Friday 28 June 2013

चार्वाक दर्शन के प्रणेता बृहस्पति का कहना है—

न स्वर्गो नापवर्गो, वा नैवात्मा पारलौकिकः
नैव वर्णाश्रमादीनां क्रियाश्व फलदायिकाः
अग्निहोत्रं त्रयो वेदात्रिदण्डं भस्मगुण्ठनम्।
बुद्धिपौरुषहीनानां जीविका धातृनिर्मिता।।
पशुश्रेन्निहतः स्वर्ग ज्योतिष्टोमे गमिष्यति।
स्वपिता यजमानेन तन्न कस्मान्न हिंस्यते?
मृतानामपि जन्तूनां श्राद्धं चेत्तृप्तिकारणम्
निर्वाणस्य प्रदीपस्य स्नेहः संवर्धयेच्छिखाम्।।—सर्वदर्शन संग्रह

आशय है कि न तो स्वर्ग है, न अपवर्ग(मोक्ष) और न परलोक में रहने वाली आत्मा. वर्ण, आश्रम आदि की क्रियाएं भी फल देने वाली नहीं हैं. अग्निहोत्र, तीनों वेद, तीन दंड धारण करना और भस्म लगाना—ये बुद्धि और पुरुषार्थ से रहित लोगों की जीविका के साधन हैं. जिन्हें बृह्मा ने बनाया. यदि ज्योतिष्टोम-यज्ञ में मारा गया पशु स्वर्ग जाएगा, जो उस जगह पर यजमान अपने पिता को ही क्यों नहीं मार डालता? मरे हुए प्राणियों को श्राद्ध से यदि तृप्ति मिलती मिले तो बुझे हुए दीपक की शिखा तो तो तेल अवश्य ही बढ़ा ही देगा.

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