Monday 31 July 2017

The main reason the President (or his speechwriter) did not mention India’s first Prime Minister was that the Sangh Parivar which sent him to this high office is ideologically opposed to Nehru. They wanted (and still want) a Hindu Rashtra; Nehru insisted that if India was anything at all, it was not a Hindu Pakistan. They glorify our past and ancient scriptures; Nehru instead sought to build a modern society by means of reason and science. The Sangh Parivar even opposed democracy, the RSS journal Organiser writing in 1952 that Nehru would ‘live to regret the failure of universal adult franchise in India’. They think that men are women’s guardians; whereas Nehru believed that women were in all respects fully equal to men.

Sunday 30 July 2017

वंदेमातरम् पर ज़ोर ज़बरदस्ती क्यों  ?
एक  असाधारण घटनाक्रम के परिवेश में मद्रास हाई कोर्ट का आश्चर्यजनक निर्देश सामने आया है कि पूरे राज्य के शिक्षा संस्थानों तथा निजी एवं सरकारी कार्यालयों में वंदेमातरम् का गायन अनिवार्य होना चाहिए .एक भारतीय के नाते में कई बार वंदेमातरम् गुनगुनाता हूँ और कई समारोहों में सामूहिक रूप से भी गाया है लेकिन मैं  नहीं समझता हूँ कि अपने आप को देशभक्त प्रमाणित करने के लिए मुझे या किसी अन्य नागरिक को कोर्ट का निर्देश ज़रूरी है. वंदेमातरम् गाना या न गाना हर नागरिक की भीतरी संवेदना है जो समय समय पर भिन्न भिन्न कारणों पर निर्भर है . देशभक्त होने का एकमात्र मापदंड वंदेमातरम् क्यों ?न्यायिक सक्रियता [Judicial activism] के विरोधाभास के प्रतीक के रूप में पहले भी एक हास्यप्रद निर्णय /निर्देश है कि सिनेमा हॉल में फिल्म देखने पर राष्ट्र गान के समय खड़ा होना अनिवार्य है .क्या मूलभूत संविधानिक अधिकारों में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अंतर्गत  गाना या न गाना शामिल नहीं है ?क्या यह निर्देश बीमार अथवा शारीरिक /मानसिक विकलांग नागरिकों पर भी ज़बरदस्ती लागू किया जाएगा ? मैं मानता हूँ कि सुप्रीमकोर्ट को इस निर्देश को संज्ञान में लेकर निरस्त करना चाहिये.
वंदेमातरम् गाना बंकिमचन्द्र चटर्जी के उपन्यास "आनंदमठ " से लिया गया है जो कथानक के अनुसार हिन्दू विद्रोही मुस्लिम शासकों के विरुद्ध गाते हैं . आज़ादी के पश्चात् वंदेमातरम् को राष्ट्रिय गान के रूप में मान्यता देने का प्रस्ताव ज़रूर आया था लेकिन संविधानिक सभा ने इस गान की सम्प्रदायिक पृष्टभूमि के कारण इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया . क्या संविधानिक सभा के माननीय सदस्य जिन में नेहरु ,पटेल तथा आंबेडकर जैसे स्वतंत्रता सेनानी शामिल हैं  देशभक्त न थे जिन्होंने वंदेमातरम् के स्थान पर जनगणमन गान को राष्टगान के रूप में  प्राथमिकता दी ?

Friday 28 July 2017

सेक्युलर से कम्युनल बनने का सफ़र वह भी चन्द घंटों में !

रात को ही क्यों हुई सारी कवायद?

बात बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की ही हो रही है। नीतीश कुमार ने बुधवार की शाम को अपनी अंतरात्मा की आवाज पर इस्तीफा दे दिया था। इस्तीफा देते ही नीतीश का रंग बदलने लगा। 12 मिनट बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष करने के लिए बधाई दे दी। इधर, नीतीश का रंग और भी तेजी से बदल रहा था। केवल दो घंटे में ही वे अपना मूल रंग छोड़कर केसरिया बन गए थे।केवल चन्द घंटो में सेक्युलर से कम्युनल बनने का कायाकल्प असाधारण चमत्कार से किसी भी द्रष्टिकोण से कम नहीं आँका जा सकता है ! यह सारी कवायद रात को इसलिए की गई ताकि सोते हुए गिरगिटों को पता नहीं चल सके। दिन में करते तो गिरगिट यह कहकर फच्चर फंसा सकते थे कि रंग बदलने का अधिकार केवल उन्हें हैं। इंसान कैसे बदल सकता है!

हत्या के आरोपी को समर्थन देने की मजबूरी से लालू भी बचे …

राजनीति में ज्ञानचक्षु वैसे तो खुलते नहीं हैं। खुलते भी हैं तो देर से। जैसे ही नीतीश ने रंग बदला, उधर लालू के ज्ञान चक्षु एक्टिव हो गए। उन्होंने कहा, “ ओह हो, नीतीश तो हत्या के आरोपी हैं।” उधर नितीश की सुप्त  अंतरात्मा भी एक वर्ष और कुछ महीनों के बाद जागी और उसके मन मस्तिष्क में ज्ञानमय चेतना जागी " यह में क्या कर रहा था !जूनियर लालू तो केवल आरोपी मुलजिम है सीनियर लालूजी तो सजायाफ्ता मुलजिम हैं ! एक गुप्त सूचना के अनुसार केसरिया और कम्युनल चोला पहनने के बाद भी नीतीशजी परेशानी के आलम में हैं क्योंकि उनके नए उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी भी कई धाराओं के अंतर्गत आरोपी मुलजिम हैं !

