Tuesday, 25 August 2015

ऋग्वेद :केवल मन्त्रों का समूह न कि ज्ञान की पोटली !
ऋग्वेद स्तुतियों का संग्रह मात्र है, जिस में ॠषियों ने इन्द्र, वरूण, कुबेर, नदी, पहाड़, सांप आदि की 10467 स्तुतियां संग्रहीत हैं. इन सूक्तों को ही मंत्र कहते हैं. 
पहले वेदों का प्रचार प्रसार निजी सेक्टर में होता रहा है परन्तु संघ नियन्त्रित सरकार के सत्ता आसीन होते ही अब यह प्रचार प्रसार सरकारी सेक्टर का उत्तरदायित्व बना दिया गया है. विभिन्न माध्यम से धर्मभीरू जनता को विश्वास दिलाया जा रहा है कि वेद ईश्वर कृत है, ब्रह्मा ने उन की रचना की है और उन में वैज्ञानिक ज्ञान भरा हुआ है. वेदों के रचनाकार त्रिकालदर्शी थे और उन्हें भूत भविष्य और वर्तमान का पूरा ज्ञान था. 20-21वीं शताब्दी में ॠग्वेदकालीन ॠषियों की अनेक रचनाएं गल्त प्रमाणित हुई हैं. यह स्वभाविक भी है क्योंकि ज्ञान अनंत और असीम है.इस के विपरीत ऋग्वेद या अन्य वेदों में ज्ञान की किसी शाखा के बारे में कोई लेख, विवेचना या विवरण नहीं है. उन में विभिन्न देवताओं की तथा प्राकृतिक और अप्राकृतिक वस्तुओं की स्तुतियां हैं जिन में मुख्यतया धन और भौतिक पदार्थों की कामना की गई है. कुछ वस्तुओं और देवीदेवताओं के नाम यूं हैं:-
इंद्र, अग्नि, वायु, अश्विनी कुमार, सूर्य, ऋतु, सोम, ऊषा, जल, रथ, अश्व, संभोग, अन्न, तृष्णा, अमावस्या, मधु, नभ, नदी,, कवच, धनुष की ड़ोरी, सारथी, युद्धभूमि, कुत्ता, बादल, मेंढक, मृत्यु, जुआ और पासा, कूटने वाले पत्थर और ऊखल, मूसल, इंद्र के घोड़े, औषधि, रात्रि आदि आदि.

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