Friday 14 July 2017

चौरासी लाख योनियों की मिथात्मक गप्प  !
जब कभी भी हम धार्मिक महाराथिओं से ८४ लाख योनियों के संदर्भ में दो या तीन दर्जन योनियों को गिनने को कहते हैं तो उनकी गिनती १५ से २५ के आसपास थम जाती है और बोलती बंद हो जाती है .वास्तव में जिस किसी लेखक ने यह कपोलकल्पित मिथात्मक गप्प का सृजन किया वह  शायद हज़ार तक गिनती गिनने में भी समर्थ न था .यह कहना तर्कसंगत ही होगा कि कथित सर्वज्ञों ने जीव विविधता की बात करते हुए ८४ लाख योनियों की ढींग हांकी है .व्योरा इस प्रकार है :-
*जलचर =९ लाख प्रकार .
*पक्षि =१० लाख प्रकार .

*पशु =२० लाख प्रकार .
* पेड पोधे=३० लाख प्रकार .
*कृमि =११ लाख प्रकार .
*मनुष्य =४ लाख प्रकार .
यह गिनती और वर्गीकरण का साधन क्या था यह जानकारी किसी के पास नहीं है लेकिन यह गणना बाल गंगाधर तिलक कृत गीता रहस्य के पृष्ट १८५ पर उपलब्ध है. यह गणना नितांत अविज्ञानिक और निराधार है तथा तुकबंदी की मिसाल है .
वर्तमान युग में जल थल और नभ के सब प्राणियों पेड पौधों आदि आदि का विशाल स्तर पर गहन तथा विस्तृत अध्ययन किया गया है.उसके अनुसार विभिन्न प्रजातियों की कुल गिनती १६,६८५७८ है. इस गणना में ४,१९३५५ पौधों की प्रजातियाँ तथा १२,४९२२३ मानव सहित जीवों की संख्या शामिल है .कुल मिलकर यह संख्या १७ लाख भी नहीं बनतीं .बाल गंगाधर तिलक का यह कहना बिलकुल सही प्रतीत होता है कि ८४ लाख योनियों की बात पौराणिक कल्पना लगती है .[संदर्भ :चार्वाक दर्शन }.

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