Friday, 19 June 2015

योग शास्त्र !यह विरोधाभास क्यों? 
# आजकल योग शास्त्र का राज्य आश्रय के कारण खूब प्रचार प्रसार हो रहा है. 21जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाया जा रहा है. अतिशयोक्तिपूर्ण ढंग से योग को सर्वरोगविनाशक एवं सर्वव्याधिनाशनी संजीवनी के रूप में प्रचारित प्रसारित किया जा रहा है. 
कुछ बहुचर्चित योगासनों के लाभ कुछ इस तरह बताये गए हैं :-
* एतद् व्याधिविनाशकारणपरं पद्मासनं प्रोच्यते (घेरंड संहिता 2/8).अर्थात पद्मासन सब व्याधियों का विनाशक है.
* भद्रासनं भवेदेतत् सर्वव्याधि विनाशकम् (घेरंड़ संहिता 2/10).अर्थात भद्रासन सब व्याधियों का विनाशक है.
* सिंहासन भवेदेतत् सर्वव्याधिविनाशकम् (घेरंड़ संहिता 2/15).अर्थात सिंहासन सब व्याधियों का विनाशक है.
* मत्स्यासनं तु रोगहा (घेरंड़ संहिता 2/21).अर्थात मत्स्यासन रोगों को दूर करने वाला है.
* सर्वरोगविनाशनम् भुजंगासनं (घेरंड़ संहिता 2/42).अर्थात भुजंगासन समस्त रोगों को नाश करता है.
# तर्कसंगत जिज्ञासा :-यदि योगासन असाधारण रूप से वास्तव में सर्वरोगविनाशक संजीवनी स्वरूप हैं तो 21शताब्दी में योगशास्त्र के सब से बडा ठेकेदार बाबा रामदेव प्रतिवर्ष करोड़ों रूपयों की औषधि का धन्धा क्यों कर रहा है? उपरोक्त वर्णित महारोगविनाशक आसनों की सहायता से अपनी आंख का सफल इलाज क्यों नहीं करता जो बचपन में Facial Paralysis (मुहं का पक्षाघात )से ग्रसित होने के कारण संकुचित है, जिस से अश्रुपूर्ण स्त्राव रिसता रहता है और जिस में uncontrolled movement होती रहती है.
वैसे काफी लोगों को याद है कि 1883 ई. में आर्यसमाज के संस्थापक योगीराज स्वामी दयानंद सरस्वती को दूध में विष दिया गया था. उन्हें योगासन के महारथी के रूप में परिभाषित किया जाता है, परन्तु कोई भी आसन, प्राणायाम तथा योग क्रिया उन्हें विष के घातक दुष्प्रभाव से नहीं बचा सका और उन की मृत्यु अल्पायु में ही हो गई.
क्या मोदी सरकार पतंजलि योगसूत्र, घेरंड़ संहिता तथा अन्य सम्बन्धित ग्रन्थों में वर्णित महाअसाधारण टोटकों की पृष्टभूमि में देश के सभी छोटे बड़े चिकित्सालय बंद करके आर्थिक एवं सामाजिक विकास की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान करने जा रही है???

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