Thursday 27 July 2017

WHEN KARGIL DAY WAS NOTCHED UP AS #BIHAR_VIJAY_DIWAS  !
Within a space of 24 hours, a chief minister resigns, divests himself of his designated alliance partners, teams up with his declared political rivals and becomes chief minister again after getting sworn in at an unseemly superfast speed by a very obliging Governor. Reads like the script of a second-rate Hindi film from the 1980s. 
असाधारण चमत्कारिक विकास  !
हमारी पावन भूमि पर चमत्कारों का इतिहास अनन्त काल से चला आ रहा है लेकिन जब से ईश्वरीय प्रतीक विकास पुरुष का अवतरण हुवा है अब विदेशी धरती पर भी चमत्कार नज़र आ रहे हैं .
१. विकास पुरुष के रूस  की धरती पर कदम रखने के पावन अवसर पर रिलायंस वाणिज्य साम्राज्य ने ६ बिलियन बिज़नस डील पर अंतिम मुहर लगाई !
२. विकास पुरुष के ऑस्ट्रेलियाई धरती पर कदम रखने के पावन अवसर पर अदानी ग्रुप ने १६.५ बिलियन कोयला डील पर अंतिम मुहर लगाई !
३. विकास पुरुष के फ्रांस की धरती पर कदम रखने के पावन अवसर पर रिलायंस तथा दस्सौल्ट के बीच कई बिलियन के टाई अप पर समझौता डील हुईं !
४. विकास पुरुष के बंगला देश की धरती पर कदम रखने के पावन अवसर पर बांग्लादेश और रिलायंस पॉवर के बीच टाई अप की डील पर अंतिम मुहर लगी !
५. विकास पुरुष के अमेरिकन धरती पर कदम रखने के पावन अवसर पर रिलायंस डिफेन्स ने INR ३००० करोड़ वार्षिक डील पर अंतिम मुहर लगाई !
६. विकास पुरुष के इज्रिएल की धरती पर कदम रखने के पावन अवसर पर अदानी वाणिज्य साम्राज्य ने unmanned aerial vehicle [ड्रोन हवाई जहाज़ ] निर्माण के फील्ड में डील पर अंतिम मुहर लगाई !
सावधान :

Tuesday 25 July 2017

व्यंग्य यथार्थ के आस पास ;
#हुंकार_बम !
आजकल चीन और पाकिस्तान दोनों कुछ ज्यादा ही गुस्ताखी भरी आंखें दिखा रहे हैं ।निसन्देह विश्व हिन्दू वर्चस्व के दिव्य प्रतीक के रूप में पावन देश असाधारण रूप से शक्तिशाली है और युद्ध में किसी भी विरोधी को धूल चटा सकता है परन्तु कांग्रेसी षड्यंत्र के परिणामस्वरूप गोला बारूद केवल 10-15 दिनों के लिए पर्याप्त बताया जा रहा है-अतः अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त हिन्दू शिरोमणि वैज्ञानिक प्रातः स्मरणीय दीनानाथ बत्रा की अध्यक्षता में एक विशेषज्ञ कमेटी का गठन हुआ है जो 11 दिनों के अन्दर महाज्ञानी वैज्ञानिक ग्रंथों वाल्मिकी रामायण तथा महाभारत में वर्णित #हुंकार_बम की शास्त्रोक्त विधि का क्रियात्मक ज्ञान का पता लगायेंगे जिस के सौजन्य से महात्मा कपिल देव ने केवल अपनी हुंकार मात्र से महाराजा सगर के 60,000 शक्तिशाली पुत्रों को भस्म कर दिया था (वाल्मिकी रामायण,बाल कांड सर्ग 40, श्लोक 30) तथा युधिष्ठिर के ब्राह्मण दरबारियों ने महाभारत में हुंकार मात्र से चार्वाक को भस्म कर दिया था (महाभारत,शांति पर्व,अध्याय 38, श्लोक 35-36-37)।
स्पष्ट है हिन्दू राष्ट्र के एक और महाज्ञानी इन्द्रेश कुमार ने पूजा और निमाज़ से पहले इन्ही मन्त्रों के 5-5 बार उच्चारण का आवाहन किया है ।यदि चीन और पाकिस्तान बाज़ न आये तो ठीक 11 दिनों के पश्चात उन का विनाश सुनिश्चित है।
हरि ॐ हरि ॐ हरि ॐ !
व्यंग्य यथार्थ के आसपास ;
वर्ष २०१५ की पोस्ट जो आज भी प्रासंगिक है !

