Saturday 18 July 2015

धर्म का धंधा :लाभ ही लाभ !
प्राचीन बुद्धिवादी, चार्वाक दर्शन में पहली बार, तत्कालीन धार्मिक परिदृश्य पर व्यंग्यात्मक समीक्षा में धर्म को धंधे के रूप में परिभाषित किया गया है जो आज 21वीं शताब्दी में अधिक प्रासंगिक लगता है:-
* बुद्धिपौरूषहीनानां जीविका धातृ निर्मितः (जीविकेति बृहस्पति ).अर्थात बुद्धि और पुरूषार्थ (परजीवी ब्राह्मण )से हीन लोगों के लिए धर्म जीविका का धंधा है जो उन के पूर्वज अपने वंश के लिए स्थापित कर गए हैं. 
लाइज मैकनीन ने 21वीं शताब्दी में, अपने शोध ग्रन्थ* में इस तथ्य की पुष्टि करते हुए लिखा है :-"धर्म न केवल एक अच्छा धंधा है बल्कि यह सर्वोत्तम कारोबार है. कोई लागत या आपूर्ति की समस्या नहीं और हवाई शब्दावली के बदले ठोस वस्तुएं मिलती हैं".
* Lise McKean : Divine Enterprise, University of Chicago press, 1996.
"Religion is not only good for business.. It is the best business of all. Start-up costs are low, there are never any problems with supply or inventory and one receives tangible goods for intangible ones. "

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