Tuesday, 9 February 2016

आज़ादी के ६९ वर्षों के पश्चात् भी घृणित छुआछूत और जातिवाद का घिनौना चेहरा !
स्वतंत्रता के 69 साल बाद भी हम जातिवाद के जहर से मुक्त नहीं हो पाए। इसका एक उदाहरण 31 मार्च, 2011 को केरल के तिरुवनंतपुरम में देखने को मिला था जहां अनुसूचित जाति के एक वरिष्ठ अधिकारी ए.के. रामाकृष्णन की पद से सेवानिवृत्ति के बाद कुछ कर्मचारियों ने उनके कार्यालय के कक्ष और फर्नीचर को गौमूत्र छिड़क कर पवित्र किया था।
इसी प्रकार का एक मामला अब उत्तर प्रदेश के कानपुर (देहात) जिले में स्थित एक सरकारी स्कूल में देखने को मिला है। गत 3 फरवरी को वीरसिंहपुर गांव की दलित प्रधान पप्पी देवी अपने गांव के स्कूल में मिड-डे मील की घटिया क्वालिटी के संबंध में हैडमास्टर सतीश शर्मा से शिकायत करने गई थीं।
पप्पी देवी ने जिला प्रशासन को दी शिकायत में कहा है कि हैडमास्टर के दफ्तर में रखी कुर्सी पर उसके बैठने से वह भड़क उठा कि पप्पी देवी की यह हिम्मत कैसे हुई। हैडमास्टर ने न सिर्फ पप्पी देवी का हाथ पकड़ कर मरोड़ दिया बल्कि उसके चले जाने के बाद स्कूल के बच्चों व कर्मचारियों से उस कुर्सी को धुलवा कर उसका ‘शुद्धिकरण’ करवाया जिस पर वह बैठी थी।
बात यहीं तक सीमित नहीं है। इसी हैडमास्टर द्वारा छुआछूत का एक और मामला भी उक्त कांड की तहसीलदार द्वारा जांच के दौरान सामने आया। स्कूल के दलित बच्चों ने बताया कि सुबह स्कूल का ताला खुलवाने व शाम को छुट्टी के समय बंद करवाने के बाद हैडमास्टर चाबी लेने से पहले उसे धुलवाता है।
निश्चय ही ऐसी घटनाएं हमें सोचने को विवश कर देती हैं कि आजादी के 69 वर्ष बाद भी यदि हमारी मानसिक गुलामी का यह हाल है तो फिर हमें इससे मुक्त होने के लिए और कितने वर्ष इंतजार करना पड़ेगा? [मीडिया रिपोर्ट पर आधारित संकलन].

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