीसी व एससीएसटी) में पनप रहा था कि वे बराबर के हो जाएंगे.

Thursday 27 December 2018

जाने माने अभिनेता नसीरुद्दीन शाह के नाम खुला खत !
डियर नसीरुद्दीन,
मैं आपको बधाई देता हूं कि परेशानी के आलम में भी आप ने होश हवास कायम रखा और बिना किसी झिझक और डर के मन की बात कह दी-यह जानते हुए भी कि मन की बात अभिव्यक्त करने का सुरक्षित अधिकार केवल और केवल शहंशाह के लिए है। कारवां-ए-मुहब्बत वीडियो के वयरल होते ही भक्तजनों और चापलूस मीडिया का कहर टूट पड़ा। राजस्थान के #सेक्युलर मुख्यमंत्री को अजमेर लिटररी फेस्टिवल में आप की भूमिका पर अंकुश लगाना पडा ।आज भगवा राज में एक आम नागरिक की तुलना में गाय का अस्तित्व महा प्रासंगिक है -यह कहना गुनाह ही नहीं गुनाह-ए-अज़ीम है । एक धर्म विशेष से प्रेरित कट्टरवाद , असहिष्णुता तथा घृणा के वातावरण में अपने धर्म निरपेक्ष बच्चों के भविष्य और उनकी सामाजिक सुरक्षा का प्रश्न , केवल आप की चिंता और चिंतन का विषय न होकर हम जैसे लाखों अभिभावकों की चिंता और चिंतन का विषय है।
स्वभाविक जिज्ञासा है, ऐसी पृष्ठभूमि में आप की तार्किक अभिव्यक्ति पर इतना हंगामा क्योंकर बरपा हो गया ? पहला कारण आप का नाम नसीरुद्दीन है (शाह होना तो वरदान है),दूसरा कारण आप लेफ्टिनेंट जनरल ज़मीरुद्दीन शाह के सगे भाई हैं जिन की अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित पुस्तक " सरकारी मुसलमान"में २००२ के गुजरात नरसंहार सम्बंधित कुछ तथ्यों का पर्दाफाश हुआ है- किस प्रकार सूचना के बाद भी पूरे ३४ घंटे ज़मीरूद्दीन शाह के नेतृत्व वाली सहायता हेतु ३००० सैनिकों की टुकड़ी को अहमदाबाद हवाई अड्डे की परिधि में ३४ घंटे रखा गया जबकि खून की होली में गोलियां बरसा रही थीं (We just stayed helplessly in the airfield for almost 34 hours. We could hear gunshots and do nothing) !
बहुप्रचारित गुजरात माडल प्रबंधन पर प्रश्न करना भी अपराध की श्रेणी में आता है और दोनों भाइयों का अपराध महा अपराध की श्रेणी में आता है। अंधभक्तजनों को फिल्म सरफरोश में आपका पाकिस्तानी एजेंट गुलफाम हसन का रोल याद है परन्तु फिल्म हे राम में आप का बापू का रोल याद नहीं आ रहा है- कैसी विडम्बना है ?
जिन्न को दुबारा बोतल में बंद करने का दायित्व अकेले आप का नहीं है बल्कि उन सभी नागरिकों का भी है जो आप की तरह संवेदनशील हैं और आपके साथ चिंता और चिंतन में शामिल हैं।वह सुबह कभी तो आएगी !
(हृदय नाथ) !

Monday 24 December 2018

मंगलवार का पाखंड एवं मंगलवार व्रत कथा  !
हिन्दू धर्म अंधभक्तों के धार्मिक,आर्थिक तथा सामाजिक शोषण के लिए परजीवी ब्राह्मणों के पूर्वजों ने अपने वंश के सम्पूर्ण हित के लिए सप्ताह के सातों दिन व्रत कथाओं का ऐसा प्रपंच   रच रखा है जिस के झाल से यजमान बाहर निकलने की कल्पना भी नहीं कर सकता है  !यह व्रत कथाएँ अन्धविश्वास ,अकर्मण्यता एवं मानसिक दीवालियापन का ठोस आधार है !व्रत पालन धर्म अंधभक्तों के लिए सभी पापों से मुक्तिनिवारण  ,जीवन पर्यन्त सुख शांति ,यश कीर्ति तथा मृत्यु पश्चात् स्वर्ग प्राप्ति की इन्शोरंस पालिसी है जिस के लिए भक्तजन येनकेन प्रकारेण कोई भी कीमत अदा करने को सदा तत्पर रहता है हालाँकि स्वर्ग नरक मोक्ष भवसागर ,वैतरणी आदि आदि  यह सब मात्र कोरा कल्पना शास्त्र है !जब मृत्यु पश्चात् शरीर भस्म हो जाता है तो ऐसे पाखंड का भला क्या औचत्य है ! 
मंगलवार व्रत कथा के अनुसार एक मंगलभ्क्त निसंतान वृद्ध वेद प्राग नामक ब्राह्मण ने किसी दूसरे ब्राह्मण से कन्या ले कर उसका पालनपोषण किया ! कथा अनुसार पूर्व जन्म में उस कन्या ने मंगलवार के नियमपूर्वक व्रत किए तथा विधिवत मंगलवार व्रत कथा सूनी थी !इसी कारण उसके अंगों से सोना निकलता था !उस कन्या का सोमेश्वर से विवाह रचाया गया !चोरों ने उसके पति को मार दिया ! तब प्रथा अनुसार उसने अपने पति के साथ सती होना चाहा तो तथा कथित मंगलवार देवता ने प्रकट होकर उसे ऐसा करने से रोक कर उसके पति को अजर अमर होने का वरदान दे दिया !
भक्तजनों को मंगलवार का व्रत धारण करके , मंगलवार व्रत कथा का तोतारटंत सुनने सुनाने तथा परजीवी ब्राह्मणों के हाथों शोषण का शिकार होकर क्या असाधारण लाभ प्राप्त होता है यह भक्तजन ही बता सकते हैं !वैसे भी यथा राजा तथा प्रजा कहावत के अनुसार आजकल भारतीय भजन मंडली राज में हिन्दू राष्ट्र एजेंडा के अंतर्गत ऐसे पाखंड को खूब सरकारी समर्थन प्राप्त है !
2018 : ludicrous saffron sermons 🙉🙉🙉
Statement 1: Stephen Hawking said the Vedas have theory superior to Albert Einstein's E = mc 2. Statement 2: Cow is the only animal that inhales and exhales oxygen. Statement 3: We need not look to an US observatory for specifics about lunar and solar eclipses; our pundits consulting the Panchang (Hindu calendar) can do better. Statement 4: Cow urine can treat cancer. Statement 5: Yoga is a solution to all problems, including farmer deaths. Statement 6: Ganesha, the elephant god, is proof that India always knew of plastic surgery. Statement 7: Cow dung is more precious than the Kohinoor, even the Supreme Court says so. Statement 8: Darwin's theory of evolution is wrong and needs to be expunged from school and college curricula; nobody ever saw an ape turn into a man. Statement 9: There is no difference between the language of Shah Rukh Khan and Hafiz Saeed. Statement 10: In 2014, after 30 years, 600 crore or 6 billion voters in India (our population is 1.3 billion) provided complete majority to a political party to form government at the Centre. Statement 11: If a person has a cycle, a person aspires a scooter. If a person has a scooter, a person aspires a car. It is natural to aspire. India is getting increasingly aspirational. Statement 12: India has finally been able to electrify all its villages before the set target date and to bear it up, a Nasa map of India on Diwali night.🤔🤔🤔
The attributions, if you must have them, are in the following order - Union minister of science and technology Harsh Vardhan, Rajasthan's education minister Vasudev Devnani, home minister Rajnath Singh, RSS leader Indresh Kumar, Union agriculture minister Radha Mohan Singh, Prime Minister Narendra Modi, BJP spokesperson Sambit Patra, Union minister Satyapal Singh, UP chief minister Yogi Adityanath when he was still not CM, the PM at Davos in January, the PM in London this April, Union minister Piyush Goyal on behalf of the PM, last week.

