बेरोजगारों को रोजगार का सपना दिखाकर भारी बहुमत से सत्ता में आये प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अच्छे दिन के वादे शिक्षित बेरोजगारों के लिये शेखचिल्ली के ख्वाब साबित हुए हैं। चपरासी की 5 पास नौकरी के लिये जहां एमबीए, बीटेक, एमटेक, ग्रेजुएट युवा लाइनों में लगे हुए हैं वहीं दूसरी तरफ संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी रिपोर्ट में मोदी सरकार को तो कटघरे में खड़ा ही किया गया है बल्कि भारत में बढ़ती बेरोजगारों की संख्या ने भी भयावह कहानी बयां की है। जो आने वाले दिनों में बड़े विवादों का कारण बन सकती है।
पिछले दिनों मोदी की बीजेपी सरकार को आए तीन साल पूरे हो गए हैं, लेकिन मोदी के वादे अभी भी अधूरे पड़े हैं। मोदी ने सरकार बनने से पहले युवाओं से वादा किया था कि जैसे ही उनकी सरकार आती है, वे सबसे पहले देश के 1 करोड़ युवाओं को नौकरी देने का काम करेंगे, लेकिन तीन साल बीत जाने के बाद अभी भी देश में करोड़ों की संख्या में युवा बेरोजगार बैठे है। बेरोजगारों का सपना था कि अगर मोदी जी की सरकार बनी तो उनके अच्छे दिन आ जायेंगे और उन्होंने मोदी जी की रैलियांे में तो जय-जयकार की ही बल्कि गांव की गलियों से लेकर महानगरों तक घूम-घूमकर मोदी के पक्ष में जमकर वोटिंग भी कराई। उस समय युवाओं में मोदी के प्रति जो जोश और जुनून था वह सरकार बनने के बाद ठण्डा होता नजर आ रहा है। बल्कि सरकार के प्रति आक्रोश की झलक भी दिखाई दे रही है, जो कभी भी लावा के रूप में उभर सकती है। आखिर हो भी क्यों ना, जब आज तीन साल बाद भी ना तो बेरोजगारों के चेहरों पर चमक दिखाई दे रही है और न ही उनके सपने साकार होते नजर आ रहे हैं।
पिछले दिनों मोदी की बीजेपी सरकार को आए तीन साल पूरे हो गए हैं, लेकिन मोदी के वादे अभी भी अधूरे पड़े हैं। मोदी ने सरकार बनने से पहले युवाओं से वादा किया था कि जैसे ही उनकी सरकार आती है, वे सबसे पहले देश के 1 करोड़ युवाओं को नौकरी देने का काम करेंगे, लेकिन तीन साल बीत जाने के बाद अभी भी देश में करोड़ों की संख्या में युवा बेरोजगार बैठे है। बेरोजगारों का सपना था कि अगर मोदी जी की सरकार बनी तो उनके अच्छे दिन आ जायेंगे और उन्होंने मोदी जी की रैलियांे में तो जय-जयकार की ही बल्कि गांव की गलियों से लेकर महानगरों तक घूम-घूमकर मोदी के पक्ष में जमकर वोटिंग भी कराई। उस समय युवाओं में मोदी के प्रति जो जोश और जुनून था वह सरकार बनने के बाद ठण्डा होता नजर आ रहा है। बल्कि सरकार के प्रति आक्रोश की झलक भी दिखाई दे रही है, जो कभी भी लावा के रूप में उभर सकती है। आखिर हो भी क्यों ना, जब आज तीन साल बाद भी ना तो बेरोजगारों के चेहरों पर चमक दिखाई दे रही है और न ही उनके सपने साकार होते नजर आ रहे हैं।
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