Tuesday, 26 December 2017

 देश इस समय एक साथ मंदी और महंगाई की विकट स्थिति को झेल रहा है. उधर किसान १० पैसे किलो आलू और ४ रूपये किलो मूंगफली बेचने को बाध्य हैं तो ईधर उपभोक्ताओं को वही आलू १२० गुना महंगा १२ रूपये किलो और मूंगफली २५ गुना महंगा १०० रूपये किलो मिल रहा है. दोनों छोर पर बैठे लोग मर रहे हैं और बीचवाला माल छाप रहा है. सरकार कहती है कि जीएसटी कम कर दिया लेकिन एक तरफ उपभोक्ताओं को सामान पुराने दरों पर ही मिल रहा है वहीँ दूसरी ओर सरकार को जीएसटी का भुगतान नए दर से किया जा रहा है. सेल टैक्स, इनकम टैक्स आदि सारे विभागों के बाबुओं का हफ्ता फिक्स है इसलिए सब आँखवाले अंधे बने हुए हैं. पाकिस्तान की गोलीबारी में आज भी रोजाना हमारे जवान बेमौत मारे जा रहे हैं. धंधा मंदा है और बेरोजगारी बढती ही जा रही है.
मित्रों, न्यायपालिका निरंकुश है, न्याय दुर्लभ है, कदम-२ पर घूसखोरी और कमीशनखोरी है, सार्वजानिक शिक्षा की मौत हो चुकी है और निजी विद्यालय लूट मचाए हुए हैं, परीक्षा दिखावा बनकर रह गई है, असली से ज्यादा नकली दावा बाजार में है, सरकारी अस्पतालों में कुत्ते टहल रहे हैं और निजी अस्पतालों से तो लुटेरे कहीं ज्यादा भले, पुलिस खुद ही अपराध कर और करवा रही है, सारे धंधे मंदे हैं लेकिन अवैध शराब और गरम गोश्त का व्यापार दिन दूनी रात चौगुनी उन्नति कर रहा है. पुलिस छापा मारती भी है तो सरगने को भगा देती है और बांकी लोग भी एक-दो महीने में ही न जाने कैसे बाहर आ जाते हैं. कुल मिलकर स्थिति इतनी बुरी है कि पीड़ित may I help you का बोर्ड लेकर घूमनेवाली पुलिस के पास जाने से भी डरते हैं. बैंकों की तो पूछिए ही नहीं पहले १० %  कमीशन काट लेते हैं बाद में लोन की रकम देते हैं. बिहार में तो यही रेट है इंदिरा आवास तक में और प्रधान सेवक समझते हैं कि १००% पैसा गरीबों तक पहुँच गया. इतना ही नहीं क्या अमीर और क्या गरीब बैंक न्यूनतम राशि खाते में न होने के बहाने बिना हथियार दिखाए सबको लूट रहे हैं.

Monday, 18 December 2017

कंडोम पर कुतर्क !
भारत में दूसरी कई गंभीर समस्याओं के बीच ढोंग और पाखंड भी एक बहुत बड़ी समस्या है। हम अंदर से कुछ हैं, जबकि दुनिया को दिखाते कुछ और हैं। जो देश पॉर्न देखने वालों की संख्या के मामले में पूरी दुनिया में तीसरे नंबर पर हो, उसी देश में सेक्स पर बात करना वर्जित है। जिस देश की जनसंख्या डेढ़ सौ करोड़ के आंकड़े की ओर तेजी से बढ़ रही है, वहीं अगर आप कॉन्डम खरीदते पाए जाते हैं, तो आपको घूर कर देखा जाता है। एक ओर यहां न जाने कितनी देवियों की पूजा होती है और दूसरी ओर लड़कियों को भ्रूण से बाहर नहीं निकलने दिया जाता। इसलिए कोई हैरानी नहीं कि ऐसे देश के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को दिन में कॉन्डम के विज्ञापन दिखाया जाना रास न आ रहा हो। ऐसे मंत्रालय को कोई जाकर बताए कि लैंसेट ग्लोबल हेल्थ के लिए जो सर्वे किया गया था, उसमें यह पाया गया कि आधे लोगों को कॉन्डम के इस्तेमाल का तरीका ही नहीं पता था। इस लिहाज से तो उन्हें और बेहतर ढंग से सिखाने की जरूरत है। हाल यह है कि भारत में साल भर में जितने गर्भ ठहरते हैं, उनमें से आधे मामलों में ऐसा पति-पत्नी की योजना के खिलाफ होता है। यानी अनचाहे हो जाता है क्योंकि वे यह मानकर चलते हैं कि अब अगर हो ही गया है तो गर्भपात क्या करवाना। ईश्वर की मर्जी ऐसी ही रही होगी। अब कैसे भी पाल लेंगे बच्चे को। इस तरह बिना मानसिक और दूसरी तैयारियों के बीच जो बच्चे पैदा होते हैं, उन्हें भी बाद में तकलीफों से गुजरना पड़ता है।
जरूरत इस बात की है कि हम कॉन्डम के इस्तेमाल और सेक्स संबंधी दूसरी अहम बातों को थोड़े संभ्रांत तरीके से सही, पर बच्चों तक जरूर पहुंचाएं। कॉन्डम के ऐड दिखाना बंद करके सिर्फ हम युद्ध के मैदान में मच्छरदानी के भीतर घुसने का काम कर रहे हैं, यह सोचते हुए कि जब इसमें मच्छर नहीं घुस सकता, तो गोली कैसे घुसेगी।

