Monday 28 December 2015

उपनिषद में घृणित जातिवाद का महिमामण्ड़न !
जब से संघ नियन्त्रित सरकार ने केन्द्र में सत्ता संभाली है, हिंदू धर्म के प्राचीन ग्रन्थों में वर्णित और परिभाषित सामाजिक व्यवस्था का गुणगान करना नवीनतम संघ प्रेरित परम्परा बनकर रह गई है. देखिए सत्य क्या है. 
"तद्य इह रमणीयचरण अभ्याशे ह यते रमणीयां योनिमापद्येरन् ब्राह्मणयोनिं वा क्षत्रिययोनिं वा वैश्ययोनिं वाथ य इह कपूयचरणा अभ्याशे ह यते कपूयां योनिमापद्येरन् श्वयोनिं वा सूकरयोनिं वा चण्ड़ालयोनिं वा".(छांदोग्य उपनिषद, 5-10-7).
अर्थात :-उन जीवों में जो अच्छे आचरण वाले होते हैं, वह शीघ्र ही उत्तम योनि को प्राप्त होते हैं, वे ब्राह्मणयोनि, क्षत्रिययोनि अथवा वैश्ययोनि को प्राप्त करते हैं तथा जो अशुभ (बुरे/पाप)आचरण वाले होते हैं, वे तत्काल अशुभ योनि को प्राप्त होते हैं -वह कुत्ते की योनि, सूअर की योनि अथवा चांडाल की योनि को प्राप्त करते हैं. 
‪#‎जयहिंदूराष्ट्र‬

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