Tuesday 12 January 2016

अयुथा चंडी महायज्ञ;
२७ दिसम्बर को जब वर्षा देवता के स्थान पर अग्नि देवता प्रकट  हो गये !
पाखंड और अन्धविश्वास के प्रतीक के रूप में तिलंगाना के मुख्यमंत्री ने वर्षा देवता को प्रसन्न करने के लिए करोड़ों रुपये खर्च करके कई दिन चलने वाले अयुथा चंडी महायज्ञ का आयोजन किया  जिस में यज्ञ स्थल पर टनों देसी घी इकट्ठा किया गया. कहा जाता है कि यहां 4 हजार किलो गाय का देसी घी मंगाया गया था. 20 टन हवन की लकड़ी थी. महंगा सुगंधित चंदन, पलाश मंगवाया गया. 12 टन खीर बनाई जाती थी. मुफ्त का माल घी और तर पकवानों को देख कर पंडितों ने आग लगने की परवा नहीं की. मंत्रोच्चारण के साथसाथ घी हवन कुंडों में झोंकते रहे. जल्दीजल्दी ज्यादा मात्रा में घी डालने से पंडाल में आग लग गई. आग लगते ही कई भक्तगण आगआग चिल्लाने लगे तो पंडितों ने भक्तों पर गुस्सा करते हुए डांटना शुरू कर दिया. भक्तों को कहा गया कि तुम मूर्ख लोग ऐसे चिल्ला कर  अग्नि देवता का अपमान कर रहे हो. अब तक आग ने विकराल रूप धारण कर लिया था तभी किसी भक्त ने पंडितों को याद दिलाया कि महाराज जिन मंत्रों से बारिश कराई जाती है वे मंत्र बोलना शुरू करो ताकि आग बुझ जाए.
इस पर पंडित कहने लगे कि आग लगे बारिश के मंत्रों को, हमें जान बचाने दो. पंडाल में अफरातफरी मच गई. चारों ओर भगदड़ दिखने लगी. सब से पहले पंडित लोग जान बचाने के लिए पंडाल से बाहर भागे. भागदौड़ में आग की लपटों से कुछ पंडितों की धोतियां भी जल गईं. भक्तों को समझ नहीं आ रहा था कि सहसा साक्षात अग्नि देवता कैसे प्रकट हो गए. क्या कहीं शांति के मंत्रों की जगह पंडितों ने गलती से अग्नि देवता के आह्वान वाले मंत्र तो नहीं जपने शुरू कर दिए थे.
देखते ही देखते 7 करोड़ का पंडाल खाक में तब्दील हो गया. पल में करोड़ों रुपए स्वाहा हो गया. सहायता के लिए न इंद्र या वरुण देवता आए, न चंडीदेवी.

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