Sunday 14 October 2018

BURGEONING GURUS IN 'GOD' MARKET ;
21ST CENTURY GURUS;THE OCHRE-ROBED SOCIAL PARASITES !
Despite the influences of the scientific progress and the consequent changed values of life,outlook of the majority segment of society remains by and large the same.It is beyond any logic or comprehension,how vast majority of highly educated beneficiaries of modern science and technology continue to believe in supernatural powers supposedly embodied in Gurus ,who are peddlers of 21st century spiritualism ?It is ironical that gullible and credulous followers still believe that their all problems and miseries are the outcome of their wrong doings in an 'earlier life' and real happiness does not lie in worldly matters but in spiritualism and meditation.This personality disorder and inferiority complex has been greatly exploited since time immemorial by the unscrupulous masquerading in religious garbs. Majority segment of superstitious people of India Whose superstitious beliefs border on ludicrousness and absurdity are being exploited to the hilt in a variety of ways by a horde of Gurus,who publicize themselves as sole authorised middlemen of 'god'.These Godmen are manifesting themselves physically in myriad hideous and funny ways.If they are lined up an amusing comical spectacle of people taking part in funny fancy dress competition will have into view.Some of them have matted locks covering their scalps and beards flowing up to their knees,some covering their bodies with flowing pink or black gowns,some clad only in loincloths [some of them prefer natural birth suit] and so forth. Virtually mesmerized by spacious sophistry of modern day Gurus,credulous believers surrender almost in totality to self styled godmen, on the presumption that being authorized agents of 'god',they are capable of warding off their respective sorrows and pain .
Some friends may say that there are genuine Gurus too. Any way the job of verifying the genuineness of the Gurus is tremendous one. Even Swami Dayanand Saraswati wrote in this aspect that he was disillusioned many times before he was able to find his Guru Virjanand.
The 'holy' books of the Hindus,the Shastras and the Puranas-all constitute towards the creation,maintenance and fattening of the tribe of the Gurus at the expense of the common man who toils incessantly and pours his hard earned money into the laps of these social parasites,The writers and compilers of these scriptures themselves belonged to the class of social parasites and they saw to it that the class interests of their class was safeguarded for generations to come and accordingly hypothesis of spiritualism,salvation and mukti was established .
It will be very relevant to quote here Brihaspati,Guru of ancient rationalism :-
na swargho,na apvargho va,na aiv aatma paarlokika;na aiv varan ashram aadinam kriyashch phaldayika;agnihotram,trayo vedasya tri dhandam,bhasam ghuntham;budhi poorsh hinanam jeevika dhatr nirmita [BRAHASPAT SUTRA]. Exposition:-There is no heaven,no final liberation, nor any soul in the other world,nor do the faith of caste prejudice produce any genuine effect.The agnihotra [the ceremony of offering oblations to the consecrated fire],the three Vedas,the ascetics 3 staves and smearing one's self with ashes-all such rituals have been established as livelihood by ancestors of all those who are destitute of knowledge and manliness.

Wednesday 10 October 2018

21वीं शताब्दी में प्राचीन अदभुत विज्ञान की प्रासंगिकता !
जब से दीनानाथ बत्रा और बाबा रामदेव विश्व स्तर पर, प्राचीन भारतीय विज्ञान के ब्रेंड़ एम्बेस्ड़र बने हैं -पूरे विश्व में भारतीय विज्ञान की गौरवशाली परम्पराओं और ठोस असाधारण उपलब्धियों की चर्चा दसों दिशाओं में गूंज रही है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (world health organisation )ने इस चर्चा का संज्ञान लेते हुए ,डा. रिचर्ड़सन के नेतृत्व में पांच शीर्षस्थ वैज्ञानिकों का प्रतिनिधि मंडल भारत भेजा है जो 111 दिनों में निम्न विषयों का गहन अध्ययन करेगा :-
# कलश (घड़े) से महाॠषि अगस्त्य और वसिष्ठ का जन्म. (संदर्भ ऋग्वेद 7/33/11-13).
# कार्तिकेय का गंगा नदी से जन्म, (संदर्भ वाल रामायण 1/37/12,14-15,17-18,21-23).
# राजा सगर की पत्नी सुमति द्वारा 60,000 पुत्रों का जन्म. (संदर्भ वाल्मीकि रामायण 1/38/17-18).
# मनु की नाक से बच्चे का जन्म.(संदर्भ विष्णु पुराण 4/2/11).
# गोद में गिरे वीर्य से असंख्य ब्रह्मचारियों का जन्म. (संदर्भ, शिवपुराण, ज्ञानसंहिता 18).
# गिरे वीर्य से हज़ार वर्ष बाद बच्चे का जन्म. (संदर्भ, ब्रह्मावैवर्तपुराण, ब्रह्मखण्ड, 4/23-24).
# लकड़ी से पुत्र का जन्म. (संदर्भ, देवीभागवतपुराण, 1/14/4-8).
# दोने से द्रोणाचार्य का जन्म. (संदर्भ, महाभारत, आदिपर्व, 129/33-38).
# सरकंड़े से कृपाचार्य का जन्म. (संदर्भ, महाभारत, आदिपर्व 129/6-20).
# पुरुष की कोख से पुत्र का जन्म. (संदर्भ, भागवतपुराण, 9/6/26-31).
# जंघाओं और भुजाओं से बच्चों का जन्म. (संदर्भ, भागवतपुराण, 4/14/43-45,4/15/1-5).
# गौमाता से मानव शिशु का जन्म. (संदर्भ, पद्मपुराण, उत्तराखंड, 4/62-65).
# मांस के लोथड़े से 101बच्चों का जन्म. (महाभारत, आदिपर्व, 114/9-13,18-22,40-41).
# अग्नि से दो बच्चों का जन्म. (संदर्भ, महाभारत, आदिपर्व, 166/39,44).
# मछली के पेट से मानव का जन्म. (संदर्भ, महाभारत, 63/64,49-50,59-61,67-68).
# खीर से गर्भवती होकर दशरथ की पत्नियों द्वारा चार पुत्रों का जन्म. (संदर्भ, वाल्मीकि रामायण, बालकांड़, 16/11/15-20,30).
* विश्वस्त सूत्रों से ज्ञात हुआ है कि गहन अध्ययन के बाद पांच में से चार वैज्ञानिक मानसिक सन्तुलन खो बैठे हैं और वह आगरा के मेंटल हास्पिटल में चिकित्सा लाभ प्राप्त कर रहे हैं.
व्यंग्य यथार्थ के आसपास। 🤣😂🤣😃
मुझे लगा जैसे मेरा मन मस्तिष्क शून्य हो गया हो, सोच समझ कर फेस बुक पर कुछ कहने की अभिव्यक्ति पर जैसे अंकुश लग गया हो। फेसबुक पर नियमित रूप से बतियाना किसी जटिल संक्रामक रोग से कम नहीं है जो व्यवहार और चिंतन में असाध्य रोग है। परिणामस्वरूप हम कुतर्क पर आधारित टिप्पणियों, तीखे कटाक्ष और प्रजातांत्रिक अलंकारों (♧◇♡♤) के अभ्यस्त हो गये हैं। विचारों के अभाव में यही सुझाया कि चलो आज सभी असहमतियों विवादों से परे कुछ निर्लिप्त लिखा जाये और हम ने झट से फेसबुक पर चेप दिया -#आखिर_मुर्गी_ने_सडक_पार_कर_ली ।मेरी खुशी का कोई ठिकाना न था क्योंकि 15 मिनट में 70 लोगों ने बिना किसी अलंकार के इस असाधारण अभिव्यक्ति को लईक कर लिया। हम कब तक खैर मनाते? तभी एक मोदी भक्त का कमेन्ट आया- आप को मतिभ्रम है यह सड़क विकास पुरूष की देन है। तभी किसी देशद्रोही का कमेन्ट आया- मोदी भक्त यह क्यों नहीं समझते कि मोदी निर्मित सडकों पर केवल मुर्गी ही क्रास कर सकती है। मोदी भक्त ने तत्काल प्रतिक्रिया व्यक्त की- पहले की तुलना में यह मोदी जी की ही देन है कि आज चूहा मुर्गी और गाय माता सुगमता से सड़क पार कर लेती है। व्यस्त सड़कों पर गाय माता बिना किसी वेतन के ट्रेफिक कंट्रोल करती नज़र आती है। मैं ने लिखना चाहा कि मेरी यह पोस्ट मुर्गी के असाधारण साहस बारे है और गैर राजनीतिक है परन्तु तभी मेरी नींद खुल गई और मै स्वप्न लोक से यथार्थ लोक में आ गया।

