Wednesday, 18 October 2017

बहुचर्चित दीवाली उत्सव:कुछ तथ्य !
आज कार्तिक मास की अमावस्या के दिन नवान्नेष्टि के स्थान पर दीवाली का त्योहार मानने की परम्परा बन गई है। पहले आज के दिन यदि यज्ञ में चावल को पका कर अग्नि में स्वाहा किया जाता था अब बेशुमार पटाखे, बिजली के बल्ब,दीपक, मोमबत्तियाँ आदि जलाई जाती हैं।न दोनों में कोई समानता है और न ही किसी को नवान्नेष्टि का नाम याद है। 
आज दीवाली की शुरुआत के बारे यही कहा जाता है कि जिस दिन मिथात्मक काव्य रामायण के पात्र राम लक्ष्मण हनुमान आदि रावण का वध करके अयोध्या लौटे, उस दिन अयोध्यावासियों ने उनके स्वागत में दीपमालाऐं जलाई लेकिन यह बात शत प्रतिशत अतिशयोक्तिपूर्ण कपोल कल्पित और अविश्वसनीय है। वाल्मीकि रामायण के युद्धकांड के सर्ग 127 में राम के स्वागत के लिए किए गए आयोजन का वर्णन मिलता है उस में दीपक शब्द का एक बार भी उल्लेख नहीं हुआ है।राम आदि दिन के समय अयोध्या पहुंचे थे अतः दिन को दीपक जलाए जाने का कोई औचित्य न था।दूसरे रामायण में राम के स्वागत के संदर्भ में रात्रि को आयोजित किए गए किसी आयोजन का उल्लेख नहीं मिलता है।तीसरे रामायण में रावण वध के तत्काल बाद राम के अयोध्या वापस आने का उल्लेख है। ज्योतिष गणना के अनुसार रावण वध फाल्गुन या वैशाख में हुआ था।हिन्दू धर्म के विद्वानों ने रावण वध की तिथि वैशाख कृष्ण चतुर्दशी निश्चित की है। अतः कार्तिक के महीने में राम के अयोध्या पहुचने की बात और इस को दीवाली के साथ जोड़ने का रामायण के कथानक से कोई सम्बन्ध नहीं बनता।
परजीवी ब्राह्मणों ने अपने वंशजों के लिए लक्ष्मी देवी की कल्पना कर डाली जिस के वाहन को उल्लू बताया गया।पुराणों से पहले के मिथात्मक साहित्य में इस देवी का कोई उल्लेख नहीं मिलता है। स्वार्थपूर्ति के लिए यह प्रचार किया गया कि लक्ष्मी देवी की कृपा प्राप्त करने के लिए उस की पूजा अत्यावश्यक है तथा इस की कृपा से ही धन की प्राप्ति होती है और यह पूजा ब्राह्मणों के सौजन्य से ही सम्पन्न हो सकती है अन्यथा तबाही सुनिश्चित है।सामाजिक त्रासदी देखिए धन की देवी का पूजन यहाँ इस देश में होता है परन्तु आर्थिक वैभव और आर्थिक सम्पन्नता म्लेच्छों के देशों में विराजमान है।

No comments:

Post a Comment