अनैतिकता और भ्रष्टाचार के लिए अध्यात्मिक लाईसेंस !
हमारे देश में धार्मिक पाखंड एवं धार्मिक क्रियाकलापों का पालन करनेवाला, घोर दुराचारी परम आदरणीय धर्मात्मा कहलाता है जबकि अनेक देशों में चरित्र की पवित्रता से ही व्यक्ति को सम्मान योग्य धर्मात्मा या श्रेष्ठ माना जाता है. कमाल देखिए हमारे हां तथाकथित भगवान के स्वयंभू "अधिकृत " ठेकेदार डंके की चोट पर ऐलान करते हैं कि एक जन्म में क्या, लाखों जन्मों में किया हुआ पाप भी केवल "भगवान " का नाम लेने/शरण में जाने से माफ हो जाता है अथवा किसी तीर्थ स्थल में जाकर स्नानादि से धुल जाता है. बिना किसी शर्त के खुला लाईसेंस है. ऐसी हालत में कोई धर्म अनुयायी भला काहे को पाप से दूर रहेगा.
अध्यात्मिक लाईसेंस के कुछ संदर्भ यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ
# अन्य क्षेत्रे कृतं पापं काशिक्षेत्रे विनाश्यति (काशीमाहात्मय).अर्थात कहीं भी किया गया पाप काशी(प्रयाग) यात्रा से नष्ट हो जाता है.
# गंगा गंगेति यो ब्रूयाद्योजनानां शतैरपि,
मुच्यते सर्वपापेभ्यो विष्णुलोकं स गच्छति. (ब्रह्मपुराण अध्याय 175,पद्य्मपुराण अध्याय 13).
अर्थात जो भक्त सेंकड़ों सहस्त्रों कोश (मील/किलोमीटर)से भी गंगा गंगा बोलता रहे, वह सभी पापों से मुक्त होकर मरनोपरान्त विष्णुलोक /वैकुंठ को जाता है.
# प्रातः काले शिवं दृष्टवा निशिपापं विनश्यति,
आजन्मकृतं मध्याह्ने सायाह्ने सप्तजन्मानाम्. (तीर्थदर्पण, परिच्छेद 2).जो भक्त प्रातःकाल में शिव अर्थात लिंग या उसकी मूर्ति का दर्शन करता है, तो रात्रि, दोपहर,संध्या और सात जन्मों के पाप से वह मुक्त हे जाता है.
# अपि चेत्सुदुराचारो भजते मामनन्यभाक्
साधरेव स मन्तव्यः सभ्यग्व्यसितो हि सः (गीता 9/30).
अर्थात यदि कोई जघन्य से जघन्य अपराध करता है किन्तु वह मेरी भक्ति में लीन रहता है तो उसे साधु/महात्मा मानना चाहिए क्योंकि वह अपने संकल्प में अडिग रहता है.
# क्षिप्रं भवति धर्मात्मा शश्वच्छान्तिं निगच्छति
कौन्तीय प्रतिजानिह न स मे भक्तः प्रणश्यति. (गीता 9/31).अर्थात वह जघन्य अपराधी तुरन्त धर्मात्मा बन जाता है और स्थायी शान्ति को प्राप्त होता है. हे कुन्तीपुत्र, निडर होकर घोषणा कर दो कि मेरे भक्त का कभी विनाश नहीं होता है.
# सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज
अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः (गीता, 18/66).अर्थात सम्सत प्रकार के धर्मों का परित्याग करो, और मेरी शरण में आओ, डरो मत, मैं सभी पापों से तुम्हें मुक्त कर दूंगा.
हमारे देश में धार्मिक पाखंड एवं धार्मिक क्रियाकलापों का पालन करनेवाला, घोर दुराचारी परम आदरणीय धर्मात्मा कहलाता है जबकि अनेक देशों में चरित्र की पवित्रता से ही व्यक्ति को सम्मान योग्य धर्मात्मा या श्रेष्ठ माना जाता है. कमाल देखिए हमारे हां तथाकथित भगवान के स्वयंभू "अधिकृत " ठेकेदार डंके की चोट पर ऐलान करते हैं कि एक जन्म में क्या, लाखों जन्मों में किया हुआ पाप भी केवल "भगवान " का नाम लेने/शरण में जाने से माफ हो जाता है अथवा किसी तीर्थ स्थल में जाकर स्नानादि से धुल जाता है. बिना किसी शर्त के खुला लाईसेंस है. ऐसी हालत में कोई धर्म अनुयायी भला काहे को पाप से दूर रहेगा.
अध्यात्मिक लाईसेंस के कुछ संदर्भ यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ
# अन्य क्षेत्रे कृतं पापं काशिक्षेत्रे विनाश्यति (काशीमाहात्मय).अर्थात कहीं भी किया गया पाप काशी(प्रयाग) यात्रा से नष्ट हो जाता है.
# गंगा गंगेति यो ब्रूयाद्योजनानां शतैरपि,
मुच्यते सर्वपापेभ्यो विष्णुलोकं स गच्छति. (ब्रह्मपुराण अध्याय 175,पद्य्मपुराण अध्याय 13).
अर्थात जो भक्त सेंकड़ों सहस्त्रों कोश (मील/किलोमीटर)से भी गंगा गंगा बोलता रहे, वह सभी पापों से मुक्त होकर मरनोपरान्त विष्णुलोक /वैकुंठ को जाता है.
# प्रातः काले शिवं दृष्टवा निशिपापं विनश्यति,
आजन्मकृतं मध्याह्ने सायाह्ने सप्तजन्मानाम्. (तीर्थदर्पण, परिच्छेद 2).जो भक्त प्रातःकाल में शिव अर्थात लिंग या उसकी मूर्ति का दर्शन करता है, तो रात्रि, दोपहर,संध्या और सात जन्मों के पाप से वह मुक्त हे जाता है.
# अपि चेत्सुदुराचारो भजते मामनन्यभाक्
साधरेव स मन्तव्यः सभ्यग्व्यसितो हि सः (गीता 9/30).
अर्थात यदि कोई जघन्य से जघन्य अपराध करता है किन्तु वह मेरी भक्ति में लीन रहता है तो उसे साधु/महात्मा मानना चाहिए क्योंकि वह अपने संकल्प में अडिग रहता है.
# क्षिप्रं भवति धर्मात्मा शश्वच्छान्तिं निगच्छति
कौन्तीय प्रतिजानिह न स मे भक्तः प्रणश्यति. (गीता 9/31).अर्थात वह जघन्य अपराधी तुरन्त धर्मात्मा बन जाता है और स्थायी शान्ति को प्राप्त होता है. हे कुन्तीपुत्र, निडर होकर घोषणा कर दो कि मेरे भक्त का कभी विनाश नहीं होता है.
# सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज
अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः (गीता, 18/66).अर्थात सम्सत प्रकार के धर्मों का परित्याग करो, और मेरी शरण में आओ, डरो मत, मैं सभी पापों से तुम्हें मुक्त कर दूंगा.
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