Saturday 14 February 2015

सात वार सात व्रत कथाएं, अंधविश्वास की प्रेरक पोषक !
वास्तव में यह कथाएं भक्तों में अंधविश्वास को बढाती हैं.कर्मक्षत्र में कूदने की अपेक्षा अकर्मण्यता को प्रेरित करते हुए पलायनवादी होकर जीने की प्रेरणा देती है.
"वेद प्राग" ने जिस कन्या का पालन पोषण किया वह कन्या पूर्व जन्म में मंगलवार की पूजा व व्रत करने के कारण अगले जन्म में सोने की खान सिद्ध हुई तथा उस के अंगों से सोना निकलता था.इसी प्रकार "रविवार व्रत कथा" के अनुसार भगवान द्वारा भेंट में दी गई गाय सोने का गोबर करती है. हमारे देश में लाखों की संख्या में लोग मंगलवार तथा रविवार का व्रत भी रखते हैं और सम्बन्धित कथा भी सुनते सुनाते हैं परन्तु आजतक ऐसी कोई भी नारी या पुरूष देखने में नहीं आया जिस के अंगों से सोना निकलता हो,कोई ऐसी गाय देखने में नहीं आई जो सोने का गोबर करती हो.
यह सभी कथाएं मात्र कहानियां हैं और इन को सुनने पढने भर से कैसे किसी दुखी का दुख दूर हो सकता है ?कैसे कोई निर्धन धनवान हो सकता है ?बांझ स्त्री कैसे सन्तान प्राप्त कर सकती है ?कैसे कोई रोगी रोग मुक्त हो सकता है? जन्म से लूला लंगड़ा कैसे चलफिर सकता है?सामाजिक तथा पारवारिक स्तर पर ढेर सारी अन्य समस्याओं के समाधान में इन कथाओं का किसी भी प्रकार का योगदान सम्भव नहीं हो सकता.इस सारे पाखण्ड़ का लाभ केवल और केवल परजीवी ब्राह्मणों को मिलता है जिन के पूर्वजों ने अपनी आने वाली सन्तानों के मुफ्त में पालन पोषण के लिए इन कथाओं को लिखकर व्रत परम्पराओं का अंधविश्वास स्थापित किया. और २१वीं शताब्दी में भी यह तर्कहीन अवैज्ञानिक क्रम जारी है !

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