Thursday, 4 January 2018

सामाजिक भेदभाव तथा पूर्वग्रह का मूल आधार क्या है ?
बैरभाव के बीज बोए कहां जाते हैं? ये न स्कूलों में बोए जाते हैं, न कालेजों में और न दफ्तरों में. इन सब जगह लोग हर तरह के लोगों के साथ काम करने को तैयार रहते हैं.
असल में भेदभाव मंदिरों, मसजिदों, चर्चों, गुरुद्वारों में सिखाया जाता है. वहां एक ही धर्म के लोग जाते हैं और सिद्ध करते हैं कि हम दूसरों से अलग हैं. धर्म के रीतिरिवाज ही एकदूसरे को अलग करते हैं. धर्म के नाम पर छुट्टियों में एक वर्ग घर पर बैठता है और दूसरा बढ़चढ़ कर पूजापाठ के लिए धर्मस्थल को जाता है. पहनावा भी धर्म तय करता है, जो अलगाव दर्शाता है. कुछ कलेवा बांधे टीका लगाए घूमते हैं तो कुछ टोपी पहनते हैं तो कोई पगड़ी बांधता है. संविधान की धज्जियां तो ये भेदभाव उड़ाते हैं.
सभी धर्म एक दूसरे के प्रति अंतर्विरोध ,घृणा तथा पूर्वग्रह पर टिके हैं . मेरा धर्म तुम्हारे धर्म से श्रेष्टतम [ My religion is holier than thou] थ्योरी प्रेरित प्रतिस्पर्धा की दौड़ में विभिन्न धर्मों के ठेकेदार नैतिक और अनैतिक के अंतर को भूल जाते हैं .समय अन्तराल से धर्म शोषणकारी व्यवस्था का सशक्त हथियार रहा है और आज २१वी शताब्दी में भी यह क्रम जारी है .इतिहास गवाह है कि आदिकाल से आजतक जितना नरसंहार अकेले धर्मिक पूर्वग्रह के कारण घटा है उतना और किसी एक कारण से नहीं घटा है .आज भी पूरे विश्व में सर्व धार्मिक जनून के कारण खून का दरिया उछल उछल कर बह रहा है. धर्म तोड़ता है जोड़ता नहीं. तभी आज समधर्मी भी एक दूसरे का गला काटते नज़र आ रहे हैं .विभिन्न धर्म संकीर्णता अन्धविश्वास कट्टरता उन्माद घृणा तथा अकर्मण्यता के प्रेरणास्त्रोत हैं तथा मानवतावाद, तर्कशीलता एवं वैज्ञानिक सोच को नकारते हैं. सर्व धर्म सद्भावना केवल खोखला आधारहीन प्रपंच है .

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