Thursday, 19 April 2018

जब से मोदी सरकार सत्ता में आई है, आलोचनात्मक विचार, वैज्ञानिक दृष्टिकोण और खोजी प्रवृत्ति के खिलाफ हमलों में बेतहाशा वृद्धि हुई है। जनवरी, 2015 में भारतीय विज्ञान कांग्रेस के सेमिनार में बेहद अवैज्ञानिक और अंधविश्वास फैलाने वाले वक्तव्य दिए गए थे, जिसका देश के 107 श्रेष्ठ वैज्ञानिकों ने यह कहकर विरोध किया था कि ‘अतार्किक और संकीर्ण विचारों को सरकार के महत्वपूर्ण अधिकारी ही प्रचारित और मजबूत कर रहे हैं।’ भारतीय विज्ञान कांग्रेस के इस अधिवेशन में दावा किया गया था कि ‘विज्ञान और तकनीक की प्राचीन भारतीय विरासत के अनुसार देश में 6 चाकू ऐसे थे जो एक बाल को भी (उसकी मोटाई के) दो हिस्सों में फाड़ देते थे’, कि ‘लगभग 7000 वर्ष पहले वैदिक ऋषि गाय के गोबर से भी 24 कैरेट का सोना निकाल लेते थे’, कि ‘प्राचीन संत हवाई जहाज और 40 इंजनों का एक अंतरिक्ष यान भी बना लेते थे जो दूसरे ग्रहों तक की यात्रा कर लेता था।’
ऊटपटांग मान्यताएं
इस तरह की बकवास पिछले कुछ वर्षों से गुजरात के स्कूलों में पढ़ाई जाने लगी है। जैसे, एक पाठ्य पुस्तक में यह दावा किया गया है कि गांधारी के 100 पुत्रों का जन्म प्राचीन भारत में स्टेम सेल की खोज का परिणाम था, लिहाजा स्टेम सेल की खोज का सेहरा अमेरिका के बजाय महाभारत के सिर पर बंधना चाहिए। गणेश के धड़ पर हाथी का सिर बैठाने के प्रसंग को जब खुद प्रधानमंत्री प्लास्टिक सर्जरी के उदाहरण के तौर पर पेश करने लगें तो जनता पर इसके असर को कम करके नहीं आंका जा सकता। पिछले तीन वर्षों में सरकार ने सीएसआईआर के अधीन काम करने वाली कुछ लैबरेटरीज को इसलिए भी फंड दिया है कि वे गाय के गोबर, मूत्र, दूध, दही, घी को मिलाकर बने ‘पंचगव्य’ मिश्रण में पाए जाने वाले गुणों का पता लगाएं। विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री हर्षवर्धन ने पिछले माह यहां तक दावा कर डाला कि स्टीफन हॉकिंग ने वेदों की थिअरी को अल्बर्ट आइंस्टाइन की थिअरी से बेहतर बताया था। इसी कड़ी में त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बिप्लब देब की ताजा घोषणा आई है कि महाभारत काल में इंटरनेट मौजूद था।

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