Wednesday 10 October 2018

व्यंग्य यथार्थ के आसपास। 🤣😂🤣😃
मुझे लगा जैसे मेरा मन मस्तिष्क शून्य हो गया हो, सोच समझ कर फेस बुक पर कुछ कहने की अभिव्यक्ति पर जैसे अंकुश लग गया हो। फेसबुक पर नियमित रूप से बतियाना किसी जटिल संक्रामक रोग से कम नहीं है जो व्यवहार और चिंतन में असाध्य रोग है। परिणामस्वरूप हम कुतर्क पर आधारित टिप्पणियों, तीखे कटाक्ष और प्रजातांत्रिक अलंकारों (♧◇♡♤) के अभ्यस्त हो गये हैं। विचारों के अभाव में यही सुझाया कि चलो आज सभी असहमतियों विवादों से परे कुछ निर्लिप्त लिखा जाये और हम ने झट से फेसबुक पर चेप दिया -#आखिर_मुर्गी_ने_सडक_पार_कर_ली ।मेरी खुशी का कोई ठिकाना न था क्योंकि 15 मिनट में 70 लोगों ने बिना किसी अलंकार के इस असाधारण अभिव्यक्ति को लईक कर लिया। हम कब तक खैर मनाते? तभी एक मोदी भक्त का कमेन्ट आया- आप को मतिभ्रम है यह सड़क विकास पुरूष की देन है। तभी किसी देशद्रोही का कमेन्ट आया- मोदी भक्त यह क्यों नहीं समझते कि मोदी निर्मित सडकों पर केवल मुर्गी ही क्रास कर सकती है। मोदी भक्त ने तत्काल प्रतिक्रिया व्यक्त की- पहले की तुलना में यह मोदी जी की ही देन है कि आज चूहा मुर्गी और गाय माता सुगमता से सड़क पार कर लेती है। व्यस्त सड़कों पर गाय माता बिना किसी वेतन के ट्रेफिक कंट्रोल करती नज़र आती है। मैं ने लिखना चाहा कि मेरी यह पोस्ट मुर्गी के असाधारण साहस बारे है और गैर राजनीतिक है परन्तु तभी मेरी नींद खुल गई और मै स्वप्न लोक से यथार्थ लोक में आ गया।

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