Friday, 21 July 2017

सुप्रीम कोर्ट के 9 सदस्यीय बैंच द्वारा व्यक्तिगत गोपनीयता को पूर्ण अधिकार की श्रेणी से बाहर मानना परोक्ष रूप से संविधानिक मूलभूत अधिकारों की अवहेलना है।जहां एक ओर ऐसी वैधानिक अवधारणा अधिनायकवादी मानसिकता का प्रतीक है वही दूसरी ओर संविधान की ऐसी interpretation (व्याख्या) उन घिनौनी राजनीतिक शक्तियों को और सशक्त होने में सहायक होगी जो धर्म निरपेक्ष प्रजातंत्र की कभी पक्षधर नहीं रही, जो एक विशेष धर्म के वर्चस्व पर आधारित राजनीतिक,सामाजिक,आर्थिक तथा धार्मिक code of conduct (आचार संहिता) लागू करना चाहती है । यह भी एक सामाजिक त्रासदी है कि आज साधारण जनता में ऐसी व्याख्या के प्रति उदासीनता और संवेदनशीलता की कमी नज़र आती है जबकि इस विषय पर जागरूकता के साथ साथ गहन चिंतन की अत्यंत आवश्यकता है ।

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