Wednesday 24 December 2014

धर्म का धन्धा -बिना किसी पूंजी के मुनाफा ही मुनाफा !
"मानवता की रक्षा के लिये ईश्वर ने धर्म को बनाया है "-धर्म के दुकानदार इन मिथ्या वचनों को इतनी बार बोलते हैं कि धार्मिक विश्वास रखने वाले लोगों को उन के यह शब्द शतप्रतिशत सत्य वचन लगते हैं.धर्म की दुकान पर सदाचार,भाईचारा ,परिश्रम ,दया ,दान ,करुणा,समानता आदि सब कुछ बिकता है .दुकान आसाराम ,रामदेव ,रामपाल ,श्रीश्री ,सहिबबंदगी,रामरहीम या अन्य किसी की भी हो ,अन्धविश्वासी अपनी कमाई इन पाखंडी लोगों के हवाले करते हैं  तथा इन के शोषण का शिकार हो जाते हैं.
आसाराम  तथा रामपाल जैसे तो कानून की गिरफ्त में आ गये हैं पर उन्हें अपवाद मानें .समस्त देश में धर्मो  का धन्धा ज़ोरों पर है. तीव्र गति से नये नये आश्रम बन रहे हैं ,पुराने आश्रमों का विस्तार हो रहा है .इन के ग्राह्कूं में अभेनेता ,नोकरशाह ,आम जनता तथा पोलिटिकल वर्ग -सभी शामिल हैं.भले ही पिछले ३-४ दशकों में साइंस तथा टेक्नोलॉजी के मैदान में जितनी भी प्रगति हुईं हो और उस प्रगति के साथ लोग कितने भी जुड़ें हूँ , क्रियात्मक रूप से २१वी शताब्दी के अध्यकांश लोग मानसिक स्तर पर पाषाण युग के निवासी हैं.उनकी मानसिकता में दोहरा मापदंड तथा अंतर्विरोध है.
अफसोस इस बात का है कि यह जानते हुये भी कि धर्म के नाम पर ही १९४७ में लाख़ों लोग मारे गये और यह घातक क्रम आज भी जारी है.आज विश्व में जहां कहीं भी खून की होली खेली जा रही है उसका पूरा श्रेय धर्म उन्माद को ही जाता है .धर्म के आधार पर ही लोग एक दूसरे को गाजर मूली की तरह काट रहे हैं .धर्म एकता का नहीं वरन सामाजिक विघटन का मुख्य आधार है.हमारे देश में जातीवाद संकीरता तथा सम्प्रदायकता भी धर्म की देन है.
देश की राजनीतिक त्रासदी यह है कि केंद्र की नयी सरकार अपने बघवा एजेंडा को क्रियान्वित हेतु एक धर्म विशेष को प्रोत्साहित कर रही है .कला,इतिहास ,साहित्य ,विज्ञान आदि सभी विषयों का हिन्दुकरण -धार्मिक उन्माद तथा सामाजिक विघटन का प्लेटफार्म बने गा -इस में कोई संदेह नहीं .
समय की पुकार है कि सभी प्रगतिशील,सेक्युलर तथा मानवतावादी तत्व एक होकर संघ परिवार तथा उस के विनाशकारी बघवा एजेंडा का विरोध  करें .

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