Monday 27 February 2017

संस्कारी पहलाज निहलानी का सांस्कृतिक अधिनायकवाद !
नारी प्रधान फिल्म "लिपस्टिक अंडर माय बुरका"की पटकथा एवं निर्देशन में नारी का ही योगदान है जिसमें रत्ना पाठक शाह तथा कोंकण सेन शर्मा जैसी जानी मानी कलाकारों ने भूमिका निभायी है .फिल्म बोल्ड श्रेणी की है तथा नारी की मानसिक उडान तथा अभिलाषाओं को चित्रित करती है. नारी की आज़ाद अभिव्यक्ति का समर्थन  भला संघ परिवार के संस्कारी पहलाज निहलानी मनुवादी आचार संहिता के परिवेष में कैसे कर सकते हैं अतः फिल्मों के वर्गीकरण संबंधित केन्द्रीय बोर्ड के बॉस के नाते प्रदर्शन की अनुमति देने से इंकार कर दिया. त्रासदी देखें जहाँ विदेशों में फिल्म को खूब सरहा जा रहा है वहीं भारतीय जनता को यह फिल्म देखने की अनुमति नहीं है .
कुछ समय पहले भारत सरकार ने वर्गीकरण बोर्ड [Central board for film certification]को अधिक सार्थक एवं पारदर्शक बनाने की दिशा में श्याम बेनेगल समिति का घटन किया था और मन जाता है कि समिति ने अपनी रिपोर्ट और सुझाव दिए हैं. CBFC बोर्ड का कार्य केवल फिल्मों का वर्गीकरण है जिस के अंतर्गत प्रमाणपत्र देना है की फिल्म १२ प्लस आयु वाला देख सकता है या १८ प्लस आयु वाला. जाने माने फ़िल्मकार श्याम बेनेगल का तर्क है की यदि प्रजातंत्र में एक एडल्ट को सरकार चुनने का संविधानिक अधिकार है तो वह अपनी मर्जी से फिल्म क्यों नहीं देख सकते ?

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