Wednesday 29 April 2015

UNITED STATES GEOLOGICAL SOCIETY RECRUITS SAKSHI MAHARAJ AS HONORARY SCIENTIST AFTER HE PREDICTED THE CAUSE OF EARTHQUAKES !
Reston. United States Geological Survey (USGS), which religiously records the occurrence of Earthquake across the world has hit its lottery in India. It has shocked the entire India by recruiting Sakshi Maharaj as one of its topmost scientist.
Speaking to Faking News, USGS Director, Mr. Smith, said, “We had been spending all our time and efforts in tracking even minute earthquakes across the world and recording them in our website. It is a heavy task and it involves lot of spending from the US Government. Not only this, worldwide, all the countries are spending heavily on trying to invent a system that could predict Earthquakes. But till now, nobody could predict an earthquake and it has been an unsolved enigma for geologists like us.”
“What mathematicians and scientists and super computers could not decode, a politician from India has done it successfully. We knew that India boasts of its achievements in science, they even sent cheapest mission to Mars. But, we did not expect a politician to be our best find,” paused Smith.
क्या मोदीजी किसानों के "दिल की बात " सुनेंगे ?
ग़जेन्द्र की आत्महत्या /हत्या के सन्दर्भ में सभी राजनीतिक दल उसकी चिता पर रोटियां सेंक रहे हैं। अचानक शोषित किसान एक बड़ा मुद्दा बन कर सामने आ गया है. चुनाव की राजनीती में किसान एक महत्वपूर्ण वोटबैंक है. देश की ६५% आबादी आज भी  खेती पर निर्भर है परन्तु पूंजीवादी अर्थशास्त्र में खेती का शेयर ३३% से घटकर १५% रह गया है.
पिछले २० वर्षों में ३४६५३८ किसानों ने आत्महत्या की है -तदुनसार प्रतिवर्ष १६५०० या लगबग ३५ किसान प्रतिदिन आत्महत्या कर रहे हैं. इन आंकड़ूं के सन्दर्भ में कृषि शास्त्रियों का कहना है कि वास्तव में यह संख्या तिगनी हो सकती है. अकेले पंजाब राज्य में पिछले तीन वर्षों में ६९२६ किसानों ने आत्महत्या की है. किसानों पर कर्ज़ा :-
*राष्ट्रीय स्तर पर =५२%;*आँध्रप्रदेश =सर्वाधिक ९२. ९ %;*तिलंगना =८९. १ %;*तमिलनाडु =८२. ५ %; *केरल =७७. ७ %;*कर्णाटक =७७. ३ %;*राजस्थान =६१. ८ %;* पंजाब =५३. २ %.
किसान उत्पाद में घाटे के होते कर्ज़ा चुका नहीं सकते -सो उनको आत्महत्या एक मात्र उपाय नज़र आता है. यदि सरकार चाहे तो सारा कर्ज़ा माफ़ किया जा सकता है और किसान वर्ग में विश्वास बढ़ाने के लिए फसल बीमा स्कीम लागू की जा सकती है. देश में अनाज की सब से बड़ी मंडी पंजाब में उत्पाद खरीदने के लिए न राज्य सरकार और न ही फ़ूड कारपोरेशन ऑफ़ इंडिया कोई पहल कर रही है. यही हाल अन्य प्रदेशों का है.
त्रासदी यह है कि किसानों के वर्गहित के लिए जिस स्वामीनाथन कमेटी ने जो भी सुझाव सुझाये थे उनपर न तो कांग्रेस सरकार ने अमल किया और न बीजेपी सरकार अमल करने को तैयार है.
कहीं न कहीं पर किसान वर्ग के हित बड़े पूंजीपति वर्ग के हित से टकराते हैं. और फिर पूंजीपति समाज राजनीतिक दलों को अरबों रुपया डोनेशन के रूप में प्रदान करते हैं -भला शोषित किसान क्या दे सकता है ?

Monday 27 April 2015

वास्तुशास्त्र का अंधविश्वास ?
# केन्द्र में सत्ता संभालते ही सम्पूर्ण भगवा ब्रिगेड़ हिंदू समाज को अंधविश्वास के जाल में उलझाए रखने के लिए पूरी तरह सक्रिय है. इसी एजंड़ा के अंतर्गत वास्तुशास्त्र को प्राचीन भवन निर्माण कला के नाम से भी परिभाषित किया जा रहा है परन्तु वास्तव में यह जातिवाद और अंधविश्वासों का ऐसा घातक मिश्रण है जो समाज के लिए आरडीऐक्स से भी ज़्यादा भयानक है.
# जाति के अनुसार विस्तार !
वास्तुशास्त्र घृणित जातिवादी अलगाव पैदा करने की दिशा में इतना प्रयासरत है कि वह चाहता है कि दूर से घर की लम्बाई चौडाई ही किसी के बिना बोले,देखने वाले को बता दे कि कौन सा घर किस जाति के व्यक्ति का है ?
चातुर्वण्यव्यासो......(बृहत्संहिता ५३/१२).
तदानुसार ब्राह्मण के घर का विस्तार ३२ हाथ,क्षत्रिय के घर का विस्तार २८ हाथ,वैश्य के घर का विस्तार २४ हाथ ,शूद्र के घर का विस्तार २० हाथ तथा शूद्र से नीचे की चांडाल,अछूत आदि जातियों के घर शूद्र के घर से भी छोटे हों.इसी आधार पर घर के दरवाज़े को भी जातिवाद के आधार पर परिभाशित किया गया है (बृहत्संहिता ५३/२५).
# जातियों की दिशाऐं !
वास्तुशास्त्र का कहना है कि ब्राह्मण उत्तर दिशा में,क्षत्रिय पूर्व दिशा में,वैश्य दक्षिण दिशा में और शूद्र पश्चिम दिशा में घर बनाए.
जहां धर्मशास्त्रों ने अपनी विघटनकारी भूमिका निभाई है वहां वास्तुशास्त्र भी पीछे नहीं रहा,क्योंकि इस शास्त्र को लिखने वाले भी वही लोग थे जो धर्मशास्त्र को लिखने वाले थे.शिल्पी को पढनेलिखने की अनुमति थी ही नहीं,अतः वह लिख ही नहीं सकता था.यही कारण है कि वास्तुशास्त्र मकान आदि बनाने की तकनीक न बताकर अंधविश्वासों,परोहितवाद और अवैज्ञानिक विचारों को ही महिमामंड़ित करता है.वराहमिहिर ने अपने ग्रन्थ बृहत्संहिता में वास्तुशास्त्र का जो "ज्ञान" दिया है,उस में न स्नान के लिए कहीं स्थान है,न शौच के लिए,न रसोई और न श्यनकक्ष की बात है,न बैठक की परन्तु अंधविश्वासों और घृणित जातिवाद का तांड़व नृत्य कदम कदम पर उपलब्द है.
अब देखना है कि कितनी जल्दी भगवा सरकार ,वास्तुशास्त्र को university grants commission के academic curriculum का अभिन्न अंग बनाती है ???
जय हिंदू राष्ट्र !

