Friday 22 May 2015



सफाई कर्मचारी के अच्छे दिन कब और कैसे ???
देश में हर साल लगभग 10 हजार सफाई सेवकों की मृत्यु सिर पर मैला ढोने से होने वाली बीमारियों से होती है जबकि 22,000 से अधिक सीवरमैन सीवरेज की विषैली गैस की बलि चढ़ जाते हैं।
90 प्रतिशत सीवरमैन रिटायर होने से पूर्व ही सीवर की विषैली गैस या इससे होने वाली जानलेवा बीमारियों से मारे जाते हैं और लगभग 98 प्रतिशत सफाई सेवक जीवन भर किसी न किसी बीमारी से जूझते रहते हैं।
पाश्चात्य देशों में जो काम जितना जोखिम भरा और गंदा होता है उसके लिए उतनी ही अधिक उजरत दी जाती है परंतु भारत में स्थिति इसके बिल्कुल विपरीत है। स्वतंत्रता के 68 वर्ष बाद भी ये घरों-मोहल्लों को साफ रखने के लिए 150-200 रुपए दैनिक की बहुत कम उजरत पर काम कर रहे हैं।
जान हथेली पर रख कर गंदगी और खतरनाक बैक्टीरिया से भरे गटरों और मैनहोलों में सुरक्षा उपकरणों के बगैर ही उतर कर सफाई करने से वे अनगिनत किस्म के गंभीर त्वचा रोगों के अलावा दस्त, टायफाइड, हैपेटाइटिस-बी, सांस और पेट की बीमारियों का शिकार हो जाते हैं। ‘टैटनी’ नामक बैक्टीरिया इनके खुले घावों को टैटनस में बदल देता है।
उन्हें ऑक्सीजन सिलैंडर, फेसमास्क, गम बूट, सेफ्टी बैल्ट, नाइलोन के रस्से की सीढ़ी, दस्ताने, सुरक्षात्मक हैलमेट और टार्चें तथा इन्सुलेटिड बॉडी सूट आदि भी उपलब्ध नहीं कराए जाते। उन्हें काम के दौरान चोट लगने की स्थिति में चिकित्सा अवकाश भी नहीं मिलता। पंजाब में सीवरों की सफाई करने वाले अधिकांश कर्मचारियों को इसी स्थिति से जूझना पड़ रहा है।

जिस प्रकार सीमाओं पर तैनात जवान अपनी जान खतरे में डाल कर रात-दिन पहरा देते हैं ताकि हम सुख की नींद सो सकें उसी प्रकार ये सफाई मजदूर भी देशवासियों की सेहत और सफाई की खातिर दिन-रात अपनी जान को खतरे में डाल कर जूझते रहते हैं।
अब जबकि केंद्र में स्वयं को ‘गरीबों की हमदर्द’ कहने वाली सरकार को सत्तारूढ़ हुए एक वर्ष हो चुका है, अन्य देशवासियों की तरह सफाई सेवकों और सीवरमैनों को अभी भी अच्छे दिनों का इंतजार है।

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