Sunday 5 July 2015

बहुचर्चित गंगा जल का यथार्थ !
तथाकथित पवित्र नदी होने के बावजूद यह दुनिया की दूषित नदियों में छठे स्थान पर है। इसके कई कारण हैं। जहां त्यौहारों पर स्नान करते समय करोड़ों श्रद्धालु कई प्रकार की वस्तुएं जल प्रवाह करके गंगा को दूषित करते हैं, वहीं इसके किनारे बसे शहर और कस्बे अपने सीवरों का गंदा पानी इसमें फैंक रहे हैं। इसके किनारे बसे बनारस, इलाहाबाद, पटना, कानपुर इत्यादि शहरों की असंख्य औद्योगिक इकाइयां (जिनमें रासायनिक उद्योग, चमड़ा रंगने के कारखाने, बूचडख़ाने, अस्पताल इत्यादि शामिल हैं) बिना परिशोधित किया गंदा पानी व अन्य अपशिष्ट इसमें फैंक रहे हैं। यही कारण है कि गंगा का पानी अब पीने योग्य नहीं रहा, क्योंकि इसमें पेट, जिगर के रोगों और कैंसर इत्यादि जैसी बीमारियों के कीटाणु तथा जहरीले रसायन मौजूद हैं। और तो और, अब इसका पानी कृषि कार्यों के लिए भी उपयुक्त नहीं रहा।
अकेले कानपुर में चमड़ा उद्योगों की 400 इकाइयां हैं, जिनमें 50000 मजदूर काम करते हैं। ये इकाइयां क्रोमियम युक्त जहरीले पदार्थों का प्रयोग करती हैं। 1995 में बेशक इन सब इकाइयों के लिए एक संयुक्त जलशोधन संयंत्र स्थापित किया गया था, लेकिन इसके बावजूद गंगा के पानी में क्रोमियम की मात्रा कम नहीं हुई। वर्तमान में तो इसकी मात्रा तय सीमा से 70 गुणा अधिक है। इंडियन मैडीकल कौंसिल की 2012 की एक रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल के वे शहर जो गंगा के किनारे बसे हुए हैं। शेष देश की तुलना में कैंसर से कहीं अधिक प्रभावित हैं।

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