कंडोम पर कुतर्क !
भारत में दूसरी कई गंभीर समस्याओं के बीच ढोंग और पाखंड भी एक बहुत बड़ी समस्या है। हम अंदर से कुछ हैं, जबकि दुनिया को दिखाते कुछ और हैं। जो देश पॉर्न देखने वालों की संख्या के मामले में पूरी दुनिया में तीसरे नंबर पर हो, उसी देश में सेक्स पर बात करना वर्जित है। जिस देश की जनसंख्या डेढ़ सौ करोड़ के आंकड़े की ओर तेजी से बढ़ रही है, वहीं अगर आप कॉन्डम खरीदते पाए जाते हैं, तो आपको घूर कर देखा जाता है। एक ओर यहां न जाने कितनी देवियों की पूजा होती है और दूसरी ओर लड़कियों को भ्रूण से बाहर नहीं निकलने दिया जाता। इसलिए कोई हैरानी नहीं कि ऐसे देश के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को दिन में कॉन्डम के विज्ञापन दिखाया जाना रास न आ रहा हो। ऐसे मंत्रालय को कोई जाकर बताए कि लैंसेट ग्लोबल हेल्थ के लिए जो सर्वे किया गया था, उसमें यह पाया गया कि आधे लोगों को कॉन्डम के इस्तेमाल का तरीका ही नहीं पता था। इस लिहाज से तो उन्हें और बेहतर ढंग से सिखाने की जरूरत है। हाल यह है कि भारत में साल भर में जितने गर्भ ठहरते हैं, उनमें से आधे मामलों में ऐसा पति-पत्नी की योजना के खिलाफ होता है। यानी अनचाहे हो जाता है क्योंकि वे यह मानकर चलते हैं कि अब अगर हो ही गया है तो गर्भपात क्या करवाना। ईश्वर की मर्जी ऐसी ही रही होगी। अब कैसे भी पाल लेंगे बच्चे को। इस तरह बिना मानसिक और दूसरी तैयारियों के बीच जो बच्चे पैदा होते हैं, उन्हें भी बाद में तकलीफों से गुजरना पड़ता है।
जरूरत इस बात की है कि हम कॉन्डम के इस्तेमाल और सेक्स संबंधी दूसरी अहम बातों को थोड़े संभ्रांत तरीके से सही, पर बच्चों तक जरूर पहुंचाएं। कॉन्डम के ऐड दिखाना बंद करके सिर्फ हम युद्ध के मैदान में मच्छरदानी के भीतर घुसने का काम कर रहे हैं, यह सोचते हुए कि जब इसमें मच्छर नहीं घुस सकता, तो गोली कैसे घुसेगी।
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