Tuesday 25 July 2017

अन्धविश्वास गुलामी की आधारभुत संजीवनी !
जब बाबर ने 1526 ई. में भारत पर हमला किया तब यहां के शासकों ने उसे रोकने के लिए बहुत से पीर, योगी, जंत्रमंत्र करने वाले इकट्ठे कर लिए थे कि वे अपने धागे, तावीज, भस्म आदि से हमलावर को नष्ट कर देंगे, परंतु किसी का जंत्रमंत्र कोई काम नहीं आया. गुरु नानकदेव, जो इस घटनाक्रम के चश्मदीद गवाह थे, ने लिखा है कि जब शासकों ने सुना कि मीर (बाबर) आ रहा है तो उन्होंने करोड़ों पीरों आदि को इकट्ठा कर लिया, परंतु जब वह आया तो उस की फौजों ने बड़ेबड़े पक्के मकान, मजबूत मंदिर आदि सब आग में जला दिए और राजकुमारों को काट कर मिट्टी में मिला दिया. किसी का कोई जंत्रमंत्र किसी काम न आया, उन से एक भी मुगल अंधा नहीं हुआ : कोटी हू पीर वरजि रहाए जो मीरु सुणिया धाइया. थान मुकाम जले बिज मंदर मुछि मुछि कुइर रुलाइया.. कोई मुगल न होआ अंधा किनै न परचा लाइया.. (आदिग्रंथ, 417-18) इन करोड़ों भभूत, धागे, ताबीज वालों की कृपा से हमलावर इस देश का हाकिम बन गया और सदियों तक के लिए मुगलों का साम्राज्य यहां स्थापित हो गया तथा देश गुलाम हो गया. यदि इन के चक्कर में लोग न पड़ते और शस्त्र उठा कर शत्रु का सामना करते तो वे उसे मिट्टी में मिला सकते थे. परंतु जो शस्त्र के स्थान पर राख, तावीज और धागों में उलझे थे, उन्हें राख में मिलने से कौन रोक सकता था?

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