Monday, 26 October 2015

व्यंग्य :
21वीं शताब्दी में प्राचीन अदभुत विज्ञान की प्रासंगिकता !
जब से दीनानाथ बत्रा और बाबा रामदेव की प्रेरणा से मोदी जी, विश्व स्तर पर, प्राचीन भारतीय विज्ञान के ब्रेंड़ एम्बेस्ड़र बने हैं -पूरे विश्व में भारतीय विज्ञान की गौरवशाली परम्पराओं और ठोस असाधारण उपलब्धियों की चर्चा चारों दिशाओं में गूंज रही है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (world health organisation )ने इस चर्चा का संज्ञान लेते हुए ,डा. रिचर्ड़सन के नेतृत्व में पांच शीर्षस्थ वैज्ञानिकों का प्रतिनिधि मंडल भारत भेजा है जो 111 दिनों में निम्न विषयों का गहन अध्ययन करेगा :-
# कलश (घड़े) से महाॠषि अगस्त्य और वसिष्ठ का जन्म. (संदर्भ ऋग्वेद 7/33/11-13).
# कार्तिकेय का गंगा नदी से जन्म, (संदर्भ वाल्मीकि रामायण 1/37/12,14-15,17-18,21-23).
# राजा सगर की पत्नी सुमति द्वारा 60,000 पुत्रों का जन्म. (संदर्भ वाल्मीकि रामायण 1/38/17-18).
# मनु की नाक से बच्चे का जन्म.(संदर्भ विष्णु पुराण 4/2/11).
# गोद में गिरे वीर्य से असंख्य ब्रह्मचारियों का जन्म. (संदर्भ, शिवपुराण, ज्ञानसंहिता 18).
# गिरे वीर्य से हज़ार वर्ष बाद बच्चे का जन्म. (संदर्भ, ब्रह्मावैवर्तपुराण, ब्रह्मखण्ड, 4/23-24).
# लकड़ी से पुत्र का जन्म. (संदर्भ, देवीभागवतपुराण, 1/14/4-8).
# दोने से द्रोणाचार्य का जन्म. (संदर्भ, महाभारत, आदिपर्व, 129/33-38).
# सरकंड़े से कृपाचार्य का जन्म. (संदर्भ, महाभारत, आदिपर्व 129/6-20).
# पुरुष की कोख से पुत्र का जन्म. (संदर्भ, भागवतपुराण, 9/6/26-31).
# जंघाओं और भुजाओं से बच्चों का जन्म. (संदर्भ, भागवतपुराण, 4/14/43-45,4/15/1-5).
# गौमाता से मानव शिशु का जन्म. (संदर्भ, पद्मपुराण, उत्तराखंड, 4/62-65).
# मांस के लोथड़े से 101बच्चों का जन्म. (महाभारत, आदिपर्व, 114/9-13,18-22,40-41).
# अग्नि से दो बच्चों का जन्म. (संदर्भ, महाभारत, आदिपर्व, 166/39,44).
# मछली के पेट से मानव का जन्म. (संदर्भ, महाभारत, 63/64,49-50,59-61,67-68).
# खीर से गर्भवती होकर दशरथ की पत्नियों द्वारा चार पुत्रों का जन्म. (संदर्भ, वाल्मीकि रामायण, बालकांड़, 16/11/15-20,30).
* विश्वस्त सूत्रों से ज्ञात हुआ है कि गहन अध्ययन के बाद पांच में से चार वैज्ञानिक मानसिक सन्तुलन खो बैठे हैं और वह आगरा के मेंटल हास्पिटल में चिकित्सा लाभ प्राप्त कर रहे हैं.
अन्धविश्वास गुलामी की आधारभुत संजीवनी !
जब बाबर ने 1526 ई. में भारत पर हमला किया तब यहां के शासकों ने उसे रोकने के लिए बहुत से पीर, योगी, जंत्रमंत्र करने वाले इकट्ठे कर लिए थे कि वे अपने धागे, तावीज, भस्म आदि से हमलावर को नष्ट कर देंगे, परंतु किसी का जंत्रमंत्र कोई काम नहीं आया. गुरु नानकदेव, जो इस घटनाक्रम के चश्मदीद गवाह थे, ने लिखा है कि जब शासकों ने सुना कि मीर (बाबर) आ रहा है तो उन्होंने करोड़ों पीरों आदि को इकट्ठा कर लिया, परंतु जब वह आया तो उस की फौजों ने बड़ेबड़े पक्के मकान, मजबूत मंदिर आदि सब आग में जला दिए और राजकुमारों को काट कर मिट्टी में मिला दिया. किसी का कोई जंत्रमंत्र किसी काम न आया, उन से एक भी मुगल अंधा नहीं हुआ : कोटी हू पीर वरजि रहाए जो मीरु सुणिया धाइया. थान मुकाम जले बिज मंदर मुछि मुछि कुइर रुलाइया.. कोई मुगल न होआ अंधा किनै न परचा लाइया.. (आदिग्रंथ, 417-18) इन करोड़ों भभूत, धागे, ताबीज वालों की कृपा से हमलावर इस देश का हाकिम बन गया और सदियों तक के लिए मुगलों का साम्राज्य यहां स्थापित हो गया तथा देश गुलाम हो गया. यदि इन के चक्कर में लोग न पड़ते और शस्त्र उठा कर शत्रु का सामना करते तो वे उसे मिट्टी में मिला सकते थे. परंतु जो शस्त्र के स्थान पर राख, तावीज और धागों में उलझे थे, उन्हें राख में मिलने से कौन रोक सकता था?
गरुड़ पुराण :अज्ञान एवं अन्धविश्वास  का महा पुराण  !
अंधविश्वास कैसेकैसे
गरुड़ पुराण में कहा गया है कि पापियों के प्राण गुदा जैसी नीचे की जननेंद्रियों से और पुण्य करने वाले व्यक्तियों के प्राण ऊपर के अंगों से निकलते हैं जबकि वास्तविकता यह है कि मनुष्य की मौत श्वसन तंत्र फेल हो जाने से ही होती है.
गरुड़ पुराण के प्रथम अध्याय के अनुसार, मृत्यु के बाद मनुष्य का कद एक अंगूठे के आकार जितना रह जाता है और उस को यमलोक की यात्रा करवाने के लिए निकले दूत भयानक होते हैं. पुस्तक के प्रथम अध्याय में कहा गया है कि यमदूत अंगूठे के आकार के मृत व्यक्ति को घसीटते हैं, जहरीले सांपों से डसवाते हैं, तेज कांटों से बेधते हैं, शेर व बाघ जैसे हिंसक जानवरों के सामने आहार के रूप में परोसते हैं. आग में जलाते हैं, कुत्तों से कटवाते व बिच्छुओं से डसवाते हैं.
यहां प्रश्न उठता है कि इतनी यातनाएं देने के बाद भी अंगूठे के आकार का मनुष्य जीवित कैसे रह सकता है? और क्या विशालकाय यमदूतों को अंगूठे के आकार के व्यक्ति को घसीटने की जरूरत पड़ सकती है?
सजाएं यहीं समाप्त नहीं होतीं. इतने छोटे आकार के व्यक्ति को छुरी की धार पर चलाया जाता है. अंधेरे कुओं में फेंका जाता है. जोंकोंभरे कीचड़ में फेंक कर जोंकों से कटवाया जाता है. उसे आग में गिराया जाता है. तपती रेत पर चलाया जाता है. उस पर आग, पत्थरों, हथियारों, गरम पानी व खून की वर्षा भी की जाती है. अंगूठे के आकार के व्यक्ति को वैतरणी नदी जिस का किनारा हड्डियों से जोड़ा गया है व जिस में रक्त, मांस व मवाद का कीचड़ भरा है, में डुबोया जाता है.
उस के बाद यमदूत उसे समयसमय पर भारी मुगदरों से भी पीटते हैं. मृतक की नाक व कानों में छेद कर के उसे घसीटते हैं और शरीर पर लोहे का भार लाद कर भी चलवाते हैं. इस तरह की कई कथित यातनाएं मृतक को दी जाती हैं. लेकिन आश्चर्यजनक रूप से वह मरता नहीं. इस वैज्ञानिक युग में इस तरह की बातें अविश्वसनीय व हास्यास्पद नहीं हैं तो और क्या हैं?
पंडों, पादरियों और मौलवियों, जो अपनेआप को पृथ्वी पर ईश्वर का दूत मानते हैं, ने मृत्यु के बाद का एक काल्पनिक संसार रच दिया है लोगों के दिलोदिमाग में. अपनेआप को शास्त्रों का ज्ञाता बताने वाले इन दूतों ने हरेक कर्मकांड को धर्म से जोड़ कर यजमानों के आसपास ईश्वर के प्रकोप और अनहोनी का जाल बुन दिया है. इस जाल के तानेबाने इतने सशक्त हैं कि धर्मभीरू जनता के लिए इन्हें तोड़ना आसान नहीं. अगर कोई कोशिश भी करना चाहे तो उसे परलोक का भय दिखा कर डराया जाता है. हरेक धर्म के अपने धर्मगुरु होते हैं. समाज का एक बड़ा तबका इन का अनुयायी होता है. इन गुरुओं की रोजीरोटी अपने यजमानों के कारण ही चलती है. जब भी यजमान को कोई परेशानी होती है, वह इन गुरुओं की शरण में आता है और गुरुजी तत्काल उस समस्या का कोई समाधान सुझा देते हैं. बदले में वे मोटी दक्षिणा वसूलते हैं. समस्या जितनी बड़ी होगी, समाधान भी उतना ही महंगा होगा. पिछले दिनों मेरे पड़ोस में रहने वाले एक मित्र का देहांत हो गया. उन का बड़ा बेटा जो कि विदेश में रहता है, अंतिम संस्कार के समय नहीं पहुंच सका. मुखाग्नि छोटे बेटे के हाथों दिलवाई गई. मगर पगड़ी रस्म के समय पंडितजी ने कहा कि बड़े बेटे के रहते छोटे को पगड़ी नहीं पहनाई जाएगी. कुछ अतिरिक्त दक्षिणा ले कर उन्होंने उस का भी तोड़ निकाल दिया. बड़े बेटे की तसवीर को पाटे पर रख कर रस्मपगड़ी संपन्न करवाई गई.