Monday 8 October 2018

नमस्ते, मैं गाँधी हूँ ;
जब गांधीजी मूर्ति से प्रकट हुए और आज के नेता से बात चीत की !
गाँधी :नमस्ते, मैं बापू हूँ !मैं यह जानने आया हूँ कि क्या आप लोग मेरा जन्मदिन मेरी विचाधारा के अनुसार एवं अनुरूप मना रहे हैं ?
आज का नेता :कौन बापू  ,किसका बापू ? 
गाँधी :मोहनदास करमचंद गाँधी ,राष्ट्रपिता !
आज का नेता :मोहनदास करमचंद ???वह तो मोहनलाल करमवीर ...नहीं ..मोहनचंद करम दास  ...?
गाँधी :नहीं ,वह मैं नहीं हूँ !
आज का नेता :आप मूर्ति से कैसे प्रकट हुए ?आप तो मूर्ति थे ?
गाँधी :नहीं ,मैं केवल मूर्ति नहीं हूँ , मैं कभी मानव रूप में था और अहिंसा जैसे मानवीय मूल्यों का प्रचारक था !क्या आप निजी और सामाजिक जीवन में अहिंसा पर विश्वास करते हैं ?
आज का नेता :शत प्रतिशत ,बापू !मैं उन सभी के विरुद्ध सशक्त कारवाही करता हूँ जो आप की विचारधारा का विरोध करते हैं !मैं उनकी पिटाई करता हूँ ,उन्हें गिरफ्तार करता हूँ ,उनपर पुलिस की सहायता से लाठीचार्ज तथा आंसूगैस का प्रयोग कराता हूँ !
गाँधी :मेरी दूसरी शिक्षा थी सत्य के लिए संघर्ष करना ,क्या आप सत्य जानने का प्रयास करते हैं ?
आज का नेता :सत्य ? अरे बापूजी ,सत्य के सम्बन्ध मैं आप का पूरा समर्थन करता हूँ ! मैं सत्य के प्रचार प्रसार के लिए सभी माध्यम का प्रयोग करता हूँ ,फेक न्यूज़ ,प्रचार -प्रसार, परिवर्तित [morphed] वीडियो ,फेक फोटो ...मैं सत्य के प्रचार प्रसार के लिए सभी माध्यम का प्रयोग करता हूँ !
गाँधी :सादा जीवन गुजारने बारे आप का क्या विचार है ?मेरी मृत्यु के समय मेरी सम्पति केवल ऐनक ,स्लीपर ,घडी,कुछ बर्तन तथा कुछ अन्य छोटी चीज़ों तक ही सीमित थी !
आज का नेता :बापूजी मैं भी सादा जीवन गुजारने पर विश्वास रखता हूँ !VIP श्रेणी का होने के कारण जब जब मैं यात्रा करता हूँ मुझे एअरपोर्ट पर  किसी प्रकार की सिक्यूरिटी समस्या का सामना नहीं करना पड़ता है ,क्योंकि ब्लैक कमांडो आम आदमी को मेरे पास फटकने नहीं देते ! मेरा जीवन सादगी की मिसाल है !
गाँधी :निराशाजनक भाव !मेरे खादी प्रयोग प्रचार प्रसार बारे आप का क्या विचार है ?क्या आप इसका अनुकरण करते हैं ?
आज का नेता : मैं खादी का पक्का अनुयायी हूँ !विभिन्न रंगों में खादी के बहुत सारे वस्त्र हैं मेरे पास -जैकेट ,शर्ट्स,कुर्ता वह भी विभिन्न स्टाइल और साइज़ में !
गाँधी :टोकते हुए ,रुको रुको ,मेरी जिज्ञासा यह न थी !मैंने गरीबों के लिए अपना जीवन समर्पित किया ! क्या आप ...?
आज का नेता : बापू ,मैं लगातार गरीबों की सेवा कर रहा हूँ और उसी के परिणामस्वरूप गरीब भी अमीर हो रहे और मैं भी अमीर हो रहा हूँ ! मेरा अमीर होना किसी चमत्कार से कम नहीं है !
गाँधी :निराशाजनक स्वर ! मेरा मूर्ती बने रहना ही ठीक है !
आज का नेता :उचित विचार है बापूजी !आप प्रतीकात्मक रूप से मूर्ति में ही बने रहें यही उचित रहेगा !और फिर यदि आप ने ऐसे प्रश्न पुनः पूछने का प्रयास किया तो मैं आप को देशद्रोही अर्बन नक्सलवादी घोषित कर दूंगा !
[टाइम्स ऑफ़ इंडिया में प्रकाशित ,सारिका घोष के व्यंग्यात्मक आलेख का हिंदी रूपांतरण ]

Saturday 6 October 2018

हिटलर की परिभाषा लोकतंत्र के सन्दर्भ में  !
हिटलर एक बार अपने साथ संसद में एक मुर्गा लेकर आए और सबके सामने एक-एक करके उसके पंख नोंचने लगे। मुर्गा दर्द से तिलमिलाता रहा। इस पर भी हिटलर ने एक-एक करके उसके सारे पंख नोंच दिये और फिर मुर्गे को फर्श पर फेंक दिया।
तब हिटलर ने अपनी जेब में से कुछ दाने निकालकर मुर्गे की तरफ फेंक दिए और चलने लगा। मुर्गा दाने ख़ाता हुआ हिटलर के पीछे चलने लगा।
हिटलर बराबर दाने फेंकता गया और मुर्गा बराबर दाने मुँह में डालता हुआ उसके पीछे चलता रहा। आख़िरकार वह मुर्गा हिटलर के पैरों में आ खड़ा हुआ।
हिटलर ने स्पीकर की तरफ देखा और एक तारीखी जुमला बोला, `लोकतांत्रिक देशों की जनता इस मुर्गे की तरह होती है। उसके हुकुमत और हुक्मरान जनता का पहले तो सब कुछ लूटकर उसे अपाहिज कर देते है, और बाद में उन्हें थोड़ी सी खुराक दे-देकर उनका मसीहा बन जाते हैं।[मीडिया].

