Thursday, 28 May 2015

एक नेता की आत्मव्यथा !
कभी सोचा न था कि ऐसे दिन भी आ जाएँगे जब किसी न किसी संदर्भ में मेरा फोटो प्रधानमन्त्री /मुख्यमंत्री या पार्टी प्रधान के साथ सोशल मीडिया की शोभा नहीं बढायेगा.यह सुप्रीम कोर्ट की कार्यप्रणाली भी अजीब है.हजारों केस पेंडिंग हैं उन पर ध्यान देने के बजाय हम समाजसेवकों के पीछे हाथ धो कर पड़ें हैं.
पहले निर्देश दिया कि केवल अमुक अमुक नेता ही लालबती का अधिकारी होगा. कौन उनको समझाए कि लालबती के बिना नेता ऐसे होता है जैसे आत्मा बिना शरीर .आप काहे के नेता हैं यदि आप की गाड़ी पर लालबती न चमकती हो.
अब सुप्रीम कोर्ट ने नया फरमान दिया है कि केवल राष्ट्रपति ,प्रधानमंत्री तथा सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस का ही फोटो सरकारी प्रचार प्रणाली का हिस्सा हो सकता है अन्य कोई भी नहीं .अब यह क्या बात हुई-जब सरकारी प्रचार प्रणाली में हमारा फोटो ही नहीं होगा तो जनता हमें नेता के रूप में कैसे जानेगी ?सुप्रीम कोर्ट का यह फरमान घोर अन्याय है.काश हमारे देश में सुप्रीम कोर्ट से ऊपर और कोई कोर्ट होती ,कम से कम अपील तो करते .हमें अपनी कोई चिंता नहीं हम समाज सेवकों के बिना देश और समाज का क्या होगा ???

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