Monday 24 July 2017

काउंसलिंग के दौरान अक्सर प्रेमिकाएं/पत्नियां एक बात कहती पाई जाती हैं कि ‘उसने मुझे तब छोड़ा जब मुझे उसकी सबसे ज्यादा ज़रूरत थी। मैंने उसे इतना प्यार किया, उसने मेरे साथ ऐसा क्यों किया?’ पति या प्रेमी कब भगोड़े नहीं थे? गौतम बुद्ध तब भागे जब उनकी पत्नी यशोधरा नवजात शिशु की मां थी। राम ने सीता का त्याग तब किया जब सीता गर्भवती थी। कुंती ने जब सूर्य से कहा कि ‘आपके प्रेम का प्रताप मेरे गर्भ में पल रहा है’ तो सूर्य बादलों में छुप गए। फिर भी बुद्ध ‘भगवान’ कहलाए और राम ‘मर्यादा पुरुषोत्तम’। और तो और, कर्ण भी अपने बाप से सवाल पूछने के बजाय कुंती से ही पूछते हैं- ‘आपने मुझे जन्म देते ही गंगा में प्रवाहित कर दिया, फिर कैसी माता?’ यह नहीं सोचा कि अगर उनके महान पिता सूर्य देवता उन्हें अपना नाम देते तो कोई भी कुंती कर्ण को कभी खुद से अलग नहीं करती।