Tuesday 21 August 2018

गर्व करना हमारा राष्‍ट्रीय अधिकार है,गर्व से हमारा मस्तक हमेशा ऊंचा उठा हुआ होना चाहिये। गर्व करते करते हम कब गर्वोन्नत हो उठेंगे कहा नहीं जा सकता है. जब कोई हाथी गर्वोन्नत हो जाता है तो सभी कुछ तहस नहस करने पर तुल जाता है,एसे हाथी को पागल- हाथी कहा जाता है. बहुतों की गर्दन गर्व से अकड़ जाती है, उस गर्दन को गर्व से अकड़ाये रखने के लिये गर्दन में पट्टा पहनना पड़ता है ,वह पट्टा क्या कहलाता है….आप अच्छे से समझ गये होंगे,स्पॉन्डिलाइटिस का पट्टा ,यह स्पॉन्डिलाइटिस केवल गले में ही होता है ऐसा नहीं है। यह पूरे दिमाग में चढ़ता है, यह पूरी भीड़ पर चढ़ जाता है. भीड़ बेकाबू हो जाती है,किसी को मारती है तो किसी-किसी को तो पीट-पीट कर मार ही डालती है। यह भीड़ यहीं रुक जाती हो ऐसा नहीं है। एक घटना तो अभी-अभी हुई है,बिहार की एक गर्वोन्नत भीड़ ने एक महिला को मात्र शक के आधार पर ही शहर में नग्न कर घुमाया, विडियो भी बनाया और तो और सोशल साइट्स पर अपलोड भी हुआ. यहाँ एक प्रश्न खड़ा होता है ,वे जो यह कर रहे थे वे कौन थे ? वे जो यह देख रहे थे वे कौन थे ? और..और..वे जो सोशल साइट्स पर वीडिओ अपलोड कर रहे थे वे कौन थे ? और इन पर लाइक्स करने वाले ? वे भी तो हैं ? कहना ना होगा , ये सभी गर्दन की अकड़ के मारे हुए हैं अर्थात स्पॉन्डिलाइटिस, स्पॉन्डिलाइटिस का पट्टा बंधे हुए लोग, ये गर्व से तना मस्तक मेरा. इन्हें खुद भी नग्न होना था, ये समाज के, संस्कार के कपड़े भी उतारने थे, फिर यदि ये नग्न स्त्री का नग्न होकर जुलूस निकालते तो समां ही कुछ और होता, वह एक राष्‍ट्रीय शान का विषय बनता, वीडिओ बनता. फिलहाल गधा हंस रहा है, राष्‍ट्रीय कवि स्व. ओम प्रकाश आदित्य ने बहुत ही उम्दा कविता लिखी थी ” इधर भी गधे हैं, उधर भी गधे हैं, जिधर देखता हूँ ,गधे ही गधे हैं.” और राष्ट्रभक्त गधे ने गर्व करने का एक नया ही आयाम खोज रखा है, वह यह कि ” गर्व से कहो हम गधे हैं.”

Sunday 19 August 2018

#कुछ_कडवा_कुछ_मीठा 
गाय हमारी माता है, 
मतदान में मत दिलाती है ,
जीत सुनिश्चित कराती है, 
सत्ता तक पहुंचाती है, 
सिंहासन पर बैठाती है,
गाय दुध मलाई देती है,
वोट भी दिलाती है,
चुनाव में जीताती है,
जीवन सफल बनाती है,
हम गाय को गौशाला में छोड़ आते हैं,
माता को ओल्ड एज होम के हवाले कर देते हैं,
जहां वह भूख से तड़प तड़प कर मरती है,
हम गौ रक्षक हैं,
गाय हमारी माता है।

Monday 13 August 2018

कितने नरेंद्र दाभोलकर? कितने गोविंद पानसरे? लगता है लोगों के हित व हक़ के लिए लड़ने वाली आवाज़ें अब और भी संकट में पड़ने वाली हैं वैसे तो हम इतिहास से सुनते आ ही रहे हैं कि जो आवाज़ें समाज की बेहतरी या उत्पीड़ितों के लिए उठीं उन्हें या तो दुनिया की नज़रों में बुरा साबित किया गया या फिर मौत के हवाले कर दिया गया. अगर हम दूर इतिहास की बात छोड़ दें और हाल के कुछ दशकों को देखें तो भी हम लगभग ऐसे ही उदाहरण पाएँगे. नुक्कड़ नाटक करते सफ़दर हाशमी को सरे आम गोली मारी जाती है और वो भी राजनैतिक गुंडों के द्वारा जिन्हें शह कहाँ से मिली हम सभी जानते हैं. छत्तीसगढ़ में खदान मज़दूरों के लिए आवाज़ बुलंद करने वाले और हाशिए पर पड़े उन लोगों को एकजुट करने वाले शंकर गुहा नियोगी को भी कुछ इसी तरह मुनाफाखोरों के इशारे पर मारा गया. देखें अमन सेठी का यह लेख (http://www.thehindu.com/opinion/op-ed/the-fivelegged-elephant/article2497776.ece). अब की बात करें तो नरेंद्र दाभोलकर और गोविन्द पानसरे के नाम भी उसी श्रेणी में आते हैं. ये बात ज़रूर है कि लोगों के दिलों में आज भी सफ़दर हों या नियोगी, पानसरे या दाभोलकर, उनकी विचारधारा ज़िन्दा है और रहेगी. पर सवाल ये है कि आख़िर जनतंत्र, लोकतंत्र में उठी आवाज़ को दबाने वाली विचारधाराएँ और समूह खुलेआम सर उठाकर कब तक घूमते रहेंगे. गोविन्द पानसरे पर हुए हमले और उनकी मौत ने ये सवाल फिर से खड़ा कर दिया है कि क्या खुलकर अपनी बात अभिव्यक्त करना और सर उठाती कट्टरपंथी ताकतों के खिलाफ बोलना, कमज़ोर तबके के लिए लड़ना या जनता को अन्धविश्वास के खिलाफ एकजुट करना मौत की राह है. ऐसा करने वालों को क्या जान की कीमत ही चुकानी होगी? और वो ताकतें जो इंसान को इंसान से अलग करने में, लूट पर व शोषण पर अपनी सत्ता और शान चलाती हैं वे जीतती रहेंगी. पानसरे की बात करें तो यह वामपंथी नेता सिर्फ राजनैतिक फायदों वाला व्यक्ति नहीं था बल्कि लोगों के लिए और सामाजिक मुद्दों पर खुल कर बोलने वाला एक कार्यकर्ता था. हाल की ख़बरों से मिली जानकारी से हम जानते हैं कि कैसे खुलकर उन्होंने नाथूराम गोडसे को हीरो बनाने को तर्कों से ग़लत साबित किया था. या फिर शिवाजी के बारे में उनके विचार एक राजनैतिक धर्मान्ध या अंधभक्त की तरह साम्प्रदायिकता के चश्मे से ना होकर तर्कों पर आधारित थे जो उन्हें एक सामाजिक नेता के रूप में उभारते थे. पानसरे को धमकियां लगातार मिल रही थीं. उन्हें दूसरा दाभोलकर बनाने को भी कहा गया था  मतलब दाभोलकर की तरह जान से मारने की धमकी. दाभोलकर याने नरेंद्र दाभोलकर जिन्हें क़रीब डेढ़ साल पहले ठीक इसी तरह बाइक सवार हत्यारों ने गोली मार दी थी. दाभोलकर महाराष्ट्र के बड़े रेशनलिस्ट माने जाते थे जो धर्म के नाम पर पाखंडों को और जनता को ठगने वाले बाबाओं के खिलाफ लोगों को सजग करते थे दरअसल दाभोलकर और उनकी संस्था महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति पूरी तरह से तर्कों व वैज्ञानिक सोच पर आधारित है और अंधविश्वास, महिला उत्पीड़न आदि महत्वपूर्ण मुद्दों पर खुलकर काम करती रही है. लीना मैथियस (Lina mathias) के सितम्बर 2013 के economic and political weekly के लेख में उन्होंने लिखा है कि दाभोलकर की संस्था महिलाओं को, मानसिक रोगियों को बाबाओं के चंगुल में जाने से बचाने के साथ ही लगभग हर उस मुद्दे पर काम करती थी जो आम इंसानों के जनजीवन से जुड़ा रहता था या जो राजनैतिक दलों के लिए मशहूर नहीं होता था. चाहे बालिका विवाह की बात हो या देवदासी प्रथा को रोकने की, या छल कपट पर आधारित बाबाओं का पर्दाफाश करने की. ऐसे तमाम मुद्दे थे जिनसे दाभोलकर के कई दुश्मन भी बन गए थे और उनके आयोजनों में हिंसक विरोध व धमिकयां तो मिलना आम हो गया था. आज दाभोलकर की भले ही अज्ञात हत्यारों ने जान ले ली हो पर उनके विचार व संस्था अभी भी जिंदा हैं और रहेंगे. यहाँ दाभोलकर और उनकी संस्था के बारे में देखें http://antisuperstition.org/index.php?option=com_content&view=article&id=139&Itemid=115 गोविन्द पानसरे के विचारों के साथ भी ठीक यही होगा, विचार हमेशा ज़िन्दा रहेंगे. पर अफ़सोस की बात यह है की उस वक्त भी सरकार नाकाम रही और यहाँ भी सरकार नाकाम रही है अब तक. और हो भी क्यों ना, कट्टरपंथी व मानवता विरोधी ताकतों की जगह सरकारें तो सामाजिक कार्यकर्ताओं को अंदर करने व उन पर लगाम कसने को तैयार हैं चाहे तीस्ता सीतलवाड़ हों या ग्रीनपीस संस्था. चाहे कुडनकुलम आन्दोलन के उदय कुमार हों या मेधा पाटकर. उन पर ही तरह तरह के आरोप लग रहे हैं और गुंडे, मुनाफाखोर, साम्प्रदायिक, दबंग लोग नेता या उनके पिछलग्गू बने घूम रहे हैं. ऐसे में समाज के पिछड़े तबकों के लिए आवाज़ बुलंद करने वाले लोगों को चाहे वो आर. टी. आई के एक्टिविस्ट हों या जल जंगल व ज़मीन की लड़ाई के लोग या फिर कट्टरपंथ व धर्मान्ध अंधविश्वास पर बोलने वाले कार्यकर्ता सबकी सुरक्षा पर ऐसे हमले सवालिया निशान लगाते हैं और साथ ही सवाल उठाते हैं कानून व प्रशासन की अकर्मण्यता पर. 

