Wednesday, 22 June 2016

योग आसनों का यथार्थ !
आजकल, विशेष रूप से जब से भाजपा सरकार ने अपने विशिष्ट निहित राजनीतिक स्वार्थीं की पूर्ति के लिए योग /योगा को पूरा राज्याश्रय दे रखा है,योग विद्या को चमत्कारिक संजीवनी के रूप में खूब ज़ोरदार ढंग से प्रचार प्रसार किया जा रहा है. विशेष रूप से विभिन्न आसनों की खूब चर्चा है. 
योग का जो प्राचीन ग्रन्थ उपलब्ध है वह है पतंजलि का योगसूत्र (योग दर्शन ).इस ग्रन्थ में कुल 194 सूत्र हैं, जिन में से केवल एक सूत्र में आसन शब्द का प्रयोग हुआ है. 'स्थिरसुखासनम् (सूत्र 97)' अर्थात जो स्थिर हो और सुखदायक हो उसे आसन कहते हैं. अब नौटंकीबाज़ों का कमाल देखें, योगसूत्र के नाम पर विभिन्न सूत्रों का हवाला दिया जाता है. झूठ जो बिकता है. 
आज जो आसन 'योगा' के नाम पर प्रचारित किए जा रहे हैं, वह पतंजलि के योगसूत्र में कहीं भी दिखाई नहीं देते. वह तो बहुत बाद की पुस्तकों में मिलते हैं, जिन के लेखक न तो चिकित्साशास्त्री थे और न ही रोगियों पर किसी प्रकार की चिकित्सा का अनुभव किए थे. 
एक और झूठ खूब ज़ोरदार ढंग से प्रचारित किया जाता है कि योग/प्राणायाम तथा सम्बन्धित आसनों का प्राचीन चिकित्सा प्रणाली आयुर्वेद में विस्तृत वर्णन है. मैं स्वयं एक आयुर्वेदिक चिकित्सक के नाते पूरे उत्तरदायित्व और अधिकारिक रूप से स्पष्ट करना चाहता हूँ. आयुर्वेद और आयुर्वेद के अधिकृत ग्रन्थों -चरक संहिता, सुश्रुत संहिता, अष्टांग संग्रह/हृदय,भाव प्रकाश, योगरत्नाकर,माधव निदान आदि आदि किसी ग्रन्थ में विभिन्न रोगों का योग/प्राणायाम द्वारा चिकित्सा का वर्णन /निर्देश नहीं है. 
‪#‎देशवासियोजागो‬

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