Sunday 23 July 2017

UNFIT FOR HUMAN CONSUMPTION !
A CAG (Comptroller and Auditor General) report has found the food served by the Railways in trains and at railway stations unsuitable for human consumption. Passengers are forced to buy contaminated and recycled foodstuff at prices higher than those in the open market and often no bills are issued. Packaged and bottled items past their shelf life are available for sale as also unauthorized brands of water bottles, indicating poor monitoring. CAG and railway teams have come out with these findings after conducting a joint inspection at 74 railway stations and on 80 trains. Besides, the report has found lack of cleanliness at the catering units at stations and on trains. For frequent travellers this may not be a surprise. 
संस्कारी पहलाज निहलानी की कैंची पर रोकथाम ज़रूरी  !
हमारे देश में वैचारिक मतभेद पर अभिव्यक्ति बोद्धिक वाद विवाद का अभिन्न अंग रहा   है परंतु आज के परिवेश में संघ परिवार इस परंपरा को देशद्रोह मानता है .फिर भला "हर हर मोदी घर घर मोदी "के रचनाकार संस्कारी समर्पित आज्ञाकारी निहलानी देश भक्ति की दौड़ में पीछे कैसे रह सकते हैं ? फिल्म प्रमाणिकता के केन्द्रीय बोर्ड [CBFC] के बॉस का पद यूं ही तो नहीं मिला है .उनका दायित्व बनता है कि फिल्मों को अधिकृत प्रमाण पत्र केवल और केवल नागपुरी संस्कार सभ्यता तथा आचार संहिता की स्थापित नियमावली के अनुसार ही इशू किया जाये .
फिल्म लिपिस्टिक अंडर माय बुरका को भले ही विश्व स्तर पर सरहाने के साथ साथ प्रशंसा मिली हो परंतु बॉस की आज्ञा अनुसार फिल्म का प्रदर्शन भारत की पावन भूमि में नहीं हो सकता क्योंकि फिल्म बोल्ड है निर्माण अभिनय और विषय सब कुछ नारी प्रधान है. जाने माने अर्थ शास्त्री और फिल्म निर्माता सुमन घोष की नोबेल पुरस्कार विजेता अमरत्य सेन पर बनी डाक्यूमेंट्री निहलानी की कैंची का शिकार बनी है. मुख्य आधार विचारधारा का है. सेन अपनी विशिष्ट आर्थिक विचाधारा के कारण देश द्रोहिओं की अवांछित श्रेणी की लिस्ट में लिपिबद्ध हैं . भक्तों ने सेन से नोबल पुरस्कार छीनने की मांग भी की थी . बस फिर क्या था ,भगवा फरमान जारी हो गया कि फिल्म से वह सभी संदर्भ काट दिए जायें जहाँ जहाँ डाक्यूमेंट्री में देशद्रोही शब्दों  'गुजरात' 'हिन्दू इंडिया' 'cow' तथा 'Hindutva view of India [भारत का हिन्दुत्ववादी द्रष्टिकोण]' का प्रयोग किया गया है. 
आज के परिवेश में चर्चा और चिंतन का विषय है कि क्या धर्मनिरपेक्ष प्रजातन्त्रवादी वयस्था में एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति पर अपनी विचाधारा थोपने का संविधानिक अधिकार है ? देश तथा समाज के लिए क्या उचित है और क्या अनुचित है ? एक विशेष धर्म प्रेरित रजनीतिक विचारधारा और उसके अनुरूप आचार संहिता का औचित्य कहाँ और क्योंकर बनता है ? संविधान में परिभाषित मूल अधिकारों की प्रासंगिकता क्या संघ परिवार के राजनीतिक सशक्तिकरण के साथ साथ ही निरस्त हो गई है ? माना आरएसएस राज्य में व्यवहार और चिंतन में हिंदूवादी विचारधारा का बोलबाला है जिसके अंतर्गत धर्म निरपेक्ष प्रजातान्त्रिक व्यवहार और चिंतन देशद्रोह की परिभाषा में परिभाषित है लेकिन अभीतक संघ परिवार के न चाहते भी  संविधान के आधार पर भारत देश  धर्म निरपेक्ष  प्रजातान्त्रिक देश है न कि संस्कारी हिन्दू राष्ट्र !

