Friday 3 April 2015

धार्मिक नैतिकता का विरोधाभास  !
भारत के करोड़ों हिन्दू भक्ति ,पूजा ,प्रार्थना ,तीर्थयात्रा और साधुसेवा में             कभी आंच नहीं आने देते ,परन्तु नित्य जीवन मैं नैतिक एवं अन्य अपराध करने से बाज़ नहीं आते। यदि देशभर के जेलों मैं विभिन्न अपराधों के कारण बंद अपराधियों का सर्वेक्षण किया जाये तो ९९ प्रतिशत कैदी विभिन्न धर्मों के कटर अनुयायी मिलेंगे जो जेल मैं भी अपने अपने धरम और उस के रीतिरिवाज का पालन कर रहे हैं. उनसभी को पूरा विश्वास है कि अपराध कैसा भी हो,भगवानजी की आराधना एवं तुष्टिकरण से न केवल पापों से मुक्ति मिलती है वरन मरने के पश्चात दूसरे संसार मैं सुखसुविधा का अग्रिम प्रबंध हो जाता है. भगवानजी हमारे अपने आत्मीय हैं और हम उनसे कुछ भी नहीं छुपाते -वह हमारे राज़दार हैं पालनहार हैं।
अंग्रेजी भाषा के मेरे प्रियतम लेखकों मैं एक खुशवंत सिंह हैं जो अपनी स्पष्टवादिता के कारण प्रसिद्ध भी थे और बदनाम भी थे और उसने किसी को भी नहीं बख्शा। उनकी आत्मकथा "Truth,Love,and a little Malice` वर्ष २००२ मैं प्रकाशित हुयी ;अपनी विशेष शैली मैं उन्होंने अपने पूर्वजूँ के बारे लिखा जो पोथोहर [पाकिस्तान] के निवासी थे और वहीँ कारोबार करते थे। खुशवंत के अनुसार वह रोज़ प्रातः प्रार्थना करते थे :-
झूट भी असी बोलने हाँ ;
घट वी असी तोलने हाँ ;
पर सच्चे पादशा ;
तेरा ना वी असी लेने हाँ
[we admit we tell lies;
we also give short measures;
But O true king of kings;
we also take your name][Ibid,page 374].

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