Saturday 28 July 2018

अपि चेत्सुदुराचारो भजते मामनन्यभाक्‌ ।
साधुरेव स मन्तव्यः सम्यग्व्यवसितो हि सः ॥9.30

api cētsudurācārō bhajatē māmananyabhāk.
sādhurēva sa mantavyaḥ samyagvyavasitō hi saḥ৷৷9.30৷৷


भावार्थ : यदि कोई अतिशय दुराचारी भी अनन्य भाव से मेरा भक्त होकर मुझको भजता है तो वह साधु ही मानने योग्य है, क्योंकि वह यथार्थ निश्चय वाला है। अर्थात्‌ उसने भली भाँति निश्चय कर लिया है कि परमेश्वर के भजन के समान अन्य कुछ भी नहीं है॥30॥



क्षिप्रं भवति धर्मात्मा शश्वच्छान्तिं निगच्छति ।
कौन्तेय प्रतिजानीहि न मे भक्तः प्रणश्यति ॥9.31

kṣipraṅ bhavati dharmātmā śaśvacchāntiṅ nigacchati.
kauntēya pratijānīhi na mē bhaktaḥ praṇaśyati৷৷9.31৷৷


भावार्थ : वह शीघ्र ही धर्मात्मा हो जाता है और सदा रहने वाली परम शान्ति को प्राप्त होता है। हे अर्जुन! तू निश्चयपूर्वक सत्य जान कि मेरा भक्त नष्ट नहीं होता॥31॥

Friday 27 July 2018

गुरु पूर्णिमा के अवसर पर :
गुरु गीता : ज्ञान या अज्ञान का महिमामंडन !
जब से केंद्र में राष्ट्रीय स्वयं संघ का राजनीतिक वर्चस्व स्थापित हुआ है तब से हिन्दुत्ववादी धर्म ग्रंथों को एक राजनीतिक एजेंडा के अंतर्गत ऐसे प्रस्तुत किया जा रहा है जैसे समय अन्तराल से आजतक वह धर्म ग्रन्थ सभी विषयों के ज्ञान भंडार हैं . विज्ञान एवं टेक्नोलॉजी के मैदान में जो भी अविष्कार आज हमारे सामने हैं उनका मूल आधार हिन्दू धर्म ग्रन्थ ही हैं जिन्हें विदेशियों ने चुराकर अपने नाम से प्रस्तुत किया. यह पावन देश आदिकाल से विश्वगुरु रहा है !वेद, उपनिषद ,स्मृतियाँ ,पुराण,गीता, रामायण , महाभारत आदि आदि मिथात्मक ग्रन्थ नहीं वरन ज्ञान विज्ञान का असाधारण एवं अद्भुत इतिहास है लेकिन यथार्थवादी व्यवहार तथा चिंतन में यह सभी धर्म ग्रन्थ ब्राह्मणवादी शोषणकारी व्यवस्था ,अकर्मण्यता ,अज्ञानता, भेदभावपूर्ण जातिवाद तथा पूर्वग्रह के ठोस प्रतीक हैं.
परजीवी धर्म गुरु अपने वर्ग की शोषणकारी परम्परा को प्रासंगिक बनाये रखने के लिए गुरु गीता नामक ग्रन्थ का बहुत प्रचार प्रसार करते हैं !कारण स्पष्ट हैं -गुरु गीता अंध भक्तों की अंध श्रध्दा को और सशक्त बनाते हुए अज्ञानता के अंधकार में धकेलती है जहाँ से उनकी वापसी असंभव हो जाती है.
यह कुल मिलाकर 221 श्लोकों की पुस्तक है। इस में गुरू शिष्य के संबंधों पर विस्तृत चर्चा की गई है। इस पुस्तक के अध्ययन मात्र से सभी संसारिक सुख प्राप्त होते हैं और सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। गुरू को ब्रह्मा गुरू विष्णु गुरू शिव गुरू परंब्रह्म परिभाषित करते हुए देवताओं के समकक्ष रखा गया है। शिष्य के पूर्ण समर्पण के लिए यह भी कहा गया है कि शिष्य अपनी पत्नी भी गुरू को अर्पित करे (आत्मदाराssदिकं सर्वं गुरवे च निवेदयेत ,श्लोक 55); शिष्य गुरू के पैरों का धोवन पिए तथा उस का झूठा बचा खाना खायें ( गुरूपादोदकं पेयं गुरोरूच्छिष्टभोजनम; श्लोक 57)।इस के साथ साथ यह भी कहा गया है -सात समुन्दरों तक जितने तीर्थ हैं उन में स्नान करने से जो पुण्य प्राप्त होता है गुरू के पैरों का धोवन की एक बूंद पीने से उस से हज़ारगुना अधिक फल प्राप्त होता है: श्लोक 161!
यदि यह ज्ञान है तो अज्ञान की परिभाषा क्या है?
नोट : घृणित जातिवादी पूर्वाग्रह व्यक्त करते हुए शिष्य का अधिकार केवल और केवल ब्राह्मण क्षत्रिय तथा वैश्य के नाम सुरक्षित रखा गया है।

Saturday 16 June 2018

MECHANICAL RITUALISM!
The dividing line between enlightened faith and faith generated by blind fear is very thin.Whether a man has genuine faith born of knowledge or whether it is the result of a fear complex,is for a psychoanalyst to unravel.But so for as the votaries of Hinduism are concerned,it can be safely averred that the main spring of their faith is either a dread of the ire of the deities or hope of reaping material benefits by propitiating them or usually a mixture of both.
This thesis is proved by the fact that worship of credulous and gullible is not confined to a transcendent soul as enjoined upon them by Upnishadas.It is not limited to one anthropomorphic 'god'nor even to a few 'gods' of sufficient stature,as prescribed in the Puranas and other scriptures,but to all sort of 'powers', including trees and plants,rivers,stones,animals,relics and simians.
For followers,Shesh the serpent,Hanuman the monkey,Guruda the one legged Sanskrit speaking bird,Ganesha the Elephant headed 'god' are all entitled to as much respect and obeisance as Shiva or Vishnu.
So for as formalism or mechanical ritualism is concerned,there is probably none in this wide world to beat followers.Most Hindus go through the motions of a religious ceremony,spread over hours,without having the ghost of an idea of what is being done.Devotees behave like kites,whose strings are in the hands of Brahmins,who have got sufficient 'professional expertise' to exploit them on various levels-purely for their ulterior motives.Another example of mechanical religiosity among the Hindus is that of devotees reciting Sanskrit verses parrot like with great gusto,but following at best a word or two [usually one of the myriad synonyms of 'god']out of the whole prayer.