Sunday 26 April 2015

बाबा बनने के आसान तरीके.........


हमारा देश धर्म प्रधान देश है . धर्म यहाँ के लोगो की रगों में खून की तरह दौड़ता है . अब वह जमाना तो रहा नहीं जब ऋषि-मुनि,साधू संत घर-घर घूम कर लोगो को धर्म का ज्ञान बांटते फिरते थे . अब जमाना बदल गया है , देश माडर्न हो गया है , ऐसे में इस घोर कलयुग में लोगो को मोक्ष के रहस्य समझाने का बीड़ा उठाया है आधुनिक बाबाओ ने .

सदियों पहले देश के लोग सीधे सादे थे तब के साधू संत भे सीधे सादे और साधारण हुआ करते थे आज के दौर में जब देश तरक्की कर रहा है , देश में करोडपतियो की संख्या बढ़ रही है , देश में माध्यम वर्ग का तेजी से फैलाव हो रहा है ऐसे में माल संस्कृति के साथ साथ बाबा संस्कृति का भी तेजी से विकास हो रहा है .

इन बाबाओ की वजह से ही तो देश पुनः विश्व-गुरु बनने जा रहा है , हमारी सरकार को भी इन बाबाओ की उन्नति में ही देश की उन्नति का प्रतिबिम्ब दिखाई देने लगा है , इसीलिए देश में अन्य किसी भी उद्योग से अधिक तीव्रता से बाबा उद्योग बढ़ रहा है , चोर डकैत अपहरणकर्ता भी बाबा उद्योग में अपना भविष्य देखने लगे है , इसीलिए तो बाबाओ की जमात दिन दोगुनी रात चौगुनी रफ़्तार से बढ़ रही है . बाज़ार में बाबाओ की कई काटेगिरिज उपलब्ध है.

कोई इच्छाधारी बाबा है तो कोई निरंकारी बाबा
कोई तिलकधारी बाबा है तो कोई त्रिशोलधरी बाबा
कोई योग वाला बाबा है तो कोई भोग वाला बाबा
कोई दयालु बाबा है तो कोई कृपालु बाबा
कोई शिष्टाचारी बाबा है तो कोई कपटाचारी बाबा

आजादी के समय देश की आबादी के हिसाब से लगभग हर व्यक्ति पर एक देवता विराजमान थे , आज जनसँख्या चारगुनी हो गई परन्तु देवता तो उतने ही [३३ करोड़ ] रहे, इस अनियमितता को दूर करने का बीड़ा आधुनिक बाबाओ ने ही उठाया ,जिससे कोई आदमी देवता विहीन न रह जाये , इसलिए आज हर आदमी का अपना अलग एक बाबा हो गया है .
इस तरह बाबाओ की संख्या बढ़ी तो उनमे भी comptition पैदा हो जाना स्वाभाविक बात है ऐसे में एक बाबा को दुसरे बाबा से आगे जाने की होड़ पैदा हो गई . यह अलग बात है की अपने भक्तो को मोहमाया , लालच , इर्ष्या से दूर रहने की सलाह देते हुए खुद इन तुच्छ मानवीय कमजोरियों के सहारे जगत मिथ्या के यथार्त महासागर को पार करने की विवशता हो . क्यूंकि बाबावाद भी कुछ कुछ पूंजीवाद के अनुरूप ही खड़ा हुआ है जिसमे पूंजी ही सबकुछ होती है , परन्तु कुछ बातो में बाबावाद के नियम पूंजीवाद से थोड़े से अलग है . पूंजीवाद में जहाँ माया यानी पूंजी को सर्वोपरि मानकर पूंजी को अर्जित किया जाता है , वहीँ बाबावाद में पूंजी यानी माया को तुच्छ बताकर उसे झटका जाता है फिर इसी माया से आलिशान आश्रमों का निर्माण होता है जहाँ से माया के इस खेल का और व्यापक विस्तार किया जाता है . इस तरह कुछ बाबा जो इस होड़ में सफल हो जाते है उनकी पांचो उंगलियाँ घी में और सर कडाही में हो जाती है , फिर तो सरकार भी उनकी लोग भी उनके और मिडिया भी उनकी . जो असफल हो जाते है वो बलात्कार या अवैध कब्जे जैसे मामूली लफ़ड़ो में कुछ समय फाइवस्टार जेलों में प्रवचन कर आते है .

