Thursday 3 September 2015

संस्कृत में एक शब्द है-पिष्टपेषण. इस का सरलार्थ है पीसे हुए को पीसना अर्थात व्यर्थ का कोई काम करना. हमारे यहां कई दशकों से यही कुछ हो रहा है और अरबों रुपया पानी में बहाया जा रहा है. मेरी मुराद गंगा शुद्धीकरण के नाम पर हो रही नौटंकी से है. इस वर्ष के बजट में भी गंगा के लिए करोड़ों रुपयों का प्रावधान किया गया है. ‘हर हर गंगे’ या ‘गंगा ने बुलाया है’ के धार्मिक जुमले छोड़ने वाले सभी धर्मध्वजी, धर्म के सभी धंधेबाज और सभी धर्मगर्द सुबहशाम यह दावा करते हैं कि गंगा पवित्र है, गंगा का जल अमृत है, गंगा स्वर्ग से लाई गई नदी है, तभी तो हमारे प्रधानमंत्री तक गंगा की आरती में शामिल हो कर पुण्य अर्जित करने का लोभ संवरण नहीं कर पाते. वर्तमान हिंदू धर्म एक तरह से पौराणिक हिंदू धर्म है, जिस में भागवत पुराण, गरुड़ पुराण जैसे पुराणों को वेदों से भी ज्यादा प्रामाणिक मान कर प्रस्तुत किया जाता है. इन 18 पुराणों में गंगा की जो महिमा गाई गई है, उसी से प्रेरित हो कर लोग जीतेजी भी गंगा में डुबकी लगाने के लिए दौड़ते हैं और मुर्दे की अस्थियां भी उस में डुबो कर या शव को उस में प्रवाहित कर उस के लिए तथाकथित स्वर्ग में सीट बुक कराने का प्रयास करते हैं. 

No comments:

Post a Comment