Saturday 22 July 2017

FUTILITY OF RECITING VERSES FROM HINDU SCRIPTURES AT THE TIME OF DEATH ;
Since time immemorial,there is sanctimonious sanctity for reciting verses from Guradhpuran/Vedas/ Geeta with the help of Brahmnical professional expertise,at the time of death .Credulous and gullible have got profound faith that recitation of verses ,not only absolves deceased from all committed sin and immorality,but also is instrumental in preserving place of comfort in 'next/other world'.Social hype is given to the fact that 'sacred mantras' were chanted when he/she was cremated.This chanting is meaningless as the dead cannot hear nor is it established any way that content and context of verses is communicated to supposed gods,in the larger interests of deceased.The recited verses are Greek for mourners too,as they can hardly understand ,whatsoever is being recited in chaste Sanskrit language.Can the chanting change and alter the alleged much publicized karma hypothesis ?Can the chanting orchestrate post death deputation process for heaven and hell ?Can the attribution of moral turpitude and moral rectitude be interchanged and modified as per whims of the kith and kin of deceased ?Now hypothetically speaking,in case of such eventuality ,the whole edifice of Hinduism will crumble and falsification of karma theory will be accordingly established.The fact of the matter is that,said post death ritual is not only futile exercise but meaningless gesture too,though it is 'meaningful and purposeful' for that class of social parasites,popularly known as Brahmans.
KARMA YOGA; कर्म योग !
IS IT FEASIBLE OR REASONABLE TO WORK WITHOUT SOME MOTIVATING DESIRE ? 
Karmanyevaadhikaaraste maa phaleshu kadaachana;
Maa karmaphalahetur bhoor maa te sango’stwakarmani.[Geeta].
. Thy right is to work only, but never with its fruits; let not the fruits of actions be thy motive, nor let thy attachment be to inaction.
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतूर्भूर्माते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि।[गीता].
तेरा कर्म करने में ही अधिकार है, उनके फलों में कभी नहीं | इसलिए तू कर्मों के फल का हेतु मत हो तथा तेरी कर्म न करने में भी आसक्ति न हो |[
The teaching of karmyoga consists of two parts:first you have to do your work without an eye or desire for the fruit thereof and secondly,the fruit of your action,if and when obtained,is to be discarded or surrendered or thrown away.In no case should it be accepted.You have to renounce it.To ordinary person like me,this appears a strange,startling and un-intelligible doctrine.Followers are told that it is their obligation [right to work] but to the fruit thereof,they never have a right.I think that a man's right to the fruit of his labor is fundamental and unquestionable.A desire to achieve certain results is the mother of progress.progress. Desirelessness is the mother of stagnation.In the absence of desire,we would still have been jumping from tree to tree without shedding our tails and still walking on all fours.
Again what does renunciation of the fruits of action mean?What is the process by which followers have to surrender the fruits of action to 'god'?Are they supposed to keep the pay packet or the currency notes on the alter of a temple or at the feet of an idol and think no more about it?
All inventors,research workers,explorers work with motive or objective and are interested in the results.Nothing was ever achieved by object less endeavor.
भक्तगण का आभार भगवान सत्यनारायण के प्रति, 
"य इदं पठते नित्यं श्रृणोतिमुनिसत्तमा. तस्य नश्यन्ति पापानि सत्यदेव प्रसादतः"
हे प्रभु, दयानिधि, कृपालु, आप की महिमा अपरम्परागत है जो जघन्य सामाजिक अपराधियों को केवल और केवल व्रत कथामात्र से अभयदान देते हैं और केवल उस समय कुपित होते हैं जब या तो संकल्प के अनुसार कथा व्रत (पूजन, ब्राह्मणों को दक्षिणा और भोजन) न कराया जाये अथवा कोई उन के प्रसाद का अपमान करे. आराधनीय हैं ऐसे सत्यनारायण भगवान जो सद्दव्यवार के स्थान पर मात्र कथा सुनने से सारे दुख और पाप तुरन्त मुक्त कर देते हैं. (व्यंग्य ).

Friday 21 July 2017

सुप्रीम कोर्ट के 9 सदस्यीय बैंच द्वारा व्यक्तिगत गोपनीयता को पूर्ण अधिकार की श्रेणी से बाहर मानना परोक्ष रूप से संविधानिक मूलभूत अधिकारों की अवहेलना है।जहां एक ओर ऐसी वैधानिक अवधारणा अधिनायकवादी मानसिकता का प्रतीक है वही दूसरी ओर संविधान की ऐसी interpretation (व्याख्या) उन घिनौनी राजनीतिक शक्तियों को और सशक्त होने में सहायक होगी जो धर्म निरपेक्ष प्रजातंत्र की कभी पक्षधर नहीं रही, जो एक विशेष धर्म के वर्चस्व पर आधारित राजनीतिक,सामाजिक,आर्थिक तथा धार्मिक code of conduct (आचार संहिता) लागू करना चाहती है । यह भी एक सामाजिक त्रासदी है कि आज साधारण जनता में ऐसी व्याख्या के प्रति उदासीनता और संवेदनशीलता की कमी नज़र आती है जबकि इस विषय पर जागरूकता के साथ साथ गहन चिंतन की अत्यंत आवश्यकता है ।

Tuesday 18 July 2017

बेरोजगारी पर खोखले दावे और ज़मीनी सचाई  !
देश में लगातार बेरोजगारी बढ़ रही है। वर्ष 2011-12 में इसकी वृद्धि दर 3.8 प्रतिशत, 2012-13 में 4.7 और 2013-14 में 4.9 थी जो 2015-16 में बढ़ कर 5 प्रतिशत हो गई है। यह बेरोजगारी का पिछले पांच वर्षों का सर्वोच्च स्तर था और अभी भी स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है। 