बाबावाद में सफल होने का सब से आसान तरीका है आत्मविश्वास अगर आपमें यह गुड है तो आप भी आजमा सकते है . बाबा बनने का गुरुमंत्र है "झूठ बोलो कांफिडेंट के साथ" . आपकी शिक्षा , योग्यता या ज्ञान से यहाँ कोई मतलब नहीं यह सब तुच्छ चीजे है अगर आप बाबा बनने जा रहे है तो इन चीजो को अतिशीघ्र अपने से दूर करें .

बाबा बनने से पहले कुछ आवश्यक बातो को ध्यान में रखे , सबसे पहले आपको अपनी वेशभूषा बदलनी होगी , पैंट कमीज की जगह भगवा वस्त्र धारण करें , तिलक लगाये , दो चार मालाएं हमेशा पहन कर रखे , दाड़ी और मूछों और साथ ही सर के बालों का विशेष ध्यान रखे . प्रतिदिन स्नानादि की आदत छोड़ दें क्युकी आगे चलकर जब आप प्रतिष्ठित बाबा बन जायेंगे तब आप इतने व्यस्त हो जायेंगे की आपको महीने में एकाध बार संयोगवश ही नहाने का सुअवसर मिलेगा .

इसके बाद आप यह तय करे की आपको किस कैटेगिरी का बाबा बनना है , अगर आप थोड़े से रंगीनमिजाज है भोग विलास अय्याशी में आपकी अधिक रूचि है तब आप इच्छाधारी टाइप बाबा बन सकते है इसके लिए आपको शाश्त्रो की कुछ कहानियाँ और कुछ भजनों को तोते की तरह रटना होगा . ध्यान रहे की आपकी वाणी में माधुर्यरस हो , कोमलता हो और वाणी में चातुर्य का होना तो सबसे आवश्यक है .

अगर आप कुछ और बड़ा करना चाहते है तो आप अगली कैटेगिरी पर ध्यान दे अगर आप बेवकूफ बनाने की कला में महारत हासिल कर चुके है तो आप ज्योतिषाचार्य बन जायें , इसके लिए आपको कुछ गृह नक्षत्रो के नाम याद करने होंगे बस . शुरुआत में आप "त्रिकालज्ञ विश्व के महान ज्योतिषाचार्य" इस तरह के पर्चे बंटवा दीजिये . जैसे ही कोई पहला मुर्गा फंसे , तो उससे कहिये "आने वाला सप्ताह तुम्हारे लिए ठीक नहीं है , तुम कहीं जाओगे तुम्हे छींक आएगी और तुम किसी गटर में या किसी ब्लूलाइन बस के निचे आकर मर सकते हो , तुम्हारे ऊपर शनि की कुदृष्टि है , राहु और केतु तुम्हारे कंधे पर सवार है , इसके समाधान के लिए तुम्हें किसी मगरमच्छ का १०० ग्राम आंसू और चील का मूत लाना होगा जिसे तुम्हे अपनी बीबी के सिंदूर और चूल्हे की कालिख में मिलाकर अपने चेहरे पर पोतना होगा और ये कालिख लगाकर तुम्हे शनिवार के दिन मोहल्ले में घुमने के बाद सूर्य को जल देकर गौमूत्र से नहाना होगा , नहीं तो तुम्हारी बीवी विधवा और तुम्हारे बच्चे अनाथ हो जायेंगे" . यह सब सुनकर जब सामने वाले के तोते उड़ जाये तब उसे इस समस्या का दूसरा और सरल उपाय समझाएं , उससे कहे की "तुम्हारी कुशलता के लिए यह सब काम हम किसी अपने चेले के द्वारा करवा सकते है जिसमे कम से कम ५०००रु का खर्च आ सकता है .

इस तरह जब आप एकाध वर्ष में ही एक प्रतिष्ठित ज्योतिषाचार्य बन जायेंगे तब आपको टी.वी. चैनलों का निमंत्रण मिलने लगेगा . चैनल पर आने के बाद आपकी प्रतिष्ठा में चार चाँद लग जायेंगे . तब अधिक पैसा देकर दुसरे चैनल वाले आपको अपनी टी.आर.पी बढ़ाने के लिए बुलाने लगेंगे , आप इस तरह के सुअवसर को कभी हाथ से न जाने दें और झट पहले वाले को धोका देकर दुसरे चैनल में चले जायें , वहां जाकर अपने पहले प्रवचन में ही यह बात अवश्य कहें की "संसार एक धोका है तो हे मानव किसी को धोका न दों और मोह-माया एवं लोभ से दूर रहो ", इस तरज की बाते दोहरातें रहे , इसके साथ ही हर बात पर पश्चिमी सभ्यता को कोसना न भूलें , सभी प्रश्नों के उत्तर में एक बार यह बात अवश्य दोहराएं "ये तो हमारे शाश्त्रो में पहले ही कही जा चुकी है" और "यह सब तो पश्चिमी सभ्यता का असर है" , इस समय तक आप एक प्रतिष्ठित ज्योतिषाचार्य हो चुके होंगे , आपसे लोग देश की समस्याओं के विषय में भी प्रश्न करेंगे , महंगाई के प्रश्न पर आप कहें की "देश पर अभी साढ़े-साती चल रही है , साढ़े-सात महीने बाद महंगाई अपने आप काम हो जाएगी अन्यथा महंगाई नाशक यज्ञ करना होगा ", बेरोजगारी के विषय में कहें की "भारत महाशक्ति बनने जा रहा है तो बेरोजगारी जैसी छोटी-मोटि बातें अपने-आप समाप्त हो जाएँगी" ,

नक्सलवाद और आतंकवाद के विषय में कहें की "जब जब आसुरी शक्तियों का प्रभाव बढ़ने लगता है तब-तब भगवान अवतार लेते हैं" , इसके साथ ही गीता का 'यदा-यदा ही धर्मस्य .......' वाला श्लोक ऊँची आवाज में पढ़ें.

महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों के विषय में कहे की "यह सब तो पशिमी सभ्यता का असर है". भुखमरी और कुपोसण के विषय में कहें की "यह सब उनके पिछले जन्म के पापों की वजह से है अवश्य उन्होंने पिछले जन्म में किसी की रोटी छीनी होगी ", पश्चिमी सभ्यता की निंदा करते समय यह बात भी अवश्य कहें की "पश्चिम का सारा विज्ञानं हवाई जहाज से लेकर कम्प्यूटर तक हमारे शाश्त्रो की देन है , अंग्रेज हमारे शाश्त्र विदेश ले गए और उसमें से सारा विज्ञानं निचोड़ लिया" . इसके बाद चैनल के माध्यम से यह भी कहना न भूलें की "पृथ्वी अचला है और सूर्य भगवान रथ पर सवार होकर पृथ्वी का चक्कर लगाते है" , अगर लोगों को यकीन न हो तो आप तुलसी रामायण की चौपाईओं से इसका प्रमाण भी दे सकते हैं की पृथ्वी शेषनाग के फन और कछुए की पीठ पर स्थित है 'कमठ शेष सम धर वसुधा के' (रामचरितमानस २०/७) ऐसा हमारे शाश्त्र कहते है, अपनी बात को सही सिद्ध करने के लिए यह भी दोहरादें की यही बात तो बाद में यूरोप के वैज्ञानिकों ने सिद्ध भी कर दिया है .

अगर आप ज्योतिषाचार्य से भी बड़ा नाम कमाना चाहते है तब आपको श्री-श्री कविशंकर अथवा बाबा कामदेव जैसा योग-भोग या रोग गुरु बनना पड़ेगा . अब योग-भोग-रोग का तो पहले ही पेटेंट कराया जा चुका है अतः आपको अब कुछ नया करना पड़ेगा . आप शाश्त्रो के नाम पर किसी नई कला का ईजाद कर सकते है , जैसे आप मुर्गा बनने की नई तकनीक शाश्त्रों के नाम पर प्रचारित का सकते है , आप कह सकते है की ये कला पूरी तरह भारतीय है और हमारे शाश्त्रों में वर्णित है . इस तरह मुर्गा बनने से मानव के सारे कष्ट दूर हो सकते है . बवासीर, भगंदर, पोलिओ, टी.वी, कैंसर ब्रेनहैमरेज या हार्टप्रोब्लम्स जैसे रोग चुटकियों में दूर हो सकते है तथा इस विधि से विश्वशांति आ सकती है , दुनिया की आतंकवाद समेत सभी समस्याओं से छुटकारा पाया जा सकता है . आप अपनी इस ईजाद को 'चिकन योग' का नाम दे सकते है , धीरे-धीरे जब आप एक प्रतिष्ठित 'चिकंयोग' गुरु बनकर लोगों को 'आर्ट आफ लिविंग' सिखाने लग जायेंगे या भारत के स्वाभिमान की रक्षा के नाम पर देश की सत्ता हथियाने का ख्वाब देखने लग जायें ,इससे पहले ही आप 'मुर्गांजलि' नाम से अपनी दवाइयों की फैक्ट्री खोल लें , ध्यान रखे की अपने 'चिकन योग के प्रचार के दौरान आप विदेशी कंपनियों ,विदेशी अविष्कारकों ,एवं पश्चिमी सभ्यता को गालियाँ देतें रहे ,चाहे आप के कारखाने में जो भी मशीनें हो सभी विदेशी कंपनियों ,विदेशी अविष्कारकों और पश्चिमी सभ्यता द्वारा निर्मित की गयीं हों .

इस तरह आप एक दिन बहुत बड़े व्यक्ति बन जायेंगे देश विदेश में आपकी हजारों शाखाएं खुल जाएँगी , आपको पश्चिमी संस्कृति के लोग आपकी उच्च भारतीय सभ्यता से प्रभावित होकर आपको अपने यहाँ आमंत्रित करेंगे .वहां जाकर आपको अपने वक्तव्यों में थोडा सा परिवर्तन करना पड़ेगा . वहां आपको कहना होगा की प्रथ्वी गोल है और सूर्य का चक्कर लगाती है ऐसा हमारे शाश्त्रो ने ५००० वर्ष पहले ही बता दिया था . आपने अगर कुछ और कहा तो हो सकता है आपको जूते पड़ने लगें क्यूंकि पश्चिमी सभ्यता तो असभ्य है ना ;-

अगर आपको लगता है की 'चिकनयोग' के बहाने ही सही खुद मेहनत कर दूसरों को मेहनत करने की प्रेरणा देना आपके बस की बात नहीं तो घबराने की बिलकुल भी आवश्यकता नहीं , अभी और भी कई कैटेगिरीज अभी बाकि हैं .

