Monday, 13 April 2015

निहित स्वार्थियों का षड़यन्त्र !
# वेदप्रमाण्यं कस्यचित् कर्तुवादः स्नाने धर्मइच्छा जातिवादावलेयः ! सन्तापारम्भः पापहानाय चेति ध्वस्तप्रज्ञानां पंच लिंगानि जाड़ये !(बौद्ध विचारक धर्मकीर्ति)
अर्थात बुद्धिहीनों के पांच काम हैं-वेदों को प्रमाणित मानना,ईश्वर का कर्त्तापन,धर्मकाँड़ के लिए स्नान की अनिवारियता,जातिवाद का प्रचार प्रसार तथा वर्णाश्रम और पापों से मुक्ति हेतु शरीर को कष्ट देना !
यदि इन सभी स्वतंत्र विचारकों की मान्यताएं समाज में स्थापित हो सकती तो आज हिंदू समाज इतने गहरे गर्त में नहीं डूबा होता.पिछले चार हज़ार वर्षों से चल रहा परोपजीवी ब्राह्मणों का षडयंत्र भी सफल नहीं हो पाता.अवतारवाद,तीर्थयात्रा एवं दानपुणय,जाति प्रथा,धार्मिक शोषण एवं उत्पीडन आदि रोग भी न लगते.स्वर्ग नरक की सौदेबाज़ी भी न होती.परन्तु हिंदू समाज में इन तर्कशील एवं प्रगतिशील स्वतंत्र विचारकों की आवाज़ निहित स्वार्थियों ने सफलता से दबा दी.घृणित उद्देश हेतु जहां बौद्ध तथा चार्वक साहित्य को नष्ट करने के साथ साथ खून की होली खेली गई वहीं पर एक षड़यन्त्र के अन्तर्गत महात्मा बुद्ध को विष्णु का अवतार घोषित किया गया.

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