Friday 27 July 2018

गुरु पूर्णिमा के अवसर पर :
गुरु गीता : ज्ञान या अज्ञान का महिमामंडन !
जब से केंद्र में राष्ट्रीय स्वयं संघ का राजनीतिक वर्चस्व स्थापित हुआ है तब से हिन्दुत्ववादी धर्म ग्रंथों को एक राजनीतिक एजेंडा के अंतर्गत ऐसे प्रस्तुत किया जा रहा है जैसे समय अन्तराल से आजतक वह धर्म ग्रन्थ सभी विषयों के ज्ञान भंडार हैं . विज्ञान एवं टेक्नोलॉजी के मैदान में जो भी अविष्कार आज हमारे सामने हैं उनका मूल आधार हिन्दू धर्म ग्रन्थ ही हैं जिन्हें विदेशियों ने चुराकर अपने नाम से प्रस्तुत किया. यह पावन देश आदिकाल से विश्वगुरु रहा है !वेद, उपनिषद ,स्मृतियाँ ,पुराण,गीता, रामायण , महाभारत आदि आदि मिथात्मक ग्रन्थ नहीं वरन ज्ञान विज्ञान का असाधारण एवं अद्भुत इतिहास है लेकिन यथार्थवादी व्यवहार तथा चिंतन में यह सभी धर्म ग्रन्थ ब्राह्मणवादी शोषणकारी व्यवस्था ,अकर्मण्यता ,अज्ञानता, भेदभावपूर्ण जातिवाद तथा पूर्वग्रह के ठोस प्रतीक हैं.
परजीवी धर्म गुरु अपने वर्ग की शोषणकारी परम्परा को प्रासंगिक बनाये रखने के लिए गुरु गीता नामक ग्रन्थ का बहुत प्रचार प्रसार करते हैं !कारण स्पष्ट हैं -गुरु गीता अंध भक्तों की अंध श्रध्दा को और सशक्त बनाते हुए अज्ञानता के अंधकार में धकेलती है जहाँ से उनकी वापसी असंभव हो जाती है.
यह कुल मिलाकर 221 श्लोकों की पुस्तक है। इस में गुरू शिष्य के संबंधों पर विस्तृत चर्चा की गई है। इस पुस्तक के अध्ययन मात्र से सभी संसारिक सुख प्राप्त होते हैं और सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। गुरू को ब्रह्मा गुरू विष्णु गुरू शिव गुरू परंब्रह्म परिभाषित करते हुए देवताओं के समकक्ष रखा गया है। शिष्य के पूर्ण समर्पण के लिए यह भी कहा गया है कि शिष्य अपनी पत्नी भी गुरू को अर्पित करे (आत्मदाराssदिकं सर्वं गुरवे च निवेदयेत ,श्लोक 55); शिष्य गुरू के पैरों का धोवन पिए तथा उस का झूठा बचा खाना खायें ( गुरूपादोदकं पेयं गुरोरूच्छिष्टभोजनम; श्लोक 57)।इस के साथ साथ यह भी कहा गया है -सात समुन्दरों तक जितने तीर्थ हैं उन में स्नान करने से जो पुण्य प्राप्त होता है गुरू के पैरों का धोवन की एक बूंद पीने से उस से हज़ारगुना अधिक फल प्राप्त होता है: श्लोक 161!
यदि यह ज्ञान है तो अज्ञान की परिभाषा क्या है?
नोट : घृणित जातिवादी पूर्वाग्रह व्यक्त करते हुए शिष्य का अधिकार केवल और केवल ब्राह्मण क्षत्रिय तथा वैश्य के नाम सुरक्षित रखा गया है।

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