आप चाहें तो बापू कैटेगिरी के बाबा बन सकते है , जरा ठहरिये ! यहाँ गाँधी वाले बापू की बात नहीं हो रही , बल्कि हम बात कर रहे हैं ;-बम-पिस्तोल ,मोर्टरार जी बापू या निराशाराम जी बापू वाली कैटेगिरी की . इस कैटेगिरी का बाबा बनने के लिए भी आपको तुलसी रामायण के " ढोल , गंवार ,शुद्र ,पशु ,नारी ये सब ताडन के अधिकारी "सरीखे कुछ चौपाइयों की रटटमपेल करने की आवश्यकता होगी , इसके साथ-साथ दूसरी कैटेगिरीज के लिए बताई गई कुछ बातों का भी विशेष ध्यान रखें .

इस कैटेगिरी में आने के लिए सबसे पहले आपको अपने किसी सरकारी जमीन पर अवैध कब्ज़ा कर वहां जागरण ,भजन कीर्तन ,प्रवचन से ही शुरुआत करनी होगी .अगर आप शुरुआत में ही कुछ प्रतिष्ठित हो जाते है तब आप किसी की भी जमीन पर कब्ज़ा कर सकते है , बस आपको लोगों को समझाना होगा की "मरने के बाद तुम्हारी जमीन तुम्हारे किसी काम की नहीं , इस तरह आप हजारो बीघा जमीन के मालिक बन सकते है . जो ख़ुशी से अपनी जमीन आपके नाम नहीं करता उसकी जमीन पर धोके से आश्रम बनाये जा सकते है , बाद में अगर केस मुक़दमे की नौबत आती है तो घबराने की आवश्यकता नहीं , क्यूंकि तब तक आपके भक्त बड़े बड़े वकील होंगे , राज्य के बड़े-बड़े सरकारी अफसर तो आपके नौकर-चाकरों में से होंगे जो आपके तलवे चाटने में अपने आप को धन्य समझेंगे . फिरभी अगर आपका कोई पूर्व भक्त मोह-माया में फंसकर चंडोक या चांडाल वाली हरकत कर बैठे यानी आपके विरुद्ध गवाही देने को तैयार हो तो उस पर जानलेवा हमला करवा सकते है , उसे यमलोक भेजने का प्रबंध कर निश्चित हो सकते है क्यूंकि आपका तो कुछ बिगड़ने वाला नहीं .

अगर आपको बापू बनने में झंझट का काम लगता है तो चिंता करने की कोई जरुरत नहीं , आप अगली कैटेगिरी चुन सकते है ,यह है महाराज वाली कैटेगिरी . इस कैटेगिरी का सबसे बड़ा लाभ तो यह है की आप लोकतंत्र में भी महाराज की पदवी से नवाजे जायेंगे. इस कैटेगिरी में आप दयालु जी महाराज, झगडालू जी महाराज, कुधान्शु जी महाराज,या मतपाल जी महाराज जैसी कोई भी पदवी धारण कर सकते है , रटना तो यहाँ भी पड़ेगा . कुछ ही वर्षो में जब आपका बोल-बाला खूब हो जाये ,भक्तो की कृपा से आलिशान महल सरीखे आश्रम निर्मित हो जायें , तब आप दिखावे के लिए अपनी माँ, दादी,चची, नानी,या सास के श्राध का आयोजन करें और पूर्व जन्मों के कष्टों को झेल रहे गरीब नाम के लोगो को २०रु के भोजन का प्रलोभन देकर अपने आश्रम में आमंत्रित करें. अब पुरे देश में ढिंढोरा पिटवाने की जोहमत न उठाएं क्यूंकि ८४ करोड़ लोग इस देश में २०रु रोज पर गुजरा करते है , ऐसे में अगर सब के सब आ गए तो आपके शारीर पर कपडे और सर पर बाल भी नहीं बचेंगे , इसलिए केवल अपने क्षेत्र में ही ढिंढोरा पिटवायें , फिर देखें की एक वक्त की रोटी के लिए ६०-७० हजार तुच्छ प्राणी कुत्तों की तरह दौड़े-दौड़े पहुँच जायेंगे , आपको इन भूके-नंगे लोगो के लिए उचित व्यवस्था करने की कोई आवश्यकता है ही नहीं , अगर भगदड़ में ६०-७०मर भी जाते है , तो इसमें आपका तो कोई दोष नहीं , आप तो निश्चिन्त होकर अगले दिन के बुआ के श्राध की तयारी करें , जो मर गए उन्हें तो भगवान ने मारा , वैसे भी देश में रोज तीन हजार लोग सड़क दुर्घटनाओं में मरे जाते है .सात हजार बच्चे रोज भुखमरी और कुपोषण से मर जाते है , ६०-७०किसान रोज आत्महत्या कर लेते है ,इतने ही लोग गन्दा पानी पीने के कारण मर जाते है , तब तो कोई हंगामा नहीं मचता फिर आप ६०-७० तुच्छ प्राणियों के मारे जाने का अफ़सोस क्यों करते है आप काहे टेंसन लेते है.

आपके आश्रम में मरे हुओं के लिए हमारे महान अर्थशाष्त्री प्रधानमंत्री जी आपकी संपत्ति को कुर्क करने की बजाये संसद में मुआवजे की घोषणा कर देंगे . उसके अगले दिन देश के युवराज मरे हुओं के घरों में दौरों के बहाने दावत उड़ा आयेंगे . तीन-चार दिन बाद प्रदेश की मुख्यमंत्री जी दों-दों लाख के मुआवजे की घोषणा कर देंगी .बस हो गई मरने वालों के परिवारों की बल्ले-बल्ले. जिनका कोई नहीं मरा वो खुद को कोसेंगे . अब जरा सोचिये की कितने लोगो का भला होगा आपके कारण....