Monday 17 July 2017

व्यंग्य यथार्थ  के आसपास ;
भगवा विचारक और अन्य बुद्धिवादी विपरीत बुद्धिवाद के पर्याय क्योंकर ?
चाणक्य नीति दर्पण में चाणक्य ने 'विनाश काले विपरीत बुद्धि' मानसिकता का आधार सोने का हिरण बताया था जो न तो किसी ने देखा ,न सुना ,न किसी ने निर्माण किया परंतु फिर भी रघुनन्दन जैसा विवेकी उसके पीछे उसको पकडने के लिए गया .मुझे विश्वास है यदि चाणक्य के समय भगवा ब्रिगेड होता वह उनके व्यवहार और चिंतन को 'विनाश काले विपरीत बुद्धि' का प्रेरणा स्त्रोत मानते .
प्रायः सोचता हूँ कि भगवा संस्कृति और चिंतन में ऐसा क्या है जो आधुनिक शिक्षा प्रणाली ,विशेष रूप से आधुनिक विज्ञान और टेक्नोलॉजी में उच्च शिक्षा प्राप्त स्वयंसेवक उल्टी बुद्धि के प्रतीक और पर्याय बन जाते हैं ? जो २१वीं शताब्दी के नागरिक होकर भी पाषण युग के मानसिकता के चलते फिरते प्रचारक बन जाते हैं. जो hypocrisy [दोहरा मापदंड ] के प्रतीक के रूप में अपने दैनिक जीवन में जहाँ एक तरफ आधुनिक विज्ञान एवं टेक्नोलॉजी का सब से अधिक लाभ उठाते हैं वहीं दूसरी तरफ तथाकथित प्राचीन बुद्धिवाद पर खोखले प्रवचन देते फिरते हैं .
*गाय ऑक्सीजन लेती है और ऑक्सीजन ही छोडती है तथा गाय मूत्र सर्वरोगहरं संजीवनी है .
*समस्त विश्व में जो भी साइंटिफिक अविष्कार आजतक आविष्कारित हैं वह मलेच्छों ने प्राचीन हिन्दू धार्मिक ग्रन्थों से चुराये हैं .
* पावन देश भारत विश्वगुरु था ,विश्वगुरु है और समय अन्तराल तक विश्वगुरु रहेगा .
*महाभारत ,रामायण ,गीता ,वेद, उपनिषद ,पुराण,मनुस्मृति आदि आदि मिथात्मक काव्यात्मक ग्रन्थ न होकर वास्तविक इतिहास हैं और आज २१वीं शताब्दी में सार्थक और मार्गदर्शन है .
पिछले ४८ घंटों में तो असाधारण चमत्कार सामने आया है. 
*भगवा शासित मध्य प्रदेश में रोगों का निदान एवं चिकित्सा अब डॉक्टर या वैद्य नहीं वरन तिलकधारी चोटीधारी ज्योतिषी करेंगे .चिकित्सा के फील्ड में अगला नोबल पुरस्कार विश्वगुरु भारत को मिलना तय है .
* टाइम्स ऑफ़ इंडिया के मुंबई एडिशन [१७ जुलाई २०१७] में प्रकाशित समाचार के अनुसार डॉ हर्षवर्धन& ,केन्द्रीय विज्ञान मंत्री ???] के निर्देशन में घठित उच्च अधिकार कमेटी #पंचगव्य [जो गाय मूत्र ,गाय गोबर,गाय दही ,गाय दूध तथा गाय घृत का दिव्य मिश्रण है ]की चिकित्सा तथा विज्ञान के अन्य सेक्टर में उपयोगिता पर गहन मंथन और विचार विमर्श कर रही है .मुझे पूरा विश्वास है कि यदि यह कमेटी रोग प्रतिरोधक vaccines की तुलना में दिव्य पंच गव्य की उपयोगिता स्थापित कर पाये तो चिकित्सा विज्ञान के फील्ड में पावन देश भारत का नोबल पुरस्कार भी मिलना तय है .
*डॉ हर्षवर्धन,MBBS, MS ,ENT Specialist !