Saturday, 16 December 2017

भाजपाई प्रवचन !
पिछले दिनों कर्नाटक के पूर्व उपमुुख्यमंत्री भाजपा के के.एस. ईश्वरप्पा ने पार्टी कार्यकत्र्ताओं को संबोधित करते हुए यह कह कर सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी को भाजपा की आलोचना का मौका दे दिया कि ‘‘राजनीतिक समर्थन पाने के लिए कभी भी मतदाताओं को झांसा देने से संकोच न करें।’’ सोशल मीडिया पर उक्त बयान की चल रही फुटेज 4 दिसम्बर की है जब वह कोपल में पार्टी वर्करों की एक बैठक को संबोधित करने गए। इसमें उन्होंने पार्टी वर्करों से कहा कि ‘‘यदि जरूरत पड़े तो झूठ भी बोल दें।’’ 

अपने भाषण के दौरान उन्होंने कहा, ‘‘हमें लोगों को भाजपा की सब उपलब्धियां बताने की जरूरत है। हमें लोगों को बताना है कि हमने पिछड़ी जातियों, अनुसूचित जनजातियों और किसानों तथा महिलाओं आदि के लिए क्या कुछ किया है। यदि आपको यह सब मालूम नहीं है तो कुछ भी झूठ अथवा जो मुंह में आए बोल दें।’’ ईश्वरप्पा इतने पर ही नहीं रुके और आगे कहने लगे, ‘‘हम राजनीतिज्ञ लोग हैं। जब हमसे कुछ पूछा जाए तो हमें यह नहीं कहना चाहिए कि हमें मालूम नहीं है। ऐसा करने की बजाय कोई भी कहानी बना दें बाद में जो भी होगा हम देख लेंगे।’’ ‘‘यदि आप लोगों द्वारा मनमोहन सिंह या मुख्यमंत्री सिद्धरमैया की तारीफ सुन कर चुप बैठे रहेंगे तब तो हमें अपनी दुकान बढ़ाकर चले जाना पड़ेगा।’’ 

Monday, 11 December 2017

कूपमंडूकों की जमात
विडंबना यह है कि देश के नीति-निर्माता खुद ही तर्क और विज्ञान विरोधी मानसिकता से ग्रस्त हैं। ज्यादातर नौकरशाह ज्योतिष और वास्तु में यकीन करते हैं। जैसे ही किसी अधिकारी की प्रोन्नति होती है, अपने काम को जानने से पहले वह अपने चेंबर का मुआयना करता है। सूर्य, चंद्र की दिशा किधर है और सबसे नजदीकी मंदिर, मस्जिद, चर्च किधर हैं, वह इसका पता लगाता है। खिड़की की दिशा क्या है और मेज में कोने कितने, यह भी मालूम करता है। उसके कमरे की फर्श, अलमारी और पंखों का रंग क्या होगा, यह भी उसका पुरोहित आकर तय करता है। कई बार तो वह यह भी बताता है कि संसद के सबसे नजदीक इस भवन के नीचे श्मशान होने की आशंका है इसीलिए इतनी दुर्घटनाएं हो रही हैं। रातोंरात लाखों खर्च करके कमरे की सूरत बदल दी जाती है। कभी-कभी तो वर्ष में दो-चार बार। पूरा तंत्र इसमें साथ देता है अपने-अपने कमीशन के हिसाब से। कभी कोई इस बात का ऑडिट नहीं करता कि जो मेजें 400 साल तक चल सकती हैं उन्हें कबाड़ में क्यों डाला गया? क्यों इसका खर्च अफसर से नहीं लिया गया? केवल अधिकारी ही नहीं मंत्री भी वास्तुकारों और ज्योतिषियों के शिकंजे में हैं। एक बार एक मंत्री के ड्राइवर ने बताया था कि उसे आदेश है कि आवास से दफ्तर तक पहुंचते वक्त कार कभी बायें नहीं मुड़नी चाहिए। बांये हाथ से डर था या वाम दलों से! सर्वे कराया जाए तो हर दल की सरकार में ऐसे कूपमंडूकों की अच्छी-खासी संख्या रही है। इसीलिए ये जनता को ऐसे विषय पढ़ाना चाहते हैं। ज्योतिष, वास्तु आदि का अध्ययन कराकर हम नई पीढ़ी को पीछे ले जा रहे हैं।