Saturday, 6 January 2018

नरेंद्र मोदी के भक्तों में ज्यादातर वे हैं जो विकास के नाम पर देश में एक बार फिर वर्णव्यवस्था वाला शासन थोपना चाहते हैं जिस में ऊंचनीच का फैसला शास्त्रीय ग्रंथों के अनुसार जन्म के समय ही हो जाए और सुखदुख की चाबी पोथी बगल में दबाए किसी तिलकधारी के हाथों में हो. ऐसा हिंदू राज इस देश में न कभी था और न संभव है. रामायण, महाभारत काल में भी केवल जनता ही नहीं राजा भी सुखी न थे क्योंकि ये दोनों महाकाव्य 2 राजघरानों पर आई आफतों का ही वर्णन हैं.
इन दोनों ग्रंथों में वर्णित हिंदू आदर्श पात्र, जिन में से कुछ के आज मंदिर बना उन को पूजा जाता है, अपने पूरे जीवन अस्तित्व के लिए संघर्ष करते रहे और वे अपने राज, संपत्ति, सम्मान की रक्षा भलीभांति न कर पाए, आम जनता की रक्षा भला उन्होंने क्या की होगी, उस की बात छोडि़ए.
यह विडंबना ही है कि जब ये महाकाव्य तब की काल्पनिक स्थिति का खासा सूक्ष्म वर्णन करते हैं और उस युग की जनता की त्रासदी का थोड़ा सा ही वर्णन करते हैं, राजसी पात्रों की तो बात छोडि़ए जो बहुत कर्णप्रिय नहीं हैं, तो इन पर आज विकास का मौडल कैसे बनाया जा सकता है?

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