Saturday, 30 July 2016

अंधविश्वास कैसेकैसे
गरुड़ पुराण में कहा गया है कि पापियों के प्राण गुदा जैसी नीचे की जननेंद्रियों से और पुण्य करने वाले व्यक्तियों के प्राण ऊपर के अंगों से निकलते हैं जबकि वास्तविकता यह है कि मनुष्य की मौत श्वसन तंत्र फेल हो जाने से ही होती है.
गरुड़ पुराण के प्रथम अध्याय के अनुसार, मृत्यु के बाद मनुष्य का कद एक अंगूठे के आकार जितना रह जाता है और उस को यमलोक की यात्रा करवाने के लिए निकले दूत भयानक होते हैं. पुस्तक के प्रथम अध्याय में कहा गया है कि यमदूत अंगूठे के आकार के मृत व्यक्ति को घसीटते हैं, जहरीले सांपों से डसवाते हैं, तेज कांटों से बेधते हैं, शेर व बाघ जैसे हिंसक जानवरों के सामने आहार के रूप में परोसते हैं. आग में जलाते हैं, कुत्तों से कटवाते व बिच्छुओं से डसवाते हैं.
यहां प्रश्न उठता है कि इतनी यातनाएं देने के बाद भी अंगूठे के आकार का मनुष्य जीवित कैसे रह सकता है? और क्या विशालकाय यमदूतों को अंगूठे के आकार के व्यक्ति को घसीटने की जरूरत पड़ सकती है?
सजाएं यहीं समाप्त नहीं होतीं. इतने छोटे आकार के व्यक्ति को छुरी की धार पर चलाया जाता है. अंधेरे कुओं में फेंका जाता है. जोंकोंभरे कीचड़ में फेंक कर जोंकों से कटवाया जाता है. उसे आग में गिराया जाता है. तपती रेत पर चलाया जाता है. उस पर आग, पत्थरों, हथियारों, गरम पानी व खून की वर्षा भी की जाती है. अंगूठे के आकार के व्यक्ति को वैतरणी नदी जिस का किनारा हड्डियों से जोड़ा गया है व जिस में रक्त, मांस व मवाद का कीचड़ भरा है, में डुबोया जाता है.
उस के बाद यमदूत उसे समयसमय पर भारी मुगदरों से भी पीटते हैं. मृतक की नाक व कानों में छेद कर के उसे घसीटते हैं और शरीर पर लोहे का भार लाद कर भी चलवाते हैं. इस तरह की कई कथित यातनाएं मृतक को दी जाती हैं. लेकिन आश्चर्यजनक रूप से वह मरता नहीं. इस वैज्ञानिक युग में इस तरह की बातें अविश्वसनीय व हास्यास्पद नहीं हैं तो और क्या हैं?
गरुड़ पुराण में कई बातें परस्पर मेल नहीं खातीं. मसलन, प्रथम अध्याय के 37वें श्लोक में कहा गया है कि यमलोक तक के मार्ग में कहीं वृक्षों की छाया व विश्राम का स्थल नहीं है जबकि इसी अध्याय के 44वें श्लोक में मृतक को यमदूतों सहित एक वट वृक्ष के नीचे विश्राम करने की बात कही गई है.
दूसरे अध्याय के 77वें श्लोक में कहा गया है कि शौतादय नाम के कथित नगर में हिमालय से 100 गुणा अधिक सर्दी पड़ती है. जब हिमालय, जहां का तापमान शून्य से नीचे रहता है, में ही कोई मानव बस्ती नहीं है तो वहां से 100 गुणा अधिक सर्दी वाली जगह पर एक नगर कैसे बस सकता है? शून्य से नीचे के तापमान में खून जमना आरंभ हो जाता है. जहां शून्य से नीचे 100 डिगरी या उस से अधिक ठंडा तापमान होगा वहां से तो यमदूत भी जीवित नहीं गुजर सकते.
गरुड़ पुराण के चौथे अध्याय में तीर्थों, ग्रंथों व पुराणों पर विश्वास न करने वाले, नास्तिक व दान न देने वाले व्यक्तियों को पापी कहा गया है. मृत्यु के बाद उन को नरक भुगतना पड़ता है.
चौथे अध्याय के अनुसार, गुड़, चीनी, शहद, मिठाई, घी, दूध, नमक व चमड़ा बेचना पाप है. 5वें अध्याय के मुताबिक गर्भ नष्ट करने वाला डाक्टर म्लेच्छ जाति में जन्म लेता है तथा सदा रोगों से पीडि़त रहता है. इसी अध्याय के 5वें श्लोक के अनुसार, जो व्यक्ति अकेला ही किसी स्वादिष्ठ वस्तु को खाता है उसे गलगंड रोग हो जाता है. श्राद्ध में अपवित्र अन्न दान में देने वाले को कुष्ठ रोग हो जाता है. पुस्तकें चुराने वाला जन्म से ही अंधा व पानी चुराने वाला पपीहे के रूप में जन्म लेता है. क्या इन बातों पर विश्वास किया जा सकता है?

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