Monday 7 November 2016

INDIAN MEDIA AND 'GOD MEN' !
Apparently both print and electronic media is maintaining a love and a hate relationship with 'god men'.Media ,especially T.V.channels provide prime time to spread ignorance through self proclaimed 'god men' and 'god women', who have the money to buy the prime time or get sponsored for it.Just switch on the TV set in India in the morning and the only thing you would find is 'god men',astrologers,spiritualists providing so called expertise on the world problems and individual concerns.All of them,having established that larger than life status,are omniscient and omnipotent with divya drishti [super natural perception] and offer solutions to their gullible and credulous followers for all possible problems.They provide code of conduct also on daily basis.
This relationship between media and 'god men' is detrimental to the overall progress of the country,supremacy of reason and for strengthening scientific temper.Today media is a powerful tool to build knowledge,spirit of inquiry and help young minds cultivate a habit of critical thinking which subjects metaphysical assumptions of inherited traditions to a scientific challenge .On the contrary,media is promoting superstitions,ignorance and obscurantism.Instead of implementing 'magical remedies and objectionable advertisement act' and other relevant legal remedies,today Indian state directly or indirectly has become instrument for spreading ignorance and blind faith.It is state which has authorized various 'god men' and their religious empires to start their own channels and media houses for spreading religious canard and trash.As the world is progressing,media has greater outreach and if misused,it will be detrimental to the meaningful and purposeful development of the Indian state in general and of the Indian society in particular.

Saturday 5 November 2016

सूचना प्रसारण मंत्रालय ने जिस तरह से हिंदी न्यूज चैनल NDTV इंडिया पर कार्रवाई करते हुए उसके प्रसारण पर एक दिन की रोक लगाई है, उससे पूरा देश सहम गया है। हर ओर रोष की लहर है। यह कार्रवाई पठानकोट हमले के दौरान उसकी कवरेज को लेकर हुई है क्योंकि मंत्रालय की एक समिति ने उसे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा माना है। पता नहीं सलाह देनेवालों के जेहन में क्या यह एक बार भी विचार नहीं आया कि इसके बाद जो लाख प्रश्न उठेंगे, उसका जवाब कौन देगा? पहला प्रश्न तो यही है कि चलो, माना यह चैनल की गलती थी, लेकिन घटनास्थल तक पत्रकारों-कैमरों को जाने की इजाजत किसने दी? अगर यह चित्रण इतना संवेदनशील था तो उसे इतने घंटों, पहर और दिनों तक रोका क्यों नहीं गया?
यह गफलत करनेवाले दोषी सैन्य अधिकारियों और पुलिस के खिलाफ इस मामले में क्या कार्रवाई हुई? क्या उन्हें भी कोई दंड दिया जाएगा! अगर वह चित्रण गलत था तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बदनाम और प्रतिबंधित आतंकवादियों को सक्रिय मदद करनेवाले ISI के अधिकारियों को पठानकोट में क्यों आने दिया गया था? SP सलविंदर सिंह की इस पूरे मामले में भूमिका, संदेहास्पद कदम और सत्तारूढ़ अकाली मंत्रियों को बचाने के लिए हुई गोल-मोल ‘जांच’ का कौन जवाब देगा? क्या इनमें से किसी के खिलाफ कोई कार्रवाई हुई? क्या इतनी ही तेजी से सबमरीन डाटा लीक पर कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए थी?
सारे चैनलों ने यह मान लिया है कि आज अगर यह NDTV के साथ हुआ है तो कल यही उनके साथ भी हो सकता है! जबकि NDTV ने कारण बताओ नोटिस के जवाब में साफ कर दिया था कि उसने केवल वही जानकारियां सामने रखीं हैं जो पहले से प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया पर मौजूद हैं।
भारतीय सेना की प्रशंसा और अनादर साथ साथ क्योंकर ?
आजकल भारती सेना विचित्र दौर से गुज़र रही है.आज़ादी के बाद पहली बार सेना को राजनीतिक मोहरा बनाकर राजनीतिक स्वार्थों  की पूर्ति की जा रही है.डिफेन्स मिनिस्टर मनोहर पारिकर ने देश वासियों का यह कहकर ज्ञान बढाया है कि सेना ने जिस वीरता और शौर्य का प्रदर्शन किया है वह केवल मंत्रीजी की राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ से प्रेरित सोच के कारण संभव होसका है तथा सेना के योद्धा हनुमान की तरह थे जिन्हें सर्जिकल स्ट्राइक से पहले अपनी  शक्ति का अहसास न था.चलिए कुतर्क को तर्क मान कर चलने में ही देश द्रोही के आरोप से अपने को बचाते हैं.
सेना की संघ प्रेरित नवीनतम परिभाषा के वातावरण और शौर में यह दुखद समाचार मिलता है कि एक रैंक एक पेंशन के मसले पर एक और सैनिक ने ज़हर खाकर खुदकशी कर ली .सैनिकों की विकलांग पेंशन रेट को घटा दिया गया है तथा सिविल ऑफिसर्स की तुलना में उनका स्टेटस घटा दिया गया है.यहाँ यह कहना प्रासंगिक ही होगा कि 6th पे कमीशन तथा 7th पे कमीशन की क्रमशा कथित ३६ तथा ४६ विसंगतियों पर पहले ही सैनिकों में अवहेलना और तिरस्कारपूर्ण भेदभाव की भावना व्याप्त है.
प्रधानमंत्री का सुझाव कि रेलवे स्टेशन तथा एअरपोर्ट पर सैनिकों को पूरा मानसम्मान मिलना चाहिये जैसा कि विदेशों में परम्परा है -स्वागत योग्य है परन्तु  ज़मीनी सचाई में  मूलभूत सकारात्मक परिवर्तन के बिना तथा  सैनिकों का किसी भी प्रकार के राजनीतिकरण के बिना यह कैसे मुमकिन हो सकता है -इस प्रशन का उत्तर कौन दे सकता है ?