Wednesday 29 April 2015

क्या मोदीजी किसानों के "दिल की बात " सुनेंगे ?
ग़जेन्द्र की आत्महत्या /हत्या के सन्दर्भ में सभी राजनीतिक दल उसकी चिता पर रोटियां सेंक रहे हैं। अचानक शोषित किसान एक बड़ा मुद्दा बन कर सामने आ गया है. चुनाव की राजनीती में किसान एक महत्वपूर्ण वोटबैंक है. देश की ६५% आबादी आज भी  खेती पर निर्भर है परन्तु पूंजीवादी अर्थशास्त्र में खेती का शेयर ३३% से घटकर १५% रह गया है.
पिछले २० वर्षों में ३४६५३८ किसानों ने आत्महत्या की है -तदुनसार प्रतिवर्ष १६५०० या लगबग ३५ किसान प्रतिदिन आत्महत्या कर रहे हैं. इन आंकड़ूं के सन्दर्भ में कृषि शास्त्रियों का कहना है कि वास्तव में यह संख्या तिगनी हो सकती है. अकेले पंजाब राज्य में पिछले तीन वर्षों में ६९२६ किसानों ने आत्महत्या की है. किसानों पर कर्ज़ा :-
*राष्ट्रीय स्तर पर =५२%;*आँध्रप्रदेश =सर्वाधिक ९२. ९ %;*तिलंगना =८९. १ %;*तमिलनाडु =८२. ५ %; *केरल =७७. ७ %;*कर्णाटक =७७. ३ %;*राजस्थान =६१. ८ %;* पंजाब =५३. २ %.
किसान उत्पाद में घाटे के होते कर्ज़ा चुका नहीं सकते -सो उनको आत्महत्या एक मात्र उपाय नज़र आता है. यदि सरकार चाहे तो सारा कर्ज़ा माफ़ किया जा सकता है और किसान वर्ग में विश्वास बढ़ाने के लिए फसल बीमा स्कीम लागू की जा सकती है. देश में अनाज की सब से बड़ी मंडी पंजाब में उत्पाद खरीदने के लिए न राज्य सरकार और न ही फ़ूड कारपोरेशन ऑफ़ इंडिया कोई पहल कर रही है. यही हाल अन्य प्रदेशों का है.
त्रासदी यह है कि किसानों के वर्गहित के लिए जिस स्वामीनाथन कमेटी ने जो भी सुझाव सुझाये थे उनपर न तो कांग्रेस सरकार ने अमल किया और न बीजेपी सरकार अमल करने को तैयार है.
कहीं न कहीं पर किसान वर्ग के हित बड़े पूंजीपति वर्ग के हित से टकराते हैं. और फिर पूंजीपति समाज राजनीतिक दलों को अरबों रुपया डोनेशन के रूप में प्रदान करते हैं -भला शोषित किसान क्या दे सकता है ?

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