Sunday 11 January 2015

निन्दनीय जातिवाद जन्य पूर्वग्रह छुआ छूत तथा सामाजिक विघठन का वास्तविक सच क्या है ???
केन्द्र में राष्ट्रीय स्वयम सेवक सघं का राज्य स्थापित होने के पशचात ,आये दिन नये नये शगूफे सुनने सुनाने का दौर चल पड़ा है.अभी कुछ दिन पहले निक्करधारी विचारकों ने नई थ्यूरी खोज निकाली-हिन्दू धर्म तथा उस से सम्बन्धित ग्रन्थों में कहीं भी जातिवाद तथा छूत छात का लेश मात्र भी वर्णन नहीं है,वह तो कई शताब्दियों के पशचात भारत पर मुस्लिम राज्य स्थापित होने पर मल्लेच्छों की देन है. 
आइये हिन्दू ग्रन्थों के संदर्भ से जानें वास्तविकता क्या है ?
प्राचीनतम वेदों से नवीनतम (१५-१६ शताब्दी)रामचरितमानस तक !
# ब्राहम्णोsस्य मुखमासीद् बाहू राजन्यः कृतः
उरू तदस्य यद्वैश्यः पद्भयां शूद्रो अजायत् !(Rigveda पुरूष सूक्त,१०-९०-१२).
विराठ रूप परमात्मा के मुख से ब्राहमण की उत्पति हुई ,बाहुओं से क्षत्रियों,जंघाओं से वैश्यों तथा शूद्रों की उत्पति उस के चरणों से हूई.
# लोकानां तु विवृद्धयअर्थं मुखबाहुरूपादतः
ब्रह्मणं क्षत्रियं वैश्यं शूद्रं च निरवर्तयत् !(मनु स्मृति १/३३).
स्वयं महाप्रजापति ब्रह्मा ने लोक वृद्धि के लिए अपने मुंह से ब्राह्मण बाहु से क्षत्रिय जंघा से वैश्य तथा चरणों से शूद्र को उत्पन्न किया.
# दुःशीलोsपि द्विजः पूज्यो न त शूद्रो जितेंद्रियः
कः परित्यज्य दुष्टां गां दुहेच्छीलवर्ती खरीम् !(परशार स्मृति ८/३३).
ब्राहम्ण दुःशील भी पूज्य है,शूद्र गुणवान भी आदर सत्कार के योग्य नहों होता.कौन ऐसा मनुष्य है जो मरखनी गाय को छोड़ कर सुशील गधी को दुहेगा ?.
# यथा चांडालोपस्पर्शने संभाषायां दर्शने च दोषस्तत्र प्रायशिचतम् (आपस्तंब २/१/२/८).
जिस प्रकार चांडाल को छूना पाप है उसी प्रकार उस से बोलना और उसे देखना भी पाप होता है,जिस के लिए प्रायश्चित का विधान है.
# मां हि पार्थ.......शूद्रास्तेsपि यान्ति परां गतिम् (गीता ९/३२).
हे पार्थ यदि पापयोनि से उत्पन्न स्त्री वैश्य तथा शूद्र मेरी शरण में आ जायें ,वह सभी परमधाम को प्राप्त करते हैं.
# ढोल गंवार पसु शुद्र नारी सकल ताड़ना के अधिकारी (रामचरितमानस सुन्दरकांड ३/६२).
टिप्पणी:- यहां ढेर सारे संदर्भ से केवल कुछ संदर्भ ही प्रस्तुत किए गये हैं.

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