बेमौत मरने पर विवश फूटपाथ पर जीते ग़रीब लोग !
क्या कभी इन के भी अच्छे दिन आ सकते हैं ???
क्या कभी इन के भी अच्छे दिन आ सकते हैं ???
देश को स्वतंत्र हुए 68 वर्ष हो चुके हैं, पर अभी भी बहुसंख्या बुनियादी सुविधाओं से वंचित है। दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता और चेन्नई जैसे मैट्रोपोलिटन शहरों में ही नहीं, अन्य छोटे व दरम्याने शहरों में भी बड़ी संख्या में लोग फुटपाथों पर सोने के लिए विवश हैं।
ये लोग वर्षा, आंधी जैसे मौसमी प्रकोपों के निशाने पर लगातार बने रहते हैं। उनकी बहू-बेटियों की इज्जत भी सदा खतरे में रहती है और यही नहीं अब तो फुटपाथ वासियों के लिए तेज रफ्तार वाहनों से भी भारी खतरा पैदा हो गया है और कोई नहीं कह सकता कि कब कोई तेज रफ्तार वाहन आकर किसी ‘फुटपाथ वासी’ को कुचल जाएगा।
सर्दियों के मौसम के मुकाबले गर्मियों के मौसम में फुटपाथ पर सोने वालों की भीड़ अधिक बढ़ जाती है और उसी अनुपात में उनके जीवन को खतरा भी बढ़ जाता है। सरकार के एक मोटे अनुमान के अनुसार कश्मीरी गेट सहित पुरानी दिल्ली में ही 7 से 8 हजार के बीच बेघर लोग फुटपाथों पर रात बिताते हैं और गत वर्ष दिल्ली अर्बन शैल्टर इम्प्रूवमैंट बोर्ड ने 269 स्थानों पर फुटपाथों पर रहने वालों की संख्या 16,760 बताई गई थी जबकि एक एन.जी.ओ. के अनुसार अकेले समूची दिल्ली में इनकी संख्या एक लाख से अधिक है।
ज्यादातर ये नौकरी व रोजगार की तलाश में महानगरों में आने वाले सर्वहारा लोग हैं। मेहनत-मजदूरी करके पेट पालने वाले ये वह लोग हैं जो फुटपाथों पर ही गृहस्थी बनाते और फुटपाथों पर ही बच्चे पैदा करते हैं और वहीं मर जाते हैं। कुछ ऐसे भी होते हैं जिन्हें प्राकृतिक मौत भी नसीब नहीं होती और उन्हें तेज रफ्तार से गुजरते वाहन कुचल जाते हैं।
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