Monday, 11 December 2017

कूपमंडूकों की जमात
विडंबना यह है कि देश के नीति-निर्माता खुद ही तर्क और विज्ञान विरोधी मानसिकता से ग्रस्त हैं। ज्यादातर नौकरशाह ज्योतिष और वास्तु में यकीन करते हैं। जैसे ही किसी अधिकारी की प्रोन्नति होती है, अपने काम को जानने से पहले वह अपने चेंबर का मुआयना करता है। सूर्य, चंद्र की दिशा किधर है और सबसे नजदीकी मंदिर, मस्जिद, चर्च किधर हैं, वह इसका पता लगाता है। खिड़की की दिशा क्या है और मेज में कोने कितने, यह भी मालूम करता है। उसके कमरे की फर्श, अलमारी और पंखों का रंग क्या होगा, यह भी उसका पुरोहित आकर तय करता है। कई बार तो वह यह भी बताता है कि संसद के सबसे नजदीक इस भवन के नीचे श्मशान होने की आशंका है इसीलिए इतनी दुर्घटनाएं हो रही हैं। रातोंरात लाखों खर्च करके कमरे की सूरत बदल दी जाती है। कभी-कभी तो वर्ष में दो-चार बार। पूरा तंत्र इसमें साथ देता है अपने-अपने कमीशन के हिसाब से। कभी कोई इस बात का ऑडिट नहीं करता कि जो मेजें 400 साल तक चल सकती हैं उन्हें कबाड़ में क्यों डाला गया? क्यों इसका खर्च अफसर से नहीं लिया गया? केवल अधिकारी ही नहीं मंत्री भी वास्तुकारों और ज्योतिषियों के शिकंजे में हैं। एक बार एक मंत्री के ड्राइवर ने बताया था कि उसे आदेश है कि आवास से दफ्तर तक पहुंचते वक्त कार कभी बायें नहीं मुड़नी चाहिए। बांये हाथ से डर था या वाम दलों से! सर्वे कराया जाए तो हर दल की सरकार में ऐसे कूपमंडूकों की अच्छी-खासी संख्या रही है। इसीलिए ये जनता को ऐसे विषय पढ़ाना चाहते हैं। ज्योतिष, वास्तु आदि का अध्ययन कराकर हम नई पीढ़ी को पीछे ले जा रहे हैं।

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