Saturday 19 May 2018

DIVINE" INJUNCTIONS ABOUT DIET;
CONFUSED AND INCONSISTENT MANU!
Almost all religions have established dietary injunctions or prohibition, for their respective followers.Accordingly there are 'divine' instructions about Fish for Catholic,about Pig for Muslim and Jews and about Cow for Hindus as consecrated and invulnerable animal.
Manu Smiriti is one of the oldest and probably the most important of the Smiriti's,with the moral code and conduct for Hindu's,concerning their personal and social life.He has exclusively established diet injunctions in 5Th chapter,but it is apparent that his dietary injunctions ,symbolize and reflect his confusion,inconsistency and self contradiction.
*Verse 5:-Garlic,leeks,onion and mushrooms are unfit to be eaten by twice born men[divij-Brahman,Khshtriya and Vaish].
*Verse 28:-The lord of creatures[Prajapati/Brahma] created this whole world for the sustenance of the vital spirit.Accordingly both the immovable and the movable is the food for all.
*30:-The eater who daily even devours those destined to be his food,commits no sin;for the creator himself created both the eaters and those who are to be eaten.
*32:-He who eats meat,when he honors the gods,commits no sin,whether he has himself bought it or has himself killed or has received it from others.
*35:-A man,who being duly engaged to officiate or to dine at a sacred rite,refuses to eat meat,becomes after death an animal during 21 existences.
*45:-He who injuries/sacrifices animals,never finds happiness,neither living nor dead.
*48:-Meat can never be obtained without injury to living creatures and injury to sentient beings is detrimental to all of his bliss,let him therefore shun the use of meat.
*56:-There is no sin in eating meat,in drinking spirituous liquor and satisfying his carnal desire,for that is natural way of created beings but abstention brings great rewards.
[These are just few examples but the list is long one].

Tuesday 15 May 2018

JAGRATI SHUKLA ,INFAMOUS FOR COMMUNAL HATE MONGERING -HIRED/REWARDED BY LOK SABHA TV !
 Some of her infamous hate mongering sermons via Twitterverse :-
@ Truth is ,we live in fear,not they. No more. Always carry lethal weapons,kill them ,before they kill us.#MondayMotivation.
@ If we need to commit genocide in Kashmir valley to get rid of all these terrorists,then let us do it.#UnitedAgainstTerror.
@ Kill 'em  All in Kashmir valley. Lets have some population and pest control on #WorldPopulationDay. Dharti mata ka bojh kam hoga #KashmirUnrest.
@ So,Commy Gauri Lankesh has been murdered mercilessly. Your deeds always come back to haunt you,they say. Amen.#GauriLankesh.
@ Those who believe in bloody revolution now mourning fate of Gauri Lankesh. How does it feel to be on the receiving end ?#GauriLankesh.
@ Sikhs deserved that. What do you expect when you breed hate ?They killed Hindus for nothing. Although i don't.
@ Hamid Ansari is a sophisticated Jihad apologist. It's a matter of  absolute shame that he was the vice president of India. Even after being so well educated and holding such high constitutional office his mindset hasn't changed one bit. There are rumours that he even runs a Madrasa.
[The Quint report].

Friday 11 May 2018

SAFFRON NUGGETS FROM RSS'S OWN DOCUMENTS !
* "The RSS inspired by one flag,one leader and one ideology is lighting the flame of Hindutav in each and every corner of this great land." This slogan of one flag,one leader and one ideology was directly borrowed from the programmes of the Nazi and fascist parties of Europe. It was for this reason  that RSS hated federalism . Golwalkar decreed that "bury deep federal structure of our countries constitution...Proclaim 'one country,one state,one legislature,one executive...Let the constitution be re-examined and re-drafted,so as to establish this unitary form of government."
* Golwalkar idolised the Holocaust and declared that it could be a way to deal with minorities in India. He wrote in 1939,"to keep up the purity of the race and its culture Germany shocked the world by her purging the country  of the semitic races-the Jews...Germany has also shown how well-nigh impossible it is for races and cultures,having differences going to the root, to be assimilated into one united whole-a good lesson for us in Hindusthan to learn and profit by ".
* The RSS hates democratic secular India. Rejecting it, the English organ of the RSS.Organiser,on eve of independence [August 14,1947] editorically declared "let us no longer allow ourselves to be influenced by false notions of nationhood...in Hindusthan only the Hindus form the nation and the national structure must be built on that safe and sound foundation..the nation itself must be built up of Hindus,on Hindu traditions,culture,ideas and aspirations."
* Not only this ,when the constituent Assembly passed the constitution on November 26,1949, Organiser in an editorial dated November 30 demanded its rejection and the promulgation of Manusmriti as a Hindu constitution -which decrees sub human status for Hindu women and shudras.
* The RSS denigrated the choice of national flag of democratic secular India as well. Organiser in its August 14,1947 issue declared that,"the people who have come to power by the kick of fate may give in our hands the Tricolour but it will never be respected  and owned by Hindus. The word three in itself an evil and a flag having three colours will certainly produce a very bad psychological effect and is injurious to a country".Even today the "oath"and "prayer"mandatory for all RSS members in daily Shakha's  is fundamental ingredient to make them committed to a Hindu rashtra.

Saturday 5 May 2018

मानव संसाधन मंत्रालय के बहुचर्चित संस्कृत प्रेम से प्रेरित, लोकप्रिय फिल्मी गाने "आती क्या खंड़ाला... "का संस्कृत रूपांतरण !
ऐ बालिका, त्वं कथम कथिष्यसि? 
ऐ बालक, अहं किं कथिष्यामः ?
श्रणिवसी,
श्रुणअः,
किं त्वं खंड़ाला आगच्छसि ?
अहं किं करिष्यामि खंड़ालयः ?
गमिष्यावः, भ्रमिष्यावः नृत्यष्यावः गायावः
मज़ा करिष्यावः, किं करिष्यावः???
FOUR QUESTIONS TO PEDAGOGUES,PEDDLERS AND PROTAGONISTS OF YOGA ?
1."Apaanam ordwam othapya pranam kanthaddho nayet;
yoghi jaramukhtha san shodsha abdwyoo bhavet !"
[Hathyogpradipika 2/47].
Exposition :-By pulling up the apana vayu [residing in anal area] and by forcing the praan vayu[believed to be residing in heart],down the throat,the yogi,is liberated from after effects of old age [rejuvenation act],attains the physical and mental status of 16 years old youth.
Question :-Is there any such so called Yogi among the millions of yoga enthusiasts,who has been able to transfer himself from old age to the status of 16 years old boy,of course with the help of said Pranayam ?
2."Na he pathyam apathyam va rasa sarvay api neerasa ;
api bhukhtam visham ghoram peyosham api jeeryati !"
[Hathyogpradipika 3/16].
Exposition :-there is nothing wholesome or injurious for those,who perform Mahamudra regularly as said act destroys harmful effects of all rasas;even for them,deadliest of poisons,if consumed,acts like nectar.
Question :-Has any Yogi testified the taste of Potassium Cyanide?How many of them are there who enjoy their breakfast,lunch or dinner such type of deadly poisons ?
3."Ahimsa pratishthayam tat sanidho vairtyagha !
[Patanjali yog sutra 2/35].
Exposition :-Horse and Buffalo,Rat and Cat,Snake and Mongoose and others being natural enemies of each other,give up their respective animosities,by following the tendencies of the mind of yogi,whose habit of not causing injury,is confirmed.
Question :-The Yoga enthusiasts, claim that all the great men of past were having extraordinary expertise of Yoga;but quite contrary to said claim,a Tiger killed the great grammarian Panini,Elephant killed the author of Mimansa darshan [philosophy],Jamini and Crocodile killed,the author of Chhandah Shastra,Pingala [Reference :Panchtantram,Mitrasamprapti-36].Even Dayanand Sarswati supposedly died due to Milk poisoning.Why above said great men could not save themselves from animals,with the help of their Yogic expertise ? Why ?
4.Swami Ramdev ,tallest exponent of Yoga in present era,presents Yoga and Pranayam as extraordinary panacea cure for all possible ailments and their after effects. Why has he failed to cure himself from the after effects of Bells palsy [Facial paralysis]?It will be pertinent to point out here that there is continuous lachrymal process from his left eye along with involuntary movements of eyelids.