1) पतंजलि के ये सिक्योरिटी गार्ड ख़ास आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों के मिश्रण से तैयार होंगे, जो दौड़ने-भागने के बजाय सुबह-शाम योग करेंगे और अपने ड्यूटी-स्थल पर बगल में चटाई दबाकर पहुंचेंगे।
2) इनके हाथ में गन के बजाय गिलोय का डंडा होगा। ये डंडा जिसको भी पड़ेगा, उसकी बॉडी में देशभक्ति की भावना का संचार ऑटोमेटिक हो जायेगा।
3) मॉल में आने वाले लोगों को ये बॉडी स्कैनर से चेक करने के बजाय नज़रों से ही चेक करेंगे। वे अपराधियों को शक्ल और कपड़े देखकर ही पहचान लेंगे।
4) ये गार्ड होने के साथ-साथ पतंजलि के सेल्समैन का काम भी करेंगे। ये चेकिंग के अलावा गेट पर शैंपू और दंतकांति भी बेचेंगे।
5) जो लोग प्रधानमंत्री मोदी के समर्थक नहीं होंगे, उन्हें मॉल में एंट्री नहीं करने देंगे। और जो ‘मोदी-मोदी’ के नारे लगाएंगे, उन्हें सबसे पहले एंट्री कराएंगे।
6) ये अपराधियों को पकड़कर पतंजलि के नूडल्स खिलाएंगे। अगर उन्हें खाकर भी अपराधी बेहोश नहीं हुआ तो फिर उसे पतंजलि का कोई दूसरा प्रोडक्ट खिलाएंगे।
7) ये गार्ड्स बीफ़ के चेक करने में एक्सपर्ट होंगे और सिर्फ़ सूँघकर ही बता देंगे कि किसी चीज़ का माँस है। इसके लिये बाबाजी इन्हें ख़ुद सूँघने की ट्रेनिंग दे रहे हैं।
इन ख़ूबियों को गिनाने के बाद बाबाजी उठकर चलने लगे तो एक पत्रकार ने पूछ लिया कि “क्या आप इसमें गौ-रक्षकों को भी भर्ती करेंगे?”, तो वो हँसते हुए बोले- “हाँ! उन्हें भर्ती में वरीयता मिलेगी। प्रति पिटाई के हिसाब से उन्हें बोनस प्वॉइंट मिलेंगे और उनकी सैलरी भी औरों से ज़्यादा होगी।”
भारत और संसार के कमोबेश सभी पढ़े-लिखे लोग हमारे नोबेल-पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन को जानते हैं। वह सिर्फ इकॉनमिस्ट नहीं हैं बल्कि लेखक-बुद्धिजीवी भी हैं और अंग्रेजी तथा अपनी मातृभाषा में बढ़िया लिखते हैं। यहां यह सूचित करना अनिवार्य है कि वह एक सेक्युलर और प्रगतिशील चिंतक हैं और किसी तरह की दकियानूसियत में कतई विश्वास नहीं करते। यह स्वाभाविक है कि ऐसे व्यक्तित्व पर कई वर्षों में फैली हुई एक डॉक्युमेंट्री फिल्म बने जो पूरे संसार में देखी और सराही जाए।
यूं तो इस पर किसी को या भारत की बीजेपी सरकार को क्या ऐतराज हो सकता था लेकिन सेंसर बोर्ड के कोलकता ऑफिस ने अंग्रेजी में बनी इस फिल्म में छह संगीन आपत्तियां निकाल डालीं। सेंसर ने कहा कि अमर्त्य सेन ने फिल्म में अंग्रेजी में ‘गुजरात’, ‘काउ’ (गाय), ‘हिंदू इंडिया’ और ‘हिंदुत्व व्यू ऑफ इंडिया’ जैसे शब्दों का प्रयोग किया है, जो आपत्तिजनक हैं। सेंसर ने वृत्तचित्र के निर्माता-निदेशक सुमन घोष से कहा है कि इन शब्दों को या तो निकाल दें या उन पर आवाज का धीमा करने वाला पर्दा डाल दें, जैसा आजकल कभी-कभी टेलीविजन और फिल्मों पर किया जाता है।

Saturday 15 July 2017

Quran violates Human Rights


Men are created one step higher than women (Quran 2.228)
Disbelievers (non-Muslims) are an open enemy to believers (Muslims) (Quran 4:101)
Kill the disbelievers wherever we find them. Quran (2:191)
Freedom of speech is prohibited and punishable by Quran
Witness of 2 women equals Witness of 1 man (Quran 2.282)
Fight those who believe not in Allah nor the Last Day ... " (Quran 9.29)

Friday 14 July 2017

चौरासी लाख योनियों की मिथात्मक गप्प  !
जब कभी भी हम धार्मिक महाराथिओं से ८४ लाख योनियों के संदर्भ में दो या तीन दर्जन योनियों को गिनने को कहते हैं तो उनकी गिनती १५ से २५ के आसपास थम जाती है और बोलती बंद हो जाती है .वास्तव में जिस किसी लेखक ने यह कपोलकल्पित मिथात्मक गप्प का सृजन किया वह  शायद हज़ार तक गिनती गिनने में भी समर्थ न था .यह कहना तर्कसंगत ही होगा कि कथित सर्वज्ञों ने जीव विविधता की बात करते हुए ८४ लाख योनियों की ढींग हांकी है .व्योरा इस प्रकार है :-
*जलचर =९ लाख प्रकार .
*पक्षि =१० लाख प्रकार .

*पशु =२० लाख प्रकार .
* पेड पोधे=३० लाख प्रकार .
*कृमि =११ लाख प्रकार .
*मनुष्य =४ लाख प्रकार .
यह गिनती और वर्गीकरण का साधन क्या था यह जानकारी किसी के पास नहीं है लेकिन यह गणना बाल गंगाधर तिलक कृत गीता रहस्य के पृष्ट १८५ पर उपलब्ध है. यह गणना नितांत अविज्ञानिक और निराधार है तथा तुकबंदी की मिसाल है .
वर्तमान युग में जल थल और नभ के सब प्राणियों पेड पौधों आदि आदि का विशाल स्तर पर गहन तथा विस्तृत अध्ययन किया गया है.उसके अनुसार विभिन्न प्रजातियों की कुल गिनती १६,६८५७८ है. इस गणना में ४,१९३५५ पौधों की प्रजातियाँ तथा १२,४९२२३ मानव सहित जीवों की संख्या शामिल है .कुल मिलकर यह संख्या १७ लाख भी नहीं बनतीं .बाल गंगाधर तिलक का यह कहना बिलकुल सही प्रतीत होता है कि ८४ लाख योनियों की बात पौराणिक कल्पना लगती है .[संदर्भ :चार्वाक दर्शन }.