Thursday 2 March 2017

अंधी पीसे कुत्ता चाटे !
गीता में कर्म को महत्व दिया गया है परन्तु उसी सांस में अकर्म और विकर्म का भी संदर्भ जोड़ा है.तदानुसार केवल उसी कर्म को श्रेष्ट घोषित कर दिया जिस में फल की इच्छा न हो,परिणाम की चिन्ता न हो-अर्थात अंधी पीसे कुत्ता चाटे. अंधे की भान्ति बस पीसते/पिसते रहो,फल की इच्छा व चिन्ता मत करो.यह देखने की चिन्ता या चेष्टा मत करो कि पीसे गये आटे का क्या बन रहा है या बनेगा?
यह अकारण नहीं है कि गीता दर्शन सदैव से शोषणकर्ता वर्ग,संन्यासियों,अकर्मन्यता के प्रेरणास्त्रोत निठ्ठले साधुओं,गृहत्यागियों,मरणासन्न व्यक्तियों आदि के ही ज़्यादा काम आई है.
और यह कोई संयोग मात्र नहीं है कि आज लुटेरे पूंजीपति वर्ग का नवीनतम् चहरा,उन के वर्ग विशेष हितों की संरक्षक (class custodian) भाजपा भजन मण्ड़ली देश की नई पीढी को इसी धर्म ग्रन्थ की अफीम गुटी पिलाने पर तत्पर है ताकि आने वाली पीढियां भी कभी घृणित लुटेरे शोषणकर्ता वर्ग के विरुद्ध संघर्ष के बारे न सोचें और केवल अपने तथाकथित पूर्व कर्मों को ही कोसते रहें.तभी टाटा बिरला,अम्बानी,अदानी आदि का साम्राज्य और अधिक सशक्त होगा और शोषित वर्ग और अधिक कमज़ोर होगा.
कौन कहता है कि २१वीं शताब्दी में गीता सार्थक नहीं है

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