Thursday 19 April 2018

जब से मोदी सरकार सत्ता में आई है, आलोचनात्मक विचार, वैज्ञानिक दृष्टिकोण और खोजी प्रवृत्ति के खिलाफ हमलों में बेतहाशा वृद्धि हुई है। जनवरी, 2015 में भारतीय विज्ञान कांग्रेस के सेमिनार में बेहद अवैज्ञानिक और अंधविश्वास फैलाने वाले वक्तव्य दिए गए थे, जिसका देश के 107 श्रेष्ठ वैज्ञानिकों ने यह कहकर विरोध किया था कि ‘अतार्किक और संकीर्ण विचारों को सरकार के महत्वपूर्ण अधिकारी ही प्रचारित और मजबूत कर रहे हैं।’ भारतीय विज्ञान कांग्रेस के इस अधिवेशन में दावा किया गया था कि ‘विज्ञान और तकनीक की प्राचीन भारतीय विरासत के अनुसार देश में 6 चाकू ऐसे थे जो एक बाल को भी (उसकी मोटाई के) दो हिस्सों में फाड़ देते थे’, कि ‘लगभग 7000 वर्ष पहले वैदिक ऋषि गाय के गोबर से भी 24 कैरेट का सोना निकाल लेते थे’, कि ‘प्राचीन संत हवाई जहाज और 40 इंजनों का एक अंतरिक्ष यान भी बना लेते थे जो दूसरे ग्रहों तक की यात्रा कर लेता था।’
ऊटपटांग मान्यताएं
इस तरह की बकवास पिछले कुछ वर्षों से गुजरात के स्कूलों में पढ़ाई जाने लगी है। जैसे, एक पाठ्य पुस्तक में यह दावा किया गया है कि गांधारी के 100 पुत्रों का जन्म प्राचीन भारत में स्टेम सेल की खोज का परिणाम था, लिहाजा स्टेम सेल की खोज का सेहरा अमेरिका के बजाय महाभारत के सिर पर बंधना चाहिए। गणेश के धड़ पर हाथी का सिर बैठाने के प्रसंग को जब खुद प्रधानमंत्री प्लास्टिक सर्जरी के उदाहरण के तौर पर पेश करने लगें तो जनता पर इसके असर को कम करके नहीं आंका जा सकता। पिछले तीन वर्षों में सरकार ने सीएसआईआर के अधीन काम करने वाली कुछ लैबरेटरीज को इसलिए भी फंड दिया है कि वे गाय के गोबर, मूत्र, दूध, दही, घी को मिलाकर बने ‘पंचगव्य’ मिश्रण में पाए जाने वाले गुणों का पता लगाएं। विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री हर्षवर्धन ने पिछले माह यहां तक दावा कर डाला कि स्टीफन हॉकिंग ने वेदों की थिअरी को अल्बर्ट आइंस्टाइन की थिअरी से बेहतर बताया था। इसी कड़ी में त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बिप्लब देब की ताजा घोषणा आई है कि महाभारत काल में इंटरनेट मौजूद था।

Saturday 14 April 2018

#अब_तो_प्रकट_हो_जाओ !
"यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृज्याम्यहम् ।।"गीता 4/7।
(हे भारतवंशी, जब भी जहाँ भी धर्म (नैतिकता) का पतन होता है और अधर्म (अनैतिकता) की प्रधानता होने लगती है तब तब मैं अवतार (प्रकटीकरण) लेता हूँ)।
"परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ।।"गीता 4/8 !
( जनता-जनार्दन का उद्धार करने, दुष्टों (अनर्थ करने वाले पापी- व्यभिचारी आदि) का विनाश करने तथा नैतिक आचरण की स्थापना के लिए मैं हर युग में प्रकट होता हूँ)
हे दयानिधि कृपालु दयालु भगवन ! तुम्हारे लाखों करोड़ों भक्तजन समय अंतराल से तुम्हारी ही शब्दावली में तन मन तथा अथाह विशवास और भक्तिभाव से गुहार लगा रहे हैं, अनेक पीढियाँ तोतारटंत गुहार लगाते लगाते मर मिट गईं ।बीते समय में मानवीय त्रासदी के प्रतीक के रूप में भक्तजन , अत्याचार ,क्रूर शोषण, लूटपाट,अनैतिकता तथा अकाल मृत्यु का शिकार होते रहे , समय समय पर नैतिक मूल्यों तथा मानवीय संवेदनाओं की धज्जियां उड़ाई गईं पर हे दुख भंजन तुम अपने ही प्रवचन के अनुरूप न तो अवतार के रूप में और न ही मसीहा या फरिश्ता बन कर प्रकट हुए। भक्तजनों की आंखें प्रतीक्षा करते पत्थरा गईं हैं ।निर्मम निर्भया बलात्कार कांड से कठुआ बलात्कार कांड के फलस्वरूप अन्याय अधर्म और अनैतिकता चरमसीमा को भी पार कर गये हैं। कठुआ बलात्कार कांड में तो एक आठ वर्षीय अबोध बालिका को तुम्हारे ही सामने तुम्हारे प्रांगण में क्रूर पशुओं के समान तुम्हारे ही नाम जपने वालों ने तार तार कर दिया ।यह कैसी लीला है तुम्हारी। प्रभु,पूरी मानवता शर्मसार है त्रसित है आहत है अधर्म, क्रूर शोषणकारी व्यवस्था का बोलबाला है, बहुत हो गया, अब प्रकट हो कर दुष्टों का संहार करके आदर्श और नैतिकता की सामाजिक व्यवस्था का श्री गणेश करते हुए अपने प्रवचन के अनुरूप आचार संहिता कठोरता से लागू कर डालो।

Saturday 24 February 2018

दान दें ज्यों ज्यों रूप बडे त्यों त्यों  !
पाखंडी पुरोहितों और पंडितों के वर्ग हितों के लिए बनाया गया मायाजाल  !
* जो स्त्री एक साल तक 

