Monday, 27 April 2015

वास्तुशास्त्र का अंधविश्वास ?
# केन्द्र में सत्ता संभालते ही सम्पूर्ण भगवा ब्रिगेड़ हिंदू समाज को अंधविश्वास के जाल में उलझाए रखने के लिए पूरी तरह सक्रिय है. इसी एजंड़ा के अंतर्गत वास्तुशास्त्र को प्राचीन भवन निर्माण कला के नाम से भी परिभाषित किया जा रहा है परन्तु वास्तव में यह जातिवाद और अंधविश्वासों का ऐसा घातक मिश्रण है जो समाज के लिए आरडीऐक्स से भी ज़्यादा भयानक है.
# जाति के अनुसार विस्तार !
वास्तुशास्त्र घृणित जातिवादी अलगाव पैदा करने की दिशा में इतना प्रयासरत है कि वह चाहता है कि दूर से घर की लम्बाई चौडाई ही किसी के बिना बोले,देखने वाले को बता दे कि कौन सा घर किस जाति के व्यक्ति का है ?
चातुर्वण्यव्यासो......(बृहत्संहिता ५३/१२).
तदानुसार ब्राह्मण के घर का विस्तार ३२ हाथ,क्षत्रिय के घर का विस्तार २८ हाथ,वैश्य के घर का विस्तार २४ हाथ ,शूद्र के घर का विस्तार २० हाथ तथा शूद्र से नीचे की चांडाल,अछूत आदि जातियों के घर शूद्र के घर से भी छोटे हों.इसी आधार पर घर के दरवाज़े को भी जातिवाद के आधार पर परिभाशित किया गया है (बृहत्संहिता ५३/२५).
# जातियों की दिशाऐं !
वास्तुशास्त्र का कहना है कि ब्राह्मण उत्तर दिशा में,क्षत्रिय पूर्व दिशा में,वैश्य दक्षिण दिशा में और शूद्र पश्चिम दिशा में घर बनाए.
जहां धर्मशास्त्रों ने अपनी विघटनकारी भूमिका निभाई है वहां वास्तुशास्त्र भी पीछे नहीं रहा,क्योंकि इस शास्त्र को लिखने वाले भी वही लोग थे जो धर्मशास्त्र को लिखने वाले थे.शिल्पी को पढनेलिखने की अनुमति थी ही नहीं,अतः वह लिख ही नहीं सकता था.यही कारण है कि वास्तुशास्त्र मकान आदि बनाने की तकनीक न बताकर अंधविश्वासों,परोहितवाद और अवैज्ञानिक विचारों को ही महिमामंड़ित करता है.वराहमिहिर ने अपने ग्रन्थ बृहत्संहिता में वास्तुशास्त्र का जो "ज्ञान" दिया है,उस में न स्नान के लिए कहीं स्थान है,न शौच के लिए,न रसोई और न श्यनकक्ष की बात है,न बैठक की परन्तु अंधविश्वासों और घृणित जातिवाद का तांड़व नृत्य कदम कदम पर उपलब्द है.
अब देखना है कि कितनी जल्दी भगवा सरकार ,वास्तुशास्त्र को university grants commission के academic curriculum का अभिन्न अंग बनाती है ???
जय हिंदू राष्ट्र !

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