सरकार इन्फौर्मेशन टैक्नोलौजी एक्ट में कई संशोधन कर के आम चुनाव से पहले शिकंजा कस देना चाहती है ताकि मोदी के पुराने वीडियों, जिन में उन्होंने खुद घृणा फैलाने वाले भाषण दिए हैं, को कोई फौरवर्ड या रीट्वीट न कर सके. यह काम कठिन है पर सरकार के लिए असंभव नहीं है. हमारा कानून चमत्कारों की झूठी कहानियों के प्रचार को संस्कृति प्रसार के प्रमाणपत्र देता रहता है जबकि चमत्कारों के तार्किक विश्लेषणों को धर्मविरोधी कह कर पुराने कानूनों के तहत रोकता रहता है.
आज देश में फैले अंधविश्वासों का कारण झूठे संदेशों का खुलेआम प्रसार भी है पर सरकार की, अब भाजपा की, पहले की कांग्रेस की, उन्हें रोकने की मंशा नहीं रही. डिजिटल तकनीक से झूठी खबरों पर नियंत्रण के बहाने भाजपा सरकार केवल अपनी पोल खोलने वाली तार्किक और सत्य बातों को झूठी करार दे कर रोकेगी, यह तय है. आईटी एक्ट में संशोधन असल में तर्क और सच को दबाने के लिए है यानी सच की हार होगी, जीत नहीं.
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