Monday, 14 September 2015

हमारे यहां कहा जाता रहा है कि वेदों की रचना स्वयं भगवान ने की है, लेकिन चार्वाक ने हिंदू धर्मगुरुओं की परवा न करते हुए यह स्पष्ट किया कि वेदों की रचना भगवान द्वारा नहीं, बल्कि जीतेजागते हाड़मांस के इंसानों ने की थी. चार्वाक के विरोधियों के पास उन के कथन को गलत साबित करने का कोई ठोस तर्क नहीं था और शायद इसीलिए उन्होंने यह कह कर अपने मन की भड़ास निकाली कि भगवान का अनादर करने के अपराध में चार्वाक व उन के शिष्यों को अगले जन्म में सियार की योनि में जन्म लेना पड़ेगा.
तेरहवीं सदी के ब्रिटिश दार्शनिक व वैज्ञानिक रौजर बैकन को अपने वैज्ञानिक विचारों के लिए तथा मध्ययुगीन चर्च के अंधविश्वासों का विरोध करने के जुर्म में बारबार जेल जाना पड़ा.
बैकन के बाद 1327 में खगोलशास्त्री सेको द एस्कोली को धर्म के पैरोकारों ने इसलिए जिंदा जला डाला था कि उन का मानना था कि दुनिया गोल है और इसीलिए उस के दूसरी ओर भी लोगों के रहने की संभावना है. 1513 के आसपास कोपरनिकस ने मानवजाति की महानतम खोज की थी कि धरती सूरज की परिक्रमा करती है. इस के 300 साल बाद तक चर्च इस सत्य को झुठलाता रहा और इस बात को मानने वाले लोगों को सजा देता रहा.
धर्मधुरंधरों की इसी हैवानियत का सुबूत हैं दार्शनिक बू्रनो, जिन्हें 1600 में रोम में जिंदा जला कर मार डाला गया. बू्रनो के बाद गैलीलिओ को भी इसी सत्य का प्रतिपादन करने के अपराध में जेल में डाल दिया गया और उन्हें अनेक यातनाएं दी गईं. गैलीलिओ का अपराध भी यही था कि वे चर्च के अंधविश्वासों के खिलाफ थे.
इतिहास इस तरह की धार्मिक हैवानियत की सच्ची घटनाओं से भरा पड़ा है जब पोंगापंथी धर्मगुरुओं ने अपने धार्मिक अंधविश्वासों की रक्षा के लिए सचाई को ही सूली पर चढ़ा दिया. आज स्थिति यह है कि अपने धर्म को बचाने के लिए धर्मगुरुओं को आखिरकार विज्ञान के सामने घुटने टेकने पडे़ और यह कहने के लिए मजबूर होना पड़ा कि जीसस व बाइबिल की कहानियों को उन के शाब्दिक अर्थ में नहीं लिया जाना चाहिए.

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