मोदी जी भगवान कृष्ण का अवतार हैं !
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् !(गीता ४/७).
अर्थात हे भरतवंशी! जब भी और जहां भी धर्म का पतन होता है और अधर्म की प्रधानता होने लगती है,तब तब मैं अवतार लेता हूँ !
कांग्रिस शासन में अधर्म चरम सीमा पर पहुंच गया था अतः मोदी जी अवतरित हुए.
गीता में कृष्ण जी ने ६२० श्लोकों में ७७ बार अहम,७६ बार माम्,४३ बार मे,१९ बार मम,१२ बार मया और १८ बार मयि शब्दों का प्रयोग किया है.४७ ऐसे समास वाले पद हैं जिन में मैं का वाचक शब्द मिलता है.मोदी जी भी आत्म प्रशंसास्वरूप मैं,मेरा,मैं ने,मुझ में शब्दों का खुले दिल से प्रयोग करते हैं.
कृष्ण जी ने नौवें अध्याय में संसार की हर वस्तु जैसे मौसम,यज्ञ,ओषधि,अग्नि,मातापिता पितामह,त्रिवेद,गति,स्वामी मित्र,उत्पति प्रलय,सुर्य,अमृत से अपने को जोड़ते नज़र आते हैं.वहीं दसवें अध्याय में अपने आप को हृदय वासी,मरीच,चंदा,पीपल,मेरू पर्वत,वासुकि,शेर और गरूड़,मगरमच्छ,गंगा,गायत्री आदि आदि कहा है (लिस्ट लम्बी है).
ठीक उसी प्रकार पिछले एक वर्ष में जिन १८-१९ देशों का मोदी जी ने भ्रमण किया है,उन सभी देशों के धर्म,सभ्यता एवं संस्कृति के साथ मोदी जी ने अपना पुराना रिशता बताया है.वह हर स्थान से जुड़े हैं.अपने देश की हर विविधता में तो वह पहले से ही हैं.
विधार्थी जीवन में मार्क्सवादी चिंतन से जुड़ने के कारण पिछले लगभग ५० वर्षों से नास्तिक हूँ परन्तु २१वीं शताब्दी में साक्षात अवतारवाद को देख कर नास्तिक होकर भी कृष्ण जी की प्रणाम करता हूँ.
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् !(गीता ४/७).
अर्थात हे भरतवंशी! जब भी और जहां भी धर्म का पतन होता है और अधर्म की प्रधानता होने लगती है,तब तब मैं अवतार लेता हूँ !
कांग्रिस शासन में अधर्म चरम सीमा पर पहुंच गया था अतः मोदी जी अवतरित हुए.
गीता में कृष्ण जी ने ६२० श्लोकों में ७७ बार अहम,७६ बार माम्,४३ बार मे,१९ बार मम,१२ बार मया और १८ बार मयि शब्दों का प्रयोग किया है.४७ ऐसे समास वाले पद हैं जिन में मैं का वाचक शब्द मिलता है.मोदी जी भी आत्म प्रशंसास्वरूप मैं,मेरा,मैं ने,मुझ में शब्दों का खुले दिल से प्रयोग करते हैं.
कृष्ण जी ने नौवें अध्याय में संसार की हर वस्तु जैसे मौसम,यज्ञ,ओषधि,अग्नि,मातापिता पितामह,त्रिवेद,गति,स्वामी मित्र,उत्पति प्रलय,सुर्य,अमृत से अपने को जोड़ते नज़र आते हैं.वहीं दसवें अध्याय में अपने आप को हृदय वासी,मरीच,चंदा,पीपल,मेरू पर्वत,वासुकि,शेर और गरूड़,मगरमच्छ,गंगा,गायत्री आदि आदि कहा है (लिस्ट लम्बी है).
ठीक उसी प्रकार पिछले एक वर्ष में जिन १८-१९ देशों का मोदी जी ने भ्रमण किया है,उन सभी देशों के धर्म,सभ्यता एवं संस्कृति के साथ मोदी जी ने अपना पुराना रिशता बताया है.वह हर स्थान से जुड़े हैं.अपने देश की हर विविधता में तो वह पहले से ही हैं.
विधार्थी जीवन में मार्क्सवादी चिंतन से जुड़ने के कारण पिछले लगभग ५० वर्षों से नास्तिक हूँ परन्तु २१वीं शताब्दी में साक्षात अवतारवाद को देख कर नास्तिक होकर भी कृष्ण जी की प्रणाम करता हूँ.
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