Friday 15 May 2015

द्रोणाचार्य के जन्म की "गौरवशाली" गाथा !
# "गंगाद्वारं प्रति महान् बभूव भगवानृषिः भरद्वाज इति ख्यातः.........ततः समभवद् द्रोणः कलशे तस्य धीमतः.".
(महाभारत,आदिपर्व,श्लोक ३३-३८,अध्याय १२९).
अर्थात गंगाद्वार में भगवान भरद्वाज नाम से प्रसिद्ध एक महार्षि रहते थे. एक दिन भरद्वाज मुनि गंगा में स्नान करने के लिए गए. वहां पुहंच कर महार्षि ने देखा कि घृताची नामक अप्सरा स्नान करके नदि के तट पर खड़ी वस्त्र बदल रही है. उस का वस्त्र खिसक गया और उस अवस्था में देख कर मुनि के मन में कामवासना जाग उठी.भरद्वाज का मन उस अप्सरा में आसक्त हुआ. इस से उन का वीर्य स्खलित होगया.परम बुद्धिमान मुनि ने उस वीर्य को द्रोण (यज्ञ कलश,घड़े) में रख दिया.उस बुद्धिमान महार्षि के बीज से उस द्रोण से जो पुत्र उत्पन्न हुआ वह द्रोण से जन्म लेने के कारण द्रोण (द्रोणाचार्य) नाम से विख्यात हुआ.
टिप्पणी :- किसी स्त्री का वस्त्र खिसकना देख कर तो आम आदमी का वीर्य स्खलित नहीं होता,भरद्वाज तो "भगवान- परम बुद्धिमान-महार्षि " आदि न जाने क्या क्या था.इतना शारीरिक नियन्त्रण और कच्चा ब्रह्मचर्य कि नारी को देखा और महार्षि का ब्रह्मचर्य उड़नछू हो गया.

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