Saturday 29 August 2015

दृष्टिकोण, 
तसलीमा नसरीन को भारत की स्थाई नागरिकता मिलनी चाहिए !
# भारत का प्रगतिशील समाज तसलीमा को उपमहाद्वीप में तर्कशीलता और मानवतावाद के सशक्त प्रतीक के रूप में देखता है,जिस ने कई दशक पहले अकेले बंगलादेश में इस्लाम प्रेरित कट्टमुल्लापन ,संकीर्णता और रूढ़िवादिता के खिलाफ विद्रोह का झन्ड़ा बुलन्द किया और अपनी जान की परवाह न करके कठिनतम् परिस्थितियों में भी आज भी संघर्षरत है. वह भले ही लेखन कला में सलमान रूशदी के समानांतर नहीं है परन्तु उस ने अपनी योग्यता अनुसार अपनी लेखनकला का सकारात्मक प्रयोग किया है. वह भारतीय प्रजातन्त्र और धर्मनिरपेक्षता की प्रशंसक है और भारतीय वातावरण, विशेष रूप से पश्चिमी बंगाल में अपने आप को सहज महसूस करती है.
उस ने कभी भी इस्लामी कट्टरवाद के समक्ष न तो समर्पन किया है और न ही निज स्वार्थ (वह पेशे से डाक्टर है) के लिए किसी प्रकार का समझोता किया है. कई दशक पहले उस को अपना देश उस समय छोड़ना पड़ा जब तत्कालीन सरकार ने इस्लामी कट्टरवादियों के दबाव में उसकी सुरक्षा देने से साफ इन्कार किया,परन्तु मानवतावाद और प्रगतिशीलता की जो आधारशिला उस ने स्थापित की, जो आवाज़ बुलन्द की वह आज भी बंगलादेश में गूंज रही है. उन्हीं में से इस वर्ष पांच जाने माने बुद्धिवादियों की निर्मम ढंग से हत्या की गई.
किसी भी दृष्टिकोण से यह बात समझ से परे है कि ऐसी वीरांगना को भारत की स्थाई नागरिकता क्यों नहीं दी जा सकती है ?किन कारणों से वर्ष के 365 दिन उस के सिर पर अस्थाई वीज़ा की तलवार लटकती रहती है ?
यह एक राजनीतिक त्रासदी ही है कि अपने आप को प्रगतिशील वामपंथी परिभाषित करने वाले महारथियों ने आजतक कभी भी खुलकर उस का समर्थन नहीं किया है. वह खामोश क्यों हैं ?उन की धर्म निरपेक्ष क्रान्तिकारी शब्दावली और प्रगतिशीलता क्या एक धर्म विशेष की साम्प्रदायिकता और कट्टरवादिता के लिए ही सुरक्षित है? क्या मुस्लिम वोटबैंक क्रांतिकारी विचारधारा से भी अधिक महत्वपूर्ण और प्रासंगिक है?
वह पश्चिम बंगाल को अपने घर जैसा मानती है और अपना रचनात्मक समय अधिकतर वहां गुजारना चाहती है, परन्तु न तो अपनी राजसत्ता के समय वामपंथी कामरेडों ने उसे गले लगाया और न ही स्वयंभू नारी सशक्तिकरण की योद्धा ममता उस को गले लगाने को तैयार है. एकमात्र कारण: मुस्लिम वोटबैंक के लिए तुष्टिकरण. अभी अभी तसलीमा नसरीन को जो एक वर्ष का वीज़ा मोदी सरकार ने दिया है, उसकी पृष्ठभूमि में मोदी सरकार के अपने निहित राजनीतिक स्वार्थ हैं.

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