Wednesday 21 February 2018

तुम तो गधे के सिर से सींग की तरह गायब हो गये नीरव ।यहाँ गूगल कर करके परेशान हैं ,तुम्हारा पत्र मिल गया है,मेल भी पहुंच गया है,पर तुम कहां छुपे हो छलिया ? यहां तुम्हारे चचा ताऊ नानी नाना सब परेशान हैं ।तुम्हारे सारे ब्रांड एम्बेसडरों का रो रोकर बुरा हाल है,सारे बैंक के ऊपर नीचे के  लोगों का धंधा बंद है ,यहां तक कि एल ओ यू साइन करने वाले, सिफ़ारिश करने वाले तुम्हें याद कर रहे हैं।हीरे-जवाहरात के बिना उनकी बहन बेटियों और बीबियों के गले सूने-सूने हैं ।सच तुम्हें कोई कुछ नहीं कहेगा,तुम जैसे न जाने कितने 2 जी वाले खुल्ले घूम रहे हैं,तुम्हारा कोई क्या उखाड़ लेगा।तुम्हैं तो पता ही है एक डेढ़ लाख करोड के कर्जवाले भाई लोग तक देश में मजे कर रहे है तो तुम क्या चीज हो ।
व्यर्थ चिंता न करो तुम जैसे महानुभाव तो देश की आत्मा हो और आत्मा को न शस्त्र काट सकते हैं,न आग जला सकती है। तुम जैसे 7-8 लाख करोड एनपीए वाले भाई लोग के आसरे तो देश की अर्थव्यवस्था सांस ले रही है।तुम पर कार्रवाई कौन करेगा?यदि तुम जैसे लोग के विरूद्ध कार्यवाही हुई तो अर्थव्यवस्था धड़ाम हो जायेगी।आ जाओ, फिर तुम्हारे सरनाम का तो वैसे ही डंका बज रहा है देश- विदेश में।लौट आओ, लौट आओ डियर ! 
            देखो कुछ राज्यों के चुनाव सिर पर हैं ,चंदे की रसीदें छप गई हैं,नीचे ऊपर से जो भी बने मदद करो ! तुम हमारी करो हम तुम्हारा ध्यान रखेंगे।अभी पार्टी के पास 500_600 करोड है ,लेकिन जानते ही हो चुनाव में कितना खर्च होता है ,मीडिया वालों को भी सैट करना होता है। मतदाता को मोबाईल लैपटॉप वगैरह -वगैरह देने होते हैं और रैलियों में भीड़ की भी जरुरत होती हैं।अब तो दिहाड़ी भी बढ गई है ,ससुरे मुंह फाड़ने लगे हैं । बड़ी देर भई नंदलाला तेरी राह तके बृजबाला। आ जा रे नीरव !
न्याय प्रणाली व्यवहार और चिंतन में  !
यह दुर्भाग्य है की हमारी न्याय प्रणाली न तो जनता की आकांक्षाओं पर न प्रगति के लिए सहायक सिद्ध हो पा रही है । आधार कार्ड जैसे मुद्दे पर अपनी पोंगापंथी वाले निर्णय या अमीरो को राहत पहुंचाने वाली सोच, तीसो साल घिसटने वाले मुकदमे या अपनी अहंकारी छवि कोई भी जनता को प्रभावित नहीं कर पा रहें हैं । ऐसा लगता है की सारी न्याय व्यवस्था सिर्फ रसूख वाले लोगो को राहत देने में जुटी हुई है । गरीब बिचारा सालो साल बिना पेशी के जेल में बंद रह जाता है तो नेता अभिनेता और करोडों का घोटाला करने वाले और यहाँ तक की मनुष्यों को अपनी लम्बी लम्बी गाडियों से रौंदने वालो को तुरंत अग्रिम जमानत मिल जाती है । किसी अपराधी के लिए तो रात के 12 बजे के बाद भी उच्चतम न्यायालय के दरवाज़े खुल जाते है और कहा सैकड़ों निरपराध सालो जेल में सड़ते रहते है और अदालतों के पास उनके लिए वक़्त नहीं होता। संसार की सबसे मोटी संविधान की किताब होने के बाद भी न्याय मिलना जनता के लिए उतना ही दुर्लभ है। हमें बहुत ही संजीदगी के साथ सोचना होगा की क्या इस मौजूदा व्यवस्था का आमूल-चूल परिवर्तन ज़रूरी हो गया है ? क्या जजों की जनता के प्रति जवाबदेही जरूरी नहीं होनी चाहिए। लंबित मुक़दमों की बढ़ती हुई तादाद की जिम्मेदारी किसको लेना चाहिए ?

Thursday 25 January 2018

In the Padmaavat case, the State has allowed Karni Sena to make a mockery of existing institutions; it got blackmailed — or saw it politically expedient — to force its postponement; it then allowed the Karni Sena to define the terms of the debate — does the film respect or insult Rajputs — rather than categorically assert that once it was certified and had gone through due process, the content was irrelevant; then various state governments — with the Centre turning a blind eye — allowed goons of the Sena to rampage across parts of India contravening the rights of all other citizens, including children; it has done little to act against this group despite criminality and it has done little to reassure other citizens that their right to either watch the movie or even to walk the streets of say a Gurugram or Jaipur will be protected in the face of the mob.
This is a remarkable story of abdication of political and administrative responsibility.

Saturday 6 January 2018

नरेंद्र मोदी के भक्तों में ज्यादातर वे हैं जो विकास के नाम पर देश में एक बार फिर वर्णव्यवस्था वाला शासन थोपना चाहते हैं जिस में ऊंचनीच का फैसला शास्त्रीय ग्रंथों के अनुसार जन्म के समय ही हो जाए और सुखदुख की चाबी पोथी बगल में दबाए किसी तिलकधारी के हाथों में हो. ऐसा हिंदू राज इस देश में न कभी था और न संभव है. रामायण, महाभारत काल में भी केवल जनता ही नहीं राजा भी सुखी न थे क्योंकि ये दोनों महाकाव्य 2 राजघरानों पर आई आफतों का ही वर्णन हैं.
इन दोनों ग्रंथों में वर्णित हिंदू आदर्श पात्र, जिन में से कुछ के आज मंदिर बना उन को पूजा जाता है, अपने पूरे जीवन अस्तित्व के लिए संघर्ष करते रहे और वे अपने राज, संपत्ति, सम्मान की रक्षा भलीभांति न कर पाए, आम जनता की रक्षा भला उन्होंने क्या की होगी, उस की बात छोडि़ए.
यह विडंबना ही है कि जब ये महाकाव्य तब की काल्पनिक स्थिति का खासा सूक्ष्म वर्णन करते हैं और उस युग की जनता की त्रासदी का थोड़ा सा ही वर्णन करते हैं, राजसी पात्रों की तो बात छोडि़ए जो बहुत कर्णप्रिय नहीं हैं, तो इन पर आज विकास का मौडल कैसे बनाया जा सकता है?

Thursday 4 January 2018

सामाजिक भेदभाव तथा पूर्वग्रह का मूल आधार क्या है ?
बैरभाव के बीज बोए कहां जाते हैं? ये न स्कूलों में बोए जाते हैं, न कालेजों में और न दफ्तरों में. इन सब जगह लोग हर तरह के लोगों के साथ काम करने को तैयार रहते हैं.
असल में भेदभाव मंदिरों, मसजिदों, चर्चों, गुरुद्वारों में सिखाया जाता है. वहां एक ही धर्म के लोग जाते हैं और सिद्ध करते हैं कि हम दूसरों से अलग हैं. धर्म के रीतिरिवाज ही एकदूसरे को अलग करते हैं. धर्म के नाम पर छुट्टियों में एक वर्ग घर पर बैठता है और दूसरा बढ़चढ़ कर पूजापाठ के लिए धर्मस्थल को जाता है. पहनावा भी धर्म तय करता है, जो अलगाव दर्शाता है. कुछ कलेवा बांधे टीका लगाए घूमते हैं तो कुछ टोपी पहनते हैं तो कोई पगड़ी बांधता है. संविधान की धज्जियां तो ये भेदभाव उड़ाते हैं.
सभी धर्म एक दूसरे के प्रति अंतर्विरोध ,घृणा तथा पूर्वग्रह पर टिके हैं . मेरा धर्म तुम्हारे धर्म से श्रेष्टतम [ My religion is holier than thou] थ्योरी प्रेरित प्रतिस्पर्धा की दौड़ में विभिन्न धर्मों के ठेकेदार नैतिक और अनैतिक के अंतर को भूल जाते हैं .समय अन्तराल से धर्म शोषणकारी व्यवस्था का सशक्त हथियार रहा है और आज २१वी शताब्दी में भी यह क्रम जारी है .इतिहास गवाह है कि आदिकाल से आजतक जितना नरसंहार अकेले धर्मिक पूर्वग्रह के कारण घटा है उतना और किसी एक कारण से नहीं घटा है .आज भी पूरे विश्व में सर्व धार्मिक जनून के कारण खून का दरिया उछल उछल कर बह रहा है. धर्म तोड़ता है जोड़ता नहीं. तभी आज समधर्मी भी एक दूसरे का गला काटते नज़र आ रहे हैं .विभिन्न धर्म संकीर्णता अन्धविश्वास कट्टरता उन्माद घृणा तथा अकर्मण्यता के प्रेरणास्त्रोत हैं तथा मानवतावाद, तर्कशीलता एवं वैज्ञानिक सोच को नकारते हैं. सर्व धर्म सद्भावना केवल खोखला आधारहीन प्रपंच है .