बाबा बनने के लिए आपको कुछ ख्याति प्राप्त बाबाओं के जीवन चरित्र का अनुसरण भी करना पड़ेगा इसके लिए आप आजकल के कुछ अति विख्यात (या कुख्यात)बाबाओं के चरित्र का अनुसरण कर सकते हैं जैसे भिमानंद जी महाराज जिनके चरित्र से आपको कुछ ही समय में 'चोर से महाराज' बनने की सीख मिल सकती है , इसी तरह आप नित्यानंदस्वामी जी के जीवन चरित्र से अध्यात्म के नाम पर (अभिनेत्रियों संग) अय्याशी के गुण सीख सकते हैं, या फिर आशाराम बाबु सरीखे बाबाओं से आश्रमों के नाम पर सरकारी जमीन हड़पने की कला सीख सकते हैं.

इन बाबाओं की सीडियां मंगवाकर जो 'उचित मूल्यों' पर उपलब्ध हैं और इनके प्रवचनों के महान ज्ञान से खुद भी लाभान्वित होकर बेवकूफ जनता को भी लाभान्वित होने का सौभाग्य प्रदान कर सकते हैं....

तो फिर देर किस बात की बाबाओं की भीड़ में एक बाबा और सही..........!

Monday 13 April 2015

निहित स्वार्थियों का षड़यन्त्र !
# वेदप्रमाण्यं कस्यचित् कर्तुवादः स्नाने धर्मइच्छा जातिवादावलेयः ! सन्तापारम्भः पापहानाय चेति ध्वस्तप्रज्ञानां पंच लिंगानि जाड़ये !(बौद्ध विचारक धर्मकीर्ति)
अर्थात बुद्धिहीनों के पांच काम हैं-वेदों को प्रमाणित मानना,ईश्वर का कर्त्तापन,धर्मकाँड़ के लिए स्नान की अनिवारियता,जातिवाद का प्रचार प्रसार तथा वर्णाश्रम और पापों से मुक्ति हेतु शरीर को कष्ट देना !
यदि इन सभी स्वतंत्र विचारकों की मान्यताएं समाज में स्थापित हो सकती तो आज हिंदू समाज इतने गहरे गर्त में नहीं डूबा होता.पिछले चार हज़ार वर्षों से चल रहा परोपजीवी ब्राह्मणों का षडयंत्र भी सफल नहीं हो पाता.अवतारवाद,तीर्थयात्रा एवं दानपुणय,जाति प्रथा,धार्मिक शोषण एवं उत्पीडन आदि रोग भी न लगते.स्वर्ग नरक की सौदेबाज़ी भी न होती.परन्तु हिंदू समाज में इन तर्कशील एवं प्रगतिशील स्वतंत्र विचारकों की आवाज़ निहित स्वार्थियों ने सफलता से दबा दी.घृणित उद्देश हेतु जहां बौद्ध तथा चार्वक साहित्य को नष्ट करने के साथ साथ खून की होली खेली गई वहीं पर एक षड़यन्त्र के अन्तर्गत महात्मा बुद्ध को विष्णु का अवतार घोषित किया गया.

Saturday 11 April 2015

प्राचीन भारत में तर्कशीलता !
# न स्वर्गो नाsपवर्गो वा नैवात्मा पारलौकिकः
नैव वर्णश्रमादीनां क्रियाश्च फलदायिकाः !
अर्थात न कोई स्वर्ग है,न कोई नरक है और न कोई परलोक में जाने वाली आत्मा है.न वर्णाश्रम की क्रिया फलदायक है.
# अग्निहोत्रं त्रयो वेदास्त्रिदण्डं भस्मगुण्ठनम्
बूद्धिपौरूषहीनानां जीविकेति बृहस्पतिः !
अर्थात अग्निहोत्र (हवनादि),तीन वेदों का अध्यन,तीन दण्ड़ तथा शरीर पर भस्म लगाना बुद्धि और पुरूषार्थ विहीन लोगों की जीवका का साधन है जो उन के पूर्वज बना गये हैं.
# पशुश्चेन्निहतः स्वर्गं ज्योतिष्टोमे गमिष्यति
स्वपिता यजमानेन तत्र कस्मान्न हिमस्यते ?
अर्थात जो यज्ञ में पशु को मार होम करने से वह स्वर्ग को जाता है तो यज्ञकर्ता यजमान अपने पितादि को मार होम करके स्वर्ग को क्यों नहीं भेजता ?
# मृतानामपि जन्तुनां श्राद्धं चेत्तृप्तिकारणम्
गच्छतामिह जन्तुनां व्यर्थं पाथेयकल्पनम् !
अर्थात जो मरे हुए जीवों का श्राद्ध और तर्पण तृप्तिकारक होता है तो परदेस में जाने वाले निर्वाहार्थ अन्न वस्त्र और धनादि क्यों ले जाते हैं ? श्राद्ध तथा तर्पण द्वारा उन को वस्तुऐं क्यों नहीं भेजी जा सकती ?
# स्वर्गस्थिता यदा तृप्तिं गच्छेयुस्तत्र दानतः
प्रसादस्योपरिस्थानमत्र कस्मान्न. दीयते ?
अर्थात जो मृत्योलोक में मृतकों के नाम दान करने से वह स्वर्गवासी तृप्त हो जाते हैं तो मकान की निचली मंज़िल में दान करने से वह सामग्री मकान की उपरी मंज़िल में ठहरे लोगों को क्यों नही मिलती ?
(चारवाक दर्शन पृष्ट ४,श्लोक १-२; पृष्ट ५ श्लोक २-१०).

Wednesday 8 April 2015

दान दें ज्योंज्यों रूप बड़े त्योंत्यों !
हमारे प्राचीन "असाधारण" शास्त्र महान ज्ञान भण्डार हैं.सभी समस्याओं के उपाय भक्तजन के लिए प्रस्तुत किए गये हैं.हमारे प्राचीन शास्त्रकारों के अनुसार स्त्रियां अपने सौन्दर्य और शरीर के गठन में मनचाहा परिवर्तन कर सकती हैं.इस उद्देश्य प्राप्ति के लिए न किसी फियर ऐंड़ लवली क्रीम की आवश्यकता है न किसी cosmetic doctor की आवश्यकता है.बस उन को केवल किसी ब्राह्मण की आवश्यकता है जिसे समुचित दान दक्षिणा देकर मनचाहा रूपरंग प्राप्त किया जा सकता है.
# आप चाहें कितनी करूप हों,रति के समान सुन्दर हो सकती हैं.इस के लिए आप को नर्मदा नदी से प्राप्त वाणलिंग का पूजन करना चाहिए.पूजा में स्वर्ण रत्न और धन काम में लाना चाहिए तथा पूजन के पश्चात समस्त सामग्री की दान ब्राह्मण को कर देना चाहिए. (संक्षिप्त शिव पुराण,पृष्ट ५५१,कल्याण विशेषांक जनवरी १९६२).
# होंठों को सुन्दर बनाने के लिए,स्त्री को एक वर्ष तक मिट्टी के बरतन में पानी पीना चाहिए.एक वर्ष के बाद ,ब्राह्मण को मूंगा दान करने से उस स्त्री के होंठ अति सुन्दर हो जायेंगे.(हरिवंश पुराण,श्लोक २३).
# मोती जैसे सुन्दर दांतों की कामना करने वाली स्त्री को शुक्लपक्ष की अष्टमी का उपवास एक वर्ष तक करना चाहिए तथा एक वर्ष पूरा होने पर चांदी के दांत बनवाकर उन्हें शुद्ध दूध में डालकर दांतों सहित वह दूध ब्राह्मण को दान करना चाहिए. (हरिवंश पुराण,श्लोक २५).
# पूरे चेहरे को सुन्दर बनाने के लिए स्त्री को एक वर्ष तक प्रत्येक पूर्णिमा को ब्राह्मण को दूध से बनी मिठाई खिलानी होगी तथा एक वर्ष के बाद सोने अथवा चांदी का चंद्रमा बनवा कर ब्राह्मण को दान करना होगा.(हरिवंश पुराण, श्लोक २७-२९).
# जो स्त्री यह चाहती है कि उस के दोनों स्तन ताड के फलों समान भरे हों वह प्रत्येक दश्मी तिथि को मौन रख कर बिना मांगे अन्न का भोजन करे और एक वर्ष पूरा होने पर सोने के बने हुए दो सुन्दर बैल ब्राह्मण को दक्षिणा सहित दान में दे.
(हरिवंश पुराण,श्लोक ३०-३२).
# पतली कमर की इच्छा रखने वाली स्त्री को एक वर्ष तक एकांत में भोजन करना चाहिए और प्रत्येक पंचमी को उबला हुआ भोजन करना चाहिए. एक साल बाद ब्राह्मण को चमेली की लता का दान दक्षिणा सहित करना चाहिए. (हरिवंश पुराण,श्लोक ३३-३४).
चमत्कार में अगाध अंधविश्वास रखने वाली असंख्य स्त्रियां आज भी इसी प्रकार दानदक्षिणा देती हुई ढोंगियों की झोलियां भर रही हैं.

Friday 3 April 2015

धार्मिक नैतिकता का विरोधाभास  !
भारत के करोड़ों हिन्दू भक्ति ,पूजा ,प्रार्थना ,तीर्थयात्रा और साधुसेवा में             कभी आंच नहीं आने देते ,परन्तु नित्य जीवन मैं नैतिक एवं अन्य अपराध करने से बाज़ नहीं आते। यदि देशभर के जेलों मैं विभिन्न अपराधों के कारण बंद अपराधियों का सर्वेक्षण किया जाये तो ९९ प्रतिशत कैदी विभिन्न धर्मों के कटर अनुयायी मिलेंगे जो जेल मैं भी अपने अपने धरम और उस के रीतिरिवाज का पालन कर रहे हैं. उनसभी को पूरा विश्वास है कि अपराध कैसा भी हो,भगवानजी की आराधना एवं तुष्टिकरण से न केवल पापों से मुक्ति मिलती है वरन मरने के पश्चात दूसरे संसार मैं सुखसुविधा का अग्रिम प्रबंध हो जाता है. भगवानजी हमारे अपने आत्मीय हैं और हम उनसे कुछ भी नहीं छुपाते -वह हमारे राज़दार हैं पालनहार हैं।
अंग्रेजी भाषा के मेरे प्रियतम लेखकों मैं एक खुशवंत सिंह हैं जो अपनी स्पष्टवादिता के कारण प्रसिद्ध भी थे और बदनाम भी थे और उसने किसी को भी नहीं बख्शा। उनकी आत्मकथा "Truth,Love,and a little Malice` वर्ष २००२ मैं प्रकाशित हुयी ;अपनी विशेष शैली मैं उन्होंने अपने पूर्वजूँ के बारे लिखा जो पोथोहर [पाकिस्तान] के निवासी थे और वहीँ कारोबार करते थे। खुशवंत के अनुसार वह रोज़ प्रातः प्रार्थना करते थे :-
झूट भी असी बोलने हाँ ;
घट वी असी तोलने हाँ ;
पर सच्चे पादशा ;
तेरा ना वी असी लेने हाँ
[we admit we tell lies;
we also give short measures;
But O true king of kings;
we also take your name][Ibid,page 374].

Thursday 2 April 2015

रामायण के असाधारण चरित्र !
* ६०,००० वर्ष की आयु मैं राजा दशरथ के बच्चे पैदा होते हैं। वे भी हवनकुंड से पैदा हुऐ एक व्यक्ति की दी गई खीर खाने से गर्भवती  हुई रानियों से [बालकाण्ड ,सर्ग १६].
* राजा सगर की पत्नी ६०,००० बच्चों को जन्म देती है [बालकाण्ड ,सर्ग ३८ ].
* अहल्या नामक एक नारी हज़ारों वर्षो तक केवल हवा खाकर जीवित रहती है [बालकाण्ड,सर्ग ४८].
* एक गाय पल भर मैं इच्छित वस्तु उपस्थित कर देती है [बालकाण्ड,सर्ग ५४].
* राम ११,००० वर्ष तक राज्य करते हैं. [बालकाण्ड,सर्ग ९७].
* ५,००० वर्ष की आयु लड़कपन की सीमा मैं है [उत्तरकाण्ड ,सर्ग ७३].
* जटायु नामक ग़ीध संस्कृत मैं प्रश्नोतर करता है [अरण्यकाण्ड ].
* एक बंदर ८०० मील चौड़े सागर को एक छलांग मैं फांद जाता है [सुंदरकांड ].
* रामरावण युद्ध मैं मरने वाले वानर और रीछ शाम को फिर जीवित हो जाते हैं [युद्धकाण्ड ,सर्ग १२०].
* कुम्भकर्ण पैदा होते ही कई हज़ार लोगों को खा जाता है [युद्धकाण्ड,सर्ग ६१].
* ऋषि अगस्त्य के आगे निर्जीव पर्वत विंध्यांचल सिर झुका देता है [अरण्यकाण्ड ,सर्ग ११].
* राम अकेले ही ७२ मिनटों से भी कम समय मैं १४,००० राक्षसों को धनुषबाण से मार गिराते हैं [अरण्यकाण्ड,सर्ग ३०].
* केसरी की पत्नी अंजना हवा के चलने मात्र से गर्भवती हो जाती है.[उत्तरकाण्ड ,सर्ग ३५]।
* एक वानर का बच्चा कई लाख मील अंतरिक्ष् मैं ऊपर जाता है और सूर्य को मुख मैं बंद कर लेता है [उत्तरकाण्ड ,सर्ग ३५].
* राजा ययाति अपने बेटे  से उसका यौवन ले लेता है और कई वर्षों के बाद उसे लौटा देता है [उत्तरकाण्ड ,सर्ग ५९].
* शम्बूक नामक शूद्र को तपस्या करने के आरोप मैं जब राम मार डालता है तो एक मृत ब्राह्मण बच्चा जीवित हो जाता है [उत्तरकाण्ड,सर्ग ७६].
यह कुछ मुख्य स्थल ही गिनाये गये हैं अन्यथा लिस्ट काफी लम्बी है !

Wednesday 1 April 2015

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन;
२१वीं शताब्दी में कर्म योग का व्यवहारिक पहलू !
# संघ परिवार के महारत्न हरियाणा प्रदेश के मुख्यमन्त्री ने प्रदेश में गीता का अध्यन अनिवार्य कर दिया है .इस से पूर्व संघ परिवार की ओर से यह प्रवचन भी देशवासियों को दिया गया कि गीता को राष्ट्रीय ग्रन्थ घोषित किया जाये.तर्क में दम है और हिंदू राष्ट्र की प्राचीन गौरवशाली परम्पराओं को पुनः स्थापित करने का प्रगतिशील माध्यम भी.
अधिकांश लोग इस श्लोक (गीता,२/४७) की प्रथम पंक्ति का अर्थ " तेरा कर्म करने में ही अधिकार है,फल प्राप्ति में कभी नहीं" लगाते हैं परन्तु संस्कृत भाषा के व्याकरण अनुसार इस का वास्तविक अर्थ है "तेरा कर्म करने में ही अधिकार हो,फल प्राप्ति में कभी न हो".श्लोक की दूसरी पंक्ति की अर्थ है "तू कर्म में फल की इच्छा वाला न हो."
वेद व्यास ने भले ही कृष्ण के माध्यम से यह उपदेश हज़ारों वर्ष पहले दिया हो परन्तु २१वीं शताब्दी में राष्ट्रीय पूंजीपति वर्ग तथा बहुराष्ट्रीय संस्थानों और भाजपा के राजनीतिक हित के लिए यह प्रवचन कितना सार्थक उद्देश्यपूर्ण और व्यवहारिक है -इस की कल्पना की जा सकती है.
कारखानों कार्यालयों तथा अन्य सभी संस्थानों की दीवारों पर "कर्मण्येवाधिकारस्ते...." बड़े बड़े अक्षरों में लिखा जाना चाहिए.सभी अधिकारियों और पूंजीपति वर्ग के लिए इस से अच्छा घोषणापत्र और कुछ हो नहीं सकता.कर्मचारियों को केवल काम करने का अधिकार होगा फल(वेतन आदि अन्य सुविधायें) पाने का अधिकार नहीं होगा.उन्हें खूब मन लगाकर काम करना होगा और यह सम्बन्धित अधिकारियों का अधिकार होगा कि वह उन्हें थोड़ा बहुत वेतन आदि दें अथवा न दें.
ऐसे क्रान्तिकारी कदम से जहां एक तरफ बेकारी समाप्त होगी ,वहीं दूसरी ओर "देशद्रोही" वामपंथी कर्मचारियों को संगठित करके संघर्ष के पथ पर नहीं ले जा पायेंगे.
जय हिंदू राष्ट्र !