Sunday 26 February 2017

ईश्वर का बहिष्कारः-
जहाँ शारीरिक हानि पहुँचाने के लिये अनेक नशेबाजी और दुराचार के अड्डे होते हैं, वहीं मनुष्य को मानसिक हानि पहुँचाने एवं निकम्मा बनाने के लिये धार्मिक अड़्डे (धर्म-स्थल) भी हैं। यह सब काम काबू याफ्ता शासन और शासक मण्डल के हित के लिये उनके दलालों अर्थात् पुरोहितों द्वारा सरकार की छत्रछाया में बसने वाले गरीबों को लूटने वाले अमीरों की मदद से हुआ करता है। मूर्ख ग्रमीणों के दिमाग में जहाँ एक बार कोई बेवकूफी घर कर गई, फिर मुश्किल से निकलती है। इन बेचारों में ज्ञान नहीं, विवेक नहीं, समझ नहीं, विद्या नहीं, खाने को अन्न और पहनने का वस्त्र तक इनके पास नहीं। जो चाहे इन्हें पंडित, मौलवी, पादरी बनकर ठग सकता है, धोखे में डाल सकता है और अपनी अर्थ सिद्धि का साधन बना सकता है। पीढ़ियों से इन बेचारों का यही हाल है। सिखाने वाले धनिक, पुरोहित और राजकमर्चारियों में से कोई भी ईश्वर को नहीं मानता, पर हरेक ईश्वर को मानने का ढ़ोंग रचता है। मैं पूछता हूँ कौन पंडित, मौलवी, पादरी, राजा-रईस और सेठ- साहूकार ऐसा है जो झूठ नहीं बोलता, फरेब नहीं करता और तमाम दुनियाँ की बदमाशियाों से पाक है, इस हालत में कोई चतुर मनुष्य यह कैसे मान सकता है कि लोग ईश्वर की हस्ती के कायल हैं, परमात्म की सत्ता को स्वीकार करते हैं। इसलिये ईश्वर कोई चीज नहीं है, सिवा इसके कि गरीबों को ठगने के लिये ठगी का एक जाल है।यह जाल जितनी जल्दी तोड़ दिया जाये उतना ही अच्छा। -- (ईश्वर का बहिष्कार पेज नं. 17 से 18, लेखक-राधामोहन गोकुल)